स्वर्णाकर्षण भैरव काल भैरव का सात्त्विक रूप हैं, जिनकी पूजा धन प्राप्ति के लिए की जाती है. यह हमेशा पाताल में रहते हैं. ठीक वैसे ही जैसे सोना धरती के गर्भ में होता है. इनका प्रिय प्रसाद दूध और मेवा है. इनके मदिरों में मदिरा-मांस सख्त वर्जित है.

भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं. इस वजह से इनकी साधना का समय मध्य रात्रि यानी रात के 12 से 3 बजे के बीच का है. इनकी उपस्थिति का अनुभव गंध के माध्यम से होता है. शायद यही वजह है कि कुत्ता इनकी सवारी है. कुत्ते की गंध लेने की क्षमता जगजाहिर है. इनके साधना से अष्ट-दारिद्रय समाप्त हो सकता है.
जो साधक इनकी साधना करता है, उसके जीवन मे कभी आर्थिक हानि नहीं होती. सिर्फ आर्थिक लाभ देखने को मिलता है. इनकी साधना में जितना महत्व मंत्र का है उतना ही महत्व यंत्र का है. स्वर्णाकर्षण भैरव यंत्र स्थापन करने से बहुत सारे लाभ है.
सर्वप्रथम रात्री मे 11 बजे स्नान करके उत्तर दिशा में मुख करके साधना में बैठें. पीले वस्त्र-आसन होना जरुरी है. स्फटिक माला और यंत्र को पीले वस्त्र पर रखें और उनका सामान्य पूजन करें. साधना सिर्फ मंगलवार के दिन रात्रि में 11 से 3 बजे के समय में करना है.
इसमें 11 माला मंत्र जाप करना आवश्यक है. भोग में मीठे गुड का रोटी चढ़ाने का विधान है और दूसरे दिन सुबह वो रोटी किसी काले रंग के कुत्ते को खिलाएं. काला कुत्ता ना मिले तो किसी भी कुत्ते को खिला दीजिए.
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