रिजर्व बैंक जनवरी, 2014 के बाद पहली बार नीतिगत ब्याज दरों में इजाफा करने वाला है। विश्लेषकों का कहना है कि बुधवार को यदि इसकी घोषणा नहीं की गई तो अगस्त में पक्के तौर पर ऐसा होगा। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज प्राइमरी डीलरशिप के मुख्य अर्थशास्त्री ए. प्रसन्ना ने कहा, "हालांकि हमने अनुमान लगाया था कि रेपो रेट में पहली वृद्घि अगस्त में की जाएगी, लेकिन अब हमें लगता है कि एमपीसी जून में ही ऐसा करने जा रही है।" आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक सोमवार को शुरू हो गई और इस बार यह दो दिन की जगह तीन दिन तक चलेगी। आशंका के मुताबिक यदि ब्याज दरें बढ़ा दी जाती हैं, तो देश की आर्थिक विकास दर पर इसका नकारात्मक असर हो सकता है। यह मामला इसलिए गंभीर साबित होगा कि नवंबर, 2016 के बाद से लगातार कमजोरी के बाद जनवरी-मार्च तिमाही में अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटती नजर आई और विकास दर 7.7 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। देश की अर्थव्यवस्था पर पहले नोटबंदी और फिर अप्रत्यक्ष करों की नई प्रणाली जीएसटी लागू होने का गहरा असर हुआ, लेकिन धीरे-धीरे चीजें सामान्य होने लगीं। अब यदि ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं तो एक बार फिर विकास दर में गिरावट आ सकती है। हालात ने बिगाड़ा माहौल केंद्रीय बैंक की चिंता दूसरी है। महंगाई एक हद तक काबू में रहने और अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए रेपो रेट लंबे समय से 6 फीसदी के निचले स्तर पर रखा गया है। लेकिन, अब महंगाई एक बार फिर बढ़ने लगी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ने के बाद पेट्रोल और डीजल जैसे आम जरूरत के ईंधन महंगे होने से मुद्रास्फीति का दबाव आगे और बढ़ने की आशंका है। कच्चा तेल महंगा होने के कारण इसका आयात करने वाली कंपनियों की तरफ से डॉलर की मांग बढ़ी है। इसका सीधा असर रुपए की विनियम दर पर हुआ। मसलन, 2018 में भारतीय रुपया एशिया की सबसे कमजोर प्रदर्शन करने वाली करेंसी हो गई, जो पिछले साल एशिया की सबसे मजबूत प्रदर्शन करने वाली करेंसी थी। अचानक बदला अनुमान जनवरी-मार्च तिमाही के लिए सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के आंकड़े आने से पहले रॉयटर्स की तरफ से कराए गए एक सर्वे में हिस्सा लेने वाले 60 में से 40 फीसदी प्रतिभागियों ने अनुमान लगाया था कि बुधवार को नीतिगत ब्याज दरें बढ़ाने की घोषणा की जाएगी, जबकि 44 में से करीब 70 फीसदी का कहना था कि अगस्त में ऐसा होगा। इससे पहले अप्रैल में किए गए सर्वे में मोटे तौर पर अंदाजा लगाया था कि 2019 की दूसरी छमाही से पहले ब्याज दरें नहीं बढ़ाई जाएंगी। असल में वित्त वर्ष 2017-18 की चौथी तिमाही के लिए जीडीपी के शानदार आंकड़े आने के बाद करीब-करीब तय माना जा रहा है कि रेपो रेट अनुमान से पहले बढ़ा दिया जाएगा क्योंकि यह फिलहाल नवंबर, 2010 से लेकर अब तक के सबसे निचले स्तर पर है। आशंका के 3 बड़े कारण - जनवरी-मार्च तिमाही में विकास दर 7.7 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। - रेपो रेट नवंबर, 2010 से लेकर अब तक के सबसे निचले स्तर पर है। - रुपया इन दिनों एशिया की सबसे कमजोर प्रदर्शन करने वाली करेंसी है।

ब्याज दरें बढ़ना तय, बुधवार को नहीं तो अगस्त में ही सहीः विश्लेषक

रिजर्व बैंक जनवरी, 2014 के बाद पहली बार नीतिगत ब्याज दरों में इजाफा करने वाला है। विश्लेषकों का कहना है कि बुधवार को यदि इसकी घोषणा नहीं की गई तो अगस्त में पक्के तौर पर ऐसा होगा। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज प्राइमरी डीलरशिप के मुख्य अर्थशास्त्री ए. प्रसन्ना ने कहा, “हालांकि हमने अनुमान लगाया था कि रेपो रेट में पहली वृद्घि अगस्त में की जाएगी, लेकिन अब हमें लगता है कि एमपीसी जून में ही ऐसा करने जा रही है।”रिजर्व बैंक जनवरी, 2014 के बाद पहली बार नीतिगत ब्याज दरों में इजाफा करने वाला है। विश्लेषकों का कहना है कि बुधवार को यदि इसकी घोषणा नहीं की गई तो अगस्त में पक्के तौर पर ऐसा होगा। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज प्राइमरी डीलरशिप के मुख्य अर्थशास्त्री ए. प्रसन्ना ने कहा, "हालांकि हमने अनुमान लगाया था कि रेपो रेट में पहली वृद्घि अगस्त में की जाएगी, लेकिन अब हमें लगता है कि एमपीसी जून में ही ऐसा करने जा रही है।"  आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक सोमवार को शुरू हो गई और इस बार यह दो दिन की जगह तीन दिन तक चलेगी। आशंका के मुताबिक यदि ब्याज दरें बढ़ा दी जाती हैं, तो देश की आर्थिक विकास दर पर इसका नकारात्मक असर हो सकता है।  यह मामला इसलिए गंभीर साबित होगा कि नवंबर, 2016 के बाद से लगातार कमजोरी के बाद जनवरी-मार्च तिमाही में अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटती नजर आई और विकास दर 7.7 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। देश की अर्थव्यवस्था पर पहले नोटबंदी और फिर अप्रत्यक्ष करों की नई प्रणाली जीएसटी लागू होने का गहरा असर हुआ, लेकिन धीरे-धीरे चीजें सामान्य होने लगीं। अब यदि ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं तो एक बार फिर विकास दर में गिरावट आ सकती है।  हालात ने बिगाड़ा माहौल  केंद्रीय बैंक की चिंता दूसरी है। महंगाई एक हद तक काबू में रहने और अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए रेपो रेट लंबे समय से 6 फीसदी के निचले स्तर पर रखा गया है। लेकिन, अब महंगाई एक बार फिर बढ़ने लगी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ने के बाद पेट्रोल और डीजल जैसे आम जरूरत के ईंधन महंगे होने से मुद्रास्फीति का दबाव आगे और बढ़ने की आशंका है।  कच्चा तेल महंगा होने के कारण इसका आयात करने वाली कंपनियों की तरफ से डॉलर की मांग बढ़ी है। इसका सीधा असर रुपए की विनियम दर पर हुआ। मसलन, 2018 में भारतीय रुपया एशिया की सबसे कमजोर प्रदर्शन करने वाली करेंसी हो गई, जो पिछले साल एशिया की सबसे मजबूत प्रदर्शन करने वाली करेंसी थी।  अचानक बदला अनुमान  जनवरी-मार्च तिमाही के लिए सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के आंकड़े आने से पहले रॉयटर्स की तरफ से कराए गए एक सर्वे में हिस्सा लेने वाले 60 में से 40 फीसदी प्रतिभागियों ने अनुमान लगाया था कि बुधवार को नीतिगत ब्याज दरें बढ़ाने की घोषणा की जाएगी, जबकि 44 में से करीब 70 फीसदी का कहना था कि अगस्त में ऐसा होगा। इससे पहले अप्रैल में किए गए सर्वे में मोटे तौर पर अंदाजा लगाया था कि 2019 की दूसरी छमाही से पहले ब्याज दरें नहीं बढ़ाई जाएंगी।  असल में वित्त वर्ष 2017-18 की चौथी तिमाही के लिए जीडीपी के शानदार आंकड़े आने के बाद करीब-करीब तय माना जा रहा है कि रेपो रेट अनुमान से पहले बढ़ा दिया जाएगा क्योंकि यह फिलहाल नवंबर, 2010 से लेकर अब तक के सबसे निचले स्तर पर है।  आशंका के 3 बड़े कारण  - जनवरी-मार्च तिमाही में विकास दर 7.7 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई।  - रेपो रेट नवंबर, 2010 से लेकर अब तक के सबसे निचले स्तर पर है।  - रुपया इन दिनों एशिया की सबसे कमजोर प्रदर्शन करने वाली करेंसी है।

आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक सोमवार को शुरू हो गई और इस बार यह दो दिन की जगह तीन दिन तक चलेगी। आशंका के मुताबिक यदि ब्याज दरें बढ़ा दी जाती हैं, तो देश की आर्थिक विकास दर पर इसका नकारात्मक असर हो सकता है।

यह मामला इसलिए गंभीर साबित होगा कि नवंबर, 2016 के बाद से लगातार कमजोरी के बाद जनवरी-मार्च तिमाही में अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटती नजर आई और विकास दर 7.7 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। देश की अर्थव्यवस्था पर पहले नोटबंदी और फिर अप्रत्यक्ष करों की नई प्रणाली जीएसटी लागू होने का गहरा असर हुआ, लेकिन धीरे-धीरे चीजें सामान्य होने लगीं। अब यदि ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं तो एक बार फिर विकास दर में गिरावट आ सकती है।

हालात ने बिगाड़ा माहौल

केंद्रीय बैंक की चिंता दूसरी है। महंगाई एक हद तक काबू में रहने और अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए रेपो रेट लंबे समय से 6 फीसदी के निचले स्तर पर रखा गया है। लेकिन, अब महंगाई एक बार फिर बढ़ने लगी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ने के बाद पेट्रोल और डीजल जैसे आम जरूरत के ईंधन महंगे होने से मुद्रास्फीति का दबाव आगे और बढ़ने की आशंका है।

कच्चा तेल महंगा होने के कारण इसका आयात करने वाली कंपनियों की तरफ से डॉलर की मांग बढ़ी है। इसका सीधा असर रुपए की विनियम दर पर हुआ। मसलन, 2018 में भारतीय रुपया एशिया की सबसे कमजोर प्रदर्शन करने वाली करेंसी हो गई, जो पिछले साल एशिया की सबसे मजबूत प्रदर्शन करने वाली करेंसी थी।

अचानक बदला अनुमान

जनवरी-मार्च तिमाही के लिए सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के आंकड़े आने से पहले रॉयटर्स की तरफ से कराए गए एक सर्वे में हिस्सा लेने वाले 60 में से 40 फीसदी प्रतिभागियों ने अनुमान लगाया था कि बुधवार को नीतिगत ब्याज दरें बढ़ाने की घोषणा की जाएगी, जबकि 44 में से करीब 70 फीसदी का कहना था कि अगस्त में ऐसा होगा। इससे पहले अप्रैल में किए गए सर्वे में मोटे तौर पर अंदाजा लगाया था कि 2019 की दूसरी छमाही से पहले ब्याज दरें नहीं बढ़ाई जाएंगी।

असल में वित्त वर्ष 2017-18 की चौथी तिमाही के लिए जीडीपी के शानदार आंकड़े आने के बाद करीब-करीब तय माना जा रहा है कि रेपो रेट अनुमान से पहले बढ़ा दिया जाएगा क्योंकि यह फिलहाल नवंबर, 2010 से लेकर अब तक के सबसे निचले स्तर पर है।

आशंका के 3 बड़े कारण

– जनवरी-मार्च तिमाही में विकास दर 7.7 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई।

– रेपो रेट नवंबर, 2010 से लेकर अब तक के सबसे निचले स्तर पर है।

– रुपया इन दिनों एशिया की सबसे कमजोर प्रदर्शन करने वाली करेंसी है।

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