शरद पवार प्रेसवार्ता में उद्धव ठाकरे के साथ आए। इस प्रेस वार्ता में कांग्रेस पार्टी नहीं थी, लेकिन पवार ने भरोसा दिया है कि अपने भतीजे अजीत पवार के खिलाफ जो भी कार्रवाई का निर्णय लेना होगा, कांग्रेस और शिव सेना के साथ मिलकर लेंगे। शरद पवार ने कहा वह शिवसेना, कांग्रेस के साथ हैं, रहेंगे। उन्होंने अजीत पवार के साथ गए विधायक राजेंन्द्र शिंगने, सतीश और संदीप क्षीरसागर को भी पेश किया। इन विधायकों ने शरद पवार का साथ दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राज्यपाल महामहिम भगत सिंह कोश्यारी ने जल्दबाजी दिखाकर मर्यादा ताक पर रख दी? क्या लोकतंत्र हाई जैक हो गया?

उ.प्र. का नब्बे का दशक याद कीजिए। जगदंबिका पाल एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बन गए थे। कानूनी मामूलों के जानकारों का कहना है राज्यपाल राज्य में सरकार बनने की संभावना तलाशते हैं और उनके पास जिस दल के भीतर सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या बल का भरोसा होता है, उसे कभी भी सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। विधि एवं न्याय मंत्रालय के एक पूर्व सचिव का कहना है कि राज्यपाल के पास अधिकार है। सूत्र का कहना है कि वह राष्ट्रपति शासन लगे होने की दशा में किसी भी समय राष्ट्रपति से इसे हटाने का अनुरोध कर सकते हैं।
मीडिया में आ रही सूचना के अनुसार महाराष्ट्र में 23 नवंबर की सुबह करीब पौने छह बजे राष्ट्रपति शासन हटाया गया। इसके ठीक सवा दो घंटे बाद आठ बजे राज्यपाल ने मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस और उप मुख्यमंत्री अजीत पवार को शपथ दिलाई। सूत्र का कहना है कि यहां तक राज्यपाल ठीक हैं। उन्होंने अपने अधिकार का इस्तेमाल किया। बताते हैं यह नैतिक रूप से कहा जा सकता है कि राज्यपाल ने जल्दबाजी दिखाई और औपचारिकता तथा प्रोटोकाल को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया। सूत्र का कहना है कि आम तौर पर राज्यपाल को इस तरह की जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए थी। राज्यपाल के इस कदम से उनके ऊपर भाजपा के एजेंट के तौर पर काम करने का आरोप लग सकता है।
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