सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले के आपराधिक मुकदमे में हो रही देरी पर चिंता जताते हए सीबीआई से पूछा है कि लखनऊ और रायबरेली के मुकदमों को एक ही कोर्ट में क्यों न चलाया जाए?
लखनऊ हाईकोर्ट में मामला बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने से जुड़ा है जबकि रायबरेली कोर्ट में मामला भीड़ को उकसाने का है. लखनऊ कोर्ट इस मामले में साज़िश की धारा हटाने से लाल कृष्ण आडवाणी, उमा भारती, कल्याण सिंह जैसे बड़े नेताओं को राहत दे चुकी है.
बचाव पक्ष की दलील थी कि 2010 में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सीबीआई ने 9 महीने की देरी से अपील की थी. देरी के आधार पर इस मामले को खारिज कर दिया जाना चाहिए. लेकिन सर्वोच्च अदालत ने कहा कि केवल टेक्निकल ग्राउंड पर आरोपी नेताओं को राहत नहीं दी जा सकती है. रायबरेली के मामले में सभी धाराएं बरकरार हैं. अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट की 22 मार्च की सुनवाई पर है.
यह निर्णय जस्टिस आर एस नरीमन और पी से घोष ने सीबीआई की याचिका सुनने के बाद दिया. इसमें सीबीआई ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को चैलेंज करने की बात की थी.
22 मार्च की सुनवाई में फैसला होगा कि 25 साल पुराने इस मामले में आरोपी बीजेपी नेताओं पर फिर से केस चलेगा या नहीं? इस मामले से जुड़े अहम आरोपियों में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह इस समय राजस्थान के राज्यपाल हैं, वहीँ उमा भारती केंद्र में मंत्री हैं, मुरली मनोहर जोशी कानपुर से तथा लालकृष्ण आडवाणी गांधीनगर से सांसद हैं.
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