बिहार : बढ़ती महंगाई ने कमर तोड़ी चुनावी शोर में किसानों के हाल की कोई चर्चा तक नहीं हो रही

एक तो बाढ़ से फसल चौपट हो गई। जो फसल बची उसकी भी वाजिब कीमत नहीं मिल रही। बढ़ती महंगाई ने किसानों की कमर तोड़ दी। इसके बाद भी चुनावी शोर में किसानों के इस हाल की कोई चर्चा तक नहीं।

बेतिया के पन्ना लाल पटेल कहते हैं, किसान मेहनत-मजदूरी करता है, जैसे-तैसे फसल उगाता है। बाढ़ और मौसम से उसे बचाता है, लेकिन पैदावार की कीमत नहीं मिल पाती है। ऊपर से महंगाई खेती की लागत बढ़ा रही है। किसान सस्ता बेचता है, और जरूरत पर महंगा खरीदता है।

बेतिया के सागर पोखरा के किनारे एक पेड़ के नीचे कुछ लोगों के साथ चाय का इंतजार कर रहे जोगापट्टी निवासी धनलाल शाह कहते हैं, “सरकार भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगा पा रही है। ऊपर से पैसा आ रहा, पर नीचे के लोग खा जाते हैं। गेहूं, चावल, नमक तक सरकार भेज रही है, लेकिन नीचे कोई नहीं देता।

उत्तर बिहार में पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी समेत करीब 16 जिले बाढ़ से प्रभावित रहते हैं। यहां के लाखों किसानों की लाखों एकड़ फसल हर साल चौपट हो जाती है। यहां की चीनी मिलों पर किसानों का पैसा बकाया है। मोतिहारी के चरखा पार्क के पास आलू-प्याज की दुकान के बगल में बैठे अमरनाथ प्रसाद बताते हैं, महंगाई कमरतोड़ है। जमीन-जायदाद बेचकर किसी तरह बच्चे को पढ़ाया जाता है, लेकिन रोजगार नहीं मिलेगा तो वह क्या करेगा? पीएम मोदी ने पिछली बार कहा था कि अगली बार आएंगे तो मोतिहारी चीनी मिल की चीनी की चाय पीकर जाएंगे। आज तक कुछ नहीं हुआ। इसी बीच दुकानदार बोलते हैं, पांच किलो आलू-प्याज लेने वाला आदमी आज आधा किलो और एक किलो खरीद रहा है।

चंपारण से सीतामढ़ी के रास्ते किनारों पर अभी भी कई खेतों में पानी भरा है, जिसमें गन्ने की फसल सूखी हुई खड़ी दिखती है। किसान इस इंतजार में हैं कि खेत कब सूखे तो गेहूं की तैयारी करें। उधर, जो धान पैदा भी हुआ उसका सही मूल्य भी नहीं मिल रहा। बिहार सरकार ने 2006 में मंडी सिस्टम खत्म कर दिया था, कुछ एजेंसियां किसानों को सीधे खरीद करती हैं, बाकी किसान व्यापारियों को सीधे बेचते हैं। कभी गन्ने की खेती ज्यादा होती थी, जो चीनी मिलें पहले चलती थीं, वह धीरे-धीरे बंद होती चली गईं। किसानों का भुगतान सालों लटकने लगा तो किसान उससे दूर भागने लगे।

सीतामढ़ी के रहने वाले रंजीत मिश्र कहते हैं, शिवहर और सीतामढ़ी के लिए रीगा चीनी मिल धरोहर है। इस क्षेत्र में करीब 50,000 गन्ना किसान हुआ करते थे। लेकिन सरकार के ध्यान न देने से मिल की स्थिति दयनीय होती जा रही है, इसलिए गन्ना किसानों का भुगतान नहीं हो पा रहा है, कोरोना काल कहके प्रबंधन ने नो वर्क नो पे कर दिया। सीतामढ़ी के राम सेवक महतो किसानों की दुर्दशा बताते हैं कि सबसे ज्यादा धान की खेती होती है, इस साल दोनों फसलों में से कुछ भी नहीं हुआ। रीगा चीनी मिल से भुगतान नहीं हुआ। किसान मजबूरी में मजदूरी कर रहा है। कोरोना में बाहर से लौट कर वापस आए मजदूर भी बैठे हुए हैं।

माता सीता की जन्मस्थली के अपेक्षित विकास न होने, बाढ़ के दौरान मंदिर के आसपास पानी भर जाने के बाद निकास की व्यवस्था न होने से आने वाली दिक्कतें बताते चाय की दुकान पर बैठे राम सकल कहते हैं, पहले की सरकारों ने माता जानकी की जन्मस्थली की देखरेख नहीं की। पहले यह सब खंडहर था, पानी से भरा हुआ था। बाढ़ आने पर मंदिर के चारों ओर चार फीट पानी भर जाता है, निकास न होने से आसपास तालाबों में जलकुंभी जमा हो गई है।

सड़क की जर्जर हालत है। राम सकल आगे कहते हैं, चिराग पासवान आए थे तो यहां के विकास की बात की। हम भी आश्वासन में जी रहे हैं, पर क्या करेंगे क्या नहीं ये तो बाद की बात है। विकास फाइलों में ही रह जाता था, अब थोड़ा-बहुत ध्यान दिया जा रहा है। सीतामढ़ी निवासी राम सकल कहते हैं, हमें रोजगार चाहिए। सरकार को उद्योग पर ही फोकस करना चाहिए। यहां पर कोई उद्योग नहीं है।

बेतिया के जोगापट्टी गांव के धनलाल शाह कहते हैं, रोड, नल, जल, बिजली पर तो काम हुआ है, पर भ्रष्टाचार नहीं रुक रहा, हमारे गांव की सड़क का काम करीब 9 महीने पहले से बंद है। सुनते हैं ठेकेदार रुपया लेकर भाग गया। ऊपर से पैसा आ रहा पर नीचे के लोग खा जाते हैं। सरकार भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगा पा रही है।

बेतिया में पास में ही खड़े दीपक पटेल कहते हैं, ये लोग बहुत देर से जगे हैं, चाहते तो पहले भी सुधार हो सकता था। प्राइवेट डॉक्टर मनमानी फीस लेते हैं। उन पर कोई पाबंदी नहीं है। जांच का कमीशन तय होता है। वहीं दीपक पटेल की बात को काटते हुए मनीष कुमार कहते हैं, धीरे-धीरे काम होगा, अभी अस्पताल बन रहा है। हम नहीं चाहते फिर फिर से लूटपाट शुरू हो।

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