पर्वों पर परिधानों का विशेष महत्व होता. अलग-अलग पर्वों के मुताबिक परिधानों में भी बदलाव देखने को मिलता है. अगर पर्व राष्ट्रीय हो तो आबोहवा में देशभक्ति और तिरंगा का रंग घुल जाता है. पूरी दुनिया में रेशम के धागों से बनी बनारसी साड़ी के लिए मशहूर शहर बनारस में इस बार स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कुछ ऐसी ही तैयारी है. दुकानों पर आई रेशमी तिरंगे वाली साड़ियों पर न केवल भारत के नक्शा वाली डिजाइन है, बल्कि बॉयकॉट चाइना का भी संदेश उकेरा गया है. इसकी बेहद डिमांड है.
इस बार 74वें स्वतंत्रता दिवस पर महिलाएं खास तैयारी में जुटी हैं, क्योंकि उन्हें बाजार में रेशमी तिरंगे धागों वाली बनारसी साड़ी मिल रही है. इस पर न केवल भारत का नक्शा बल्कि जय हिंद-जय भारत भी लिखा है. बॉयकॉट चाइना लिखी साड़ी भी रेशमी तिरंगे धागों से बुनी हुई है.
ऐसी ही साड़ियों की खरीदारी करती अदिबा रफत बताती हैं कि वे हथकरघा की बनी साड़ियां पसंद करती हैं और 15 अगस्त के मौके पर कुछ खास चाह रही थीं तो उनको तिरंगे वाली बनारसी साड़ी मिल गई. इस पर भारत के नक्शे पर ‘जय हिंद-जय भारत’ लिखा है. इसे उन्होंने खरीद लिया. अदिबा ने बताया कि ऐसी साड़ी को पहनकर काफी गर्व महसूस होगा और वे इस बार 15 अगस्त इसी को पहनकर मनाएंगी.
वहीं एक अन्य खरीदार प्रांशिका ने बताया कि चूंकि भारत-चीन विवाद के दौरान बॉयकॉट चाइना का मुद्दा भी चल रहा है. उसी से संबंधित रेशमी तिरंगे धागों की बनी बनारसी साड़ी पर भी बॉयकॉट चाइना का संदेश लिखा हुआ है. इस 15 अगस्त से अच्छा मौका इस साड़ी को पहनने का नहीं हो सकता कि हमें चीनी उत्पाद का बहिष्कार कर देना चाहिए. खास बात यह भी है कि इस साड़ी में चाइना रेशम का इस्तेमाल न होकर भारतीय रेशम ही लगाया गया है. इसलिए उन्होंने यह साड़ी ली है.
साड़ी विक्रेता सर्वेश बताते हैं कि बनारसी साड़ी पारंपरिक रूप से बनती चली आ रही है, लेकिन उनकी सोच है कि समसायिक घटनाओं को भी बनारसी साड़ी से जोड़ा जाए. इसी सोच के साथ तिरंगे की साड़ी में भगवा रंग के आंचल पर भारत का नक्शा बनवाकर जय हिंद-जय भारत बुनकरों ने उकेरा है.
सर्वेश ने बताया कि इस साड़ी का मकसद राष्ट्र के प्रति देश भक्ति और प्रेम का प्रदर्शन. इसके अलावा तिरंगे की दूसरी साड़ी पर बॉयकॉट चाइना के जरिये स्वदेशी अपनाने का संदेश दिया गया है. ये दोनों ही साड़ियां भारतीय रेशम से तैयार की गई हैं. इन साड़ियों की ऑनलाइन, ऑफलाइन डिमांड देखने को मिल रही है.
सर्वेश के मुताबिक दोनों ही साड़ियों में भारतीय कतान, भारतीय टिसू और गोल्डन जरी लगी हुई है. यह साड़ी पूरी तरह से हथकरघा पर लगभग एक महीने की मेहनत के बाद बुनकरों ने तैयार की है. उन्होंने बताया कि वैसे तो इन साड़ियों को कीमत से नहीं आका जा सकता, लेकिन इनकी लागत लगभग 10 हजार रुपया पड़ी है. इन साड़ियों से कमाई का कुछ हिस्सा पीएम केयर्स फंड या कोरोना वॉरियर्स के लिए भी डोनेट किया जाएगा.