जापान ने बुजुर्गों पर नजर रखने की गजब की योजना बनाई है। इस योजना के तहत बुजूर्गों के नाखून पर चिप लगाई जाएगी। हालांकि यह योजना उन बुजूर्गों के लिए है जो डिमेंशिया के शिकार हैं।
डिमेंशिया बीमारी के होने से इंसान को कुछ भी याद नहीं रहता है। वे अक्सर घर का रास्ता भूल जाते हैं और यह बीमारी बुजूर्गों में ज्यादा होती है। इस बीमारी के कारण वे घर का रास्ता भूलकर कभी खो न जाएं इसलिए उनके नाखूनों पर जापान ने चीप लगाने की योजना शुरू की है। इसके लिए टोक्यो की एक कंपनी ने खास स्टीकर बनाए हैं जिन्हें पैरों या हाथ के नाखून पर चिपकाया जा सकेगा। इन स्टीकर्स में एक खास बारकोड होता है जिसके जरिए ट्रैक किया जा सकता है और पता लगाया जा सकता है कि आपके दादा या दादी इस वक्त कहां हैं।
फ्री है यह योजना
यह योजना बिल्कुल मुफ्त है। हालांकि यह योजना पहले से भी है, लेकिन पहले कपड़ों और जूतों के स्टीकर लगाते थे। चिप में बुजूर्गों के घर का पता और फोन नंबर होगा। एक बार लगाई गई चिप दो हफ्ते तक रहती है। पानी में डूबने के बाद यह सलामत रहती है।
जापान ने बुजुर्गों पर नजर रखने की गजब की योजना बनाई है। इस योजना के तहत बुजूर्गों के नाखून पर चिप लगाई जाएगी। हालांकि यह योजना उन बुजूर्गों के लिए है जो डिमेंशिया के शिकार हैं।
डिमेंशिया बीमारी के होने से इंसान को कुछ भी याद नहीं रहता है। वे अक्सर घर का रास्ता भूल जाते हैं और यह बीमारी बुजूर्गों में ज्यादा होती है। इस बीमारी के कारण वे घर का रास्ता भूलकर कभी खो न जाएं इसलिए उनके नाखूनों पर जापान ने चीप लगाने की योजना शुरू की है।
इसके लिए टोक्यो की एक कंपनी ने खास स्टीकर बनाए हैं जिन्हें पैरों या हाथ के नाखून पर चिपकाया जा सकेगा। इन स्टीकर्स में एक खास बारकोड होता है जिसके जरिए ट्रैक किया जा सकता है और पता लगाया जा सकता है कि आपके दादा या दादी इस वक्त कहां हैं।
फ्री है यह योजना
यह योजना बिल्कुल मुफ्त है। हालांकि यह योजना पहले से भी है, लेकिन पहले कपड़ों और जूतों के स्टीकर लगाते थे। चिप में बुजूर्गों के घर का पता और फोन नंबर होगा। एक बार लगाई गई चिप दो हफ्ते तक रहती है। पानी में डूबने के बाद यह सलामत रहती है।
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