पिछले दिनों हुई बारिश व ओलावृष्टि ने किसानों की कमर तोड़कर रख दी है। कुछ फसलें खेत में नष्ट हुईं, तो कुछ दागी हो गईं। अब उन दागी फसलों को ग्राहक ही नहीं मिल रहे हैं।
इस कारण किसानों को अपनी फसल बाजार में ही फेंकनी पड़ रही है। ऐसा ही कुछ देखने को मिला शुक्रवार को बेड़ो सब्जी मंडी में। सब्जी मंडी में बड़ी संख्या में किसान अपनी मटर की फसल को बेचने के लिए लाए थे।
लेकिन बारिश व ओलावृष्टि के कारण मटर पर दाग हो गए थे। इस कारण उनकी फसल को व्यापारी खरीद नहीं रहे थे, दो रुपये किलो के भी खरीदार नहीं मिले।
शुक्रवार को बाजार में पूर्णत: फ्रेश मटर 8-10 रुपये प्रति किलोग्राम बिके। जबकि मध्यम दर्जे के मटर की कीमत 2-3 रुपये प्रति किलो रही। दागी मटर को व्यापारी लेने को बिल्कुल ही तैयार नहीं थे।
दो रुपये से नीचे का भाव भी नहीं मिल रहा था। रांची ले जाने में प्रति बोरा 40-50 रुपये का खर्च था। व्यापारियों के अनुसार रांची ले जाने में रास्ते में यह और भी खराब हो जाता और लागत निकलनी भी मुश्किल थी।
ऐसे में इसे रांची ले जाकर फेंकने की नौबत आ सकती थी। इसलिए व्यापारियों ने इसे खरीदना मुनासिब नहीं समझा। बेड़ो में रांची, रामगढ़, छत्तीसगढ़ एवं ओडिशा से व्यापारी पहुंचते हैं। वर्षा के कारण मंडी में मटर की आवक बढ़ी, जबकि खरीदार इस अनुपात में नहीं पहुंच सके।
किसान खिलेश्वर उरांव सकरपदा, लेदु उरांव सरवा, लेदा उरांव बांडी, बिहारी भगत, तुलसी भगत सरवा, एतवा उरांव पचपदा ने रुंआसा होकर कहा कि बारिश और ओला से तैयार फसलों को काफी नुकसान हुआ है। इन्हें बाजार इस उम्मीद में लेकर आए थे कि शायद थोड़े बहुत दाम मिल जाएं लेकिन निराशा ही हाथ लगी। अब वापस घर ले जाने में भाड़ा क्यों लगाएं, ऐसे में इन्हें फेंकने के सिवा उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं।
व्यापारी रमेश साहू, रामेश्वर साहू और सुंदर साहू का कहना था कि पानी व पत्थर से दागी मटर बाहर की मंडी में अगर भेजते, तो वहां पहुंचते-पहुंचते मटर में सडऩ हो जाती। बाहर की मंडी में पहुंचने के बाद भी इसके खरीदार नहीं मिलते। इस कारण वे इसकी खरीदारी नहीं कर सकते थे।
मटर बाजार में फेंके जाने के बाद स्थानीय लोगों में उसे उठाकर घर ले जाने के लिए होड़ मच गई। जिसे जो मिला लोग उसमें भरकर मटर अपने घर ले गए। कोई प्लास्टिक में भर रहा था, तो कोई झोला या बोरा में। वहीं, बाजार में घूम रहे मवेशियों ने भी मटर का जमकर लुत्फ उठाया।