बांस उत्पादन के मामले में देश दूसरे नंबर पर है, लेकिन बांस उत्पादों के स्वदेशी बाजार पर चीन और वियतनाम का कब्जा है। भारत में बांस धीरे-धीरे ही सही, रोजगार के अवसर सृजित कर रहा है। अब नवोन्मेष, प्रशिक्षण, प्रोत्साहन और बेहतर बाजार की दरकार है। भारत ने गैर वन क्षेत्रों में भी बांस की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए कानूनी सुधार 2017 में किया, ताकि रोजगार के अधिकाधिक अवसर सृजित हो सकें।
एक अनुमान के अनुसार विश्व अर्थव्यवस्था में बांस का योगदान करीब 851 अरब रुपये है। विकासशील देश ही इसमें अग्रणी भूमिका में हैं। बांस की प्राकृतिक सुंदरता के कारण इसकी मांग सौंदर्य और डिजाइन की दुनिया में तेजी से बढ़ रही है। इसके अलावा प्लास्टिक और लकड़ी के उपयोग को बांस के द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने का भी प्रयास तेज हुआ है। देश का उत्तरपूर्वी क्षेत्र बांस उत्पादन में समृद्ध है, जहां देश का 65 प्रतिशत और विश्व का 20 प्रतिशत बांस उत्पादित होता है। हालांकि अब देश के अन्य भागों में भी बांस के बूते समृद्धि और संभावनाओं की राह खोजी जा रही है
उत्तरी बंगाल में बांस के पेड़ बहुतायत हैं। बांस की तीलियां (स्टिक) बनाकर इन्हें देश के विभिन्न बाजारों में पहुंचाने में जलपाईगुड़ी निवासी सुब्रत घराई की सफलता को प्रेरक माना जा सकता है। सुब्रत ने जलपाईगुड़ी में ही बैंबू स्टिक बनाने का कारखाना स्थापित कर अनेक लोगों को रोजगार मुहैया कराया है। उन्होंने कारखाने में लगाई गई मशीनें भी खुद ही बनाई हैं।
मैकेनिकल इंजीनियर सुब्रत कहते हैं, भारत में प्रतिवर्ष तीन लाख 20 हजार मीट्रिक टन बांस स्टिक की खपत है। इसका 70 प्रतिशत चीन और वियतनाम से आता है। अकेले चीन ही 60 हजार मीट्रिक टन स्टिक की आपूर्ति करता है। वहीं, वियतनाम 800 करोड़ रुपये की तीलियों (अगरबत्ती में इस्तेमाल होने वाली) की आपूर्ति कर रहा है। सुब्रत की मानें तो बांस की तीलियों पर ही ध्यान केंद्रित कर दिया जाए तो चीन और वियतनाम जैसे देशों पर निर्भर नहीं रहना होगा। लोगों को रोजगार भी मुहैया हो सकेगा। सुब्रत फिलहाल अगरबत्ती में इस्तेमाल होने वाली तीलियों के अलावा कबाब स्टिक और आइसक्रीम स्टिक भी तैयार कर रहे हैं। इनकी देश के विभिन्न हिस्सों में आपूर्ति करते है।