स्तन कैंसर के मामले देशभर में तेजी से बढ़ रहे हैं। महिलाओं में होने वाले कुल कैंसर में 30 से 40 फीसद स्तन कैंसर के मामले पाए जा रहे हैं। बदलती जीवनशैली के कारण कम उम्र की लड़कियां भी इसका शिकार हो रहीं हैं। सबसे जरूरी है कि बीमारी की पहचान पहले चरण में हो। मेमोग्राफी की नई तकनीक स्तन कैंसर की पहचान में बेहद कारगर है। ये बातें बेंगलुरु से आर्ईं वरिष्ठ कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. रूपा अंनत ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कहीं। वे ब्रेस्ट इमेजिंग सोसायटी के तत्वावधान में शुक्रवार को ज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करने पटना आई हुई थीं।
पहले चरण में पहचान पर शत प्रतिशत इलाज
डॉ.रूपा बताती हैं कि स्तन कैंसर की पहचान प्रथम चरण में होना बहुत जरूरी है। इसके लिए महिलाओं को जागरूक रहना होगा। अगर प्रथम चरण में स्तन कैंसर की पहचान हो जाती है तो इससे घबराने की कोई जरूरत नहीं है। इस तरह के कैंसर को पूर्ण रूप से ठीक किया जा सकता है। द्वितीय चरण में कैंसर की पहचान होने पर भी 80 फीसद तक बीमारी का इलाज संभव है। मरीज के तीसरे या चौथे चरण में जाने पर, उसे बचाना काफी मुश्किल होता है।
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40 की उम्र के बाद स्वयं करें स्तन का परीक्षण
ग्रेटर नोएडा के जेपी हॉस्पिटल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ.पारुल गर्ग बताती हैं कि चालीस वर्ष से अधिक उम्र होने पर हर महिला को अपने स्तनों का परीक्षण प्रतिदिन स्वयं करना चाहिए। अगर स्तन में किसी तरह की गांठ दिखाई दे, तो सबसे पहले महिला रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए। महिला रोग विशेषज्ञ से परामर्श के बाद कैंसर रोग विशेषज्ञों की सलाह लेनी चाहिए।
प्रथम चरण में स्तन में मात्र दो सेंटीमीटर की गांठ होती है, लेकिन सही समय पर पहचान नहीं होने के कारण इसमें वृद्धि होती चली जाती है। दूसरे चरण में गांठ दो से पांच सेंटीमीटर तक हो जाती है। तृतीय चरण में गांठ 5 सेंटीमीटर से भी बड़ी हो जाती है। चौथे चरण में बीमारी स्तन से निकल कर शरीर के अन्य भागों में फैलने लगती है। इस समय बीमारी को कंट्रोल करना काफी मुश्किल होता है।
हर गांठ का मतलब कैंसर नहीं
दिल्ली से आई कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. एकता धमिजा ने कहा कि स्तन में पाई जाने वाली हर गांठ कैंसर की निशानी नहीं है। कई गांठें दूसरे कारणों से भी होती हैं और स्वत: कुछ दिनों में समाप्त हो जाती हैं। ऐसी गांठों से मरीजों को घबराने की कोई जरूरत नहीं है, लेकिन स्तन के किसी भी गांठ की पहचान बहुत जरूरी है। मेमोग्राफी के माध्यम से स्तन कैंसर की पहचान होती है। अगर स्तन कैंसर के संकेत मिलते हैं, तो बायोप्सी कराई जाती है। कई बार इसकी भी जरूरत नहीं होती है। बीमारी की पूरी तरह से पहचान होने पर ही सर्जरी कराने का निर्णय लेना चाहिए।
देर से शादी भी बीमारी का बड़ा कारण
कोलकाता से आईं डॉ.सोमा चक्रवर्ती कहती हैं, जीवनशैली में बदलाव स्तन कैंसर होने का बड़ा कारण है। आजकल लड़कियों की शादी देर से होने लगी है। बच्चे भी देर से होते हैं। होते भी हैं तो एक या दो। इसके अलावा लोगों का खान-पान एवं रहन-सहन भी काफी बदल चुका है। कई माताएं स्तनपान से भी परहेज कर रही हैं, इसके कारण भी स्तन कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। समारोह में आए अतिथियों का स्वागत एम्स पटना के रेडियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ.प्रेम कुमार ने किया। सम्मेलन शनिवार को भी जारी रहेगा।
अभी सिर्फ पटना में ही ममोग्राफी की सुविधा
पीएमसीएच के वरिष्ठ रेडियोलॉजिस्ट डॉ.अमर कुमार सिंह ने कहा कि प्रत्येक प्रखंड एवं जिला स्तर पर मेमोग्राफी की सुविधा होनी चाहिए ताकि कोई भी महिला आसानी से अपनी जांच करा सकें। वर्तमान में सूबे में केवल राजधानी में मेमोग्राफी की सुविधा है। महिला रोग विशेषज्ञों को भी स्तन कैंसर के प्रति जागरूक करने की जरूरत होती है, क्योंकि सबसे पहले महिलाएं स्त्री रोग विशेषज्ञों के पास पहुंचती हैं। अगर स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सक स्तन कैंसर की पहचान कर लेती हैं, तो बीमारी प्रथम चरण में ही पकड़ में आ जाएगी और उसका समुचित इलाज किया जा सकता है। देर से पहचान होने पर ही बीमारी का इलाज मुश्किल होता है।
यहां है मेमोग्राफी की सुविधा
पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (पीएमसीएच), इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आइजीआइएमएस), ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स, पटना), महावीर कैंसर संस्थान, फुलवारीशरीफ।