हाथरस में चंदपा थाने से महज दो किमी दूरी पर बसा है बिटिया का गांव। जिसमें चार परिवार अनुसूचित जाति के हैं जो बेटी के समाज से ही ताल्लुक रखते हैं। सात परिवार पिछड़ा वर्ग से और बाकी ब्राह्मण व क्षत्रिय परिवार हैं। घटना के पहले तक गांव का माहौल ऐसा नहीं था। अब तो गांव की सीमा में प्रवेश करने पर और गांव की हर गली व चौपाल पर नजर डालते ही जातीय तनाव साफ दिखाई देता है। मानो पूरा गांव जातीय तनाव के बोझ तले दब गया है।
सौहार्द पूरी तरह से गायब है। इस घटना के बाद से यहां जिन लोगों का भी डेरा या आवाजाही है, उन्हें इस तनाव की फिक्र कम, ‘मसाले’ की चिंता ज्यादा है। यह हम नहीं, गांव के हर वो बड़े बुजुर्ग कह रहे हैं जो इस दंश को झेल रहे हैं और हालात को लेकर चिंतित हैं।
बात शुरू करते हैं बिटिया के गांव को जाने वाले रास्ते के मुहाने से। पुलिस प्रशासनिक सिस्टम ने इस कदर रास्ते को बैरिकेड कर रखा है, मानो किसी एसपीजी प्रोटेक्टी को सुरक्षा दी जा रही है। गांव वालों को बाकायदा पहचान पत्र से प्रवेश दिया जा रहा है। मीडिया को भी कुछ इसी तरह प्रवेश मिल रहा है।
सियासी लोगों को पांच-पांच संख्या में पुलिस निगरानी में ले जाया जा रहा है। इस हायतौबा के बीच गांव आने वाले नाते-रिश्तेदार, मित्र परिचितों की आवाजाही पूरी तरह बंद है। हां, बेटी के घर जरूर इक्का-दुक्का रिश्तेदार संवेदना व्यक्त करने पहुंच जा रहे हैं। उन्हें भी पुलिस के तमाम सवालों से गांव के मुहाने पर ही दो-चार होना पड़ता है।
फिर डेढ़ किमी पैदल चलकर गांव में प्रवेश करते ही, वहां का सन्नाटा तनाव की गवाही देने लगता है। गांव के किसी व्यक्ति के पांव बेटी के परिवार की ओर पड़ते नहीं दिखते। हर दरवाजा अंदर से या तो बंद दिखाई देगा या फिर खुला होगा तो सन्नाटा पसरा होगा। गांव में घूमकर जब कुछ बड़े बुजुर्गों से बात हुई तो एक ही जवाब आया कि जो कुछ हुआ और जो कुछ हो रहा है, बहुत गलत हो रहा है। हमने तो अपने बच्चों व महिलाओं को बेवजह घरों से बाहर निकलने की मनाही कर दी है। गांव के अंतिम छोर पर स्कूल के पास एक परचून की दुकान भी सन्नाटे में डूबी थी।
कुछ घर ऐसे जरूर हैं जिनके दरवाजों पर चाय पानी, मोबाइल चार्ज करने की व्यवस्था हो रही है। मगर वह सिर्फ पुलिसकर्मियों के लिए है। ये वे घर हैं, जिनके घरों के लोग पुलिस सेवा में तैनात हैं। इस नाते गांव में ड्यूटी दे रहे पुलिसकर्मियों को वहां हर तरह की मदद मिल रही है।
देश दुनिया की मीडिया का इस समय बिटिया के घर में डेरा है। उसके यहां कुछ रिश्तेदारों के अलावा दिन भर सियासी लोगों की आवाजाही रहती है। बेटी के घर में तो खाना पीना परिवार के लोगों के यहां से पहुंच रहा है। मीडिया के लिए भी बगल के परिवार में ही चाय पानी का इंतजाम है और एक टिनशेड में उनको बैठने, लेटने तक की व्यवस्था कर दी गई है।