अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के ग्रोथ अनुमान घटाने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक और नकारात्मक खबर आई है. इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च ने कहा है कि अगले वित्त वर्ष यानी 2020-21 में भी देश की विकास रफ्तार सुस्त रह सकती है. इंडिया रेटिंग्स के मुताबिक देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सिर्फ 5.5 फीसदी बढ़त होने का अनुमान है.
मौजूदा वित्त वर्ष यानी 2019-20 की हालत तो खराब ही है. हाल में IMF ने इस वित्त वर्ष यानी 2019-20 में भारत के जीडीपी में 4.8 फीसदी और भारत सरकार के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) ने 5 फीसदी का बढ़त होने का अनुमान लगाया था. अब इंडिया रेटिंग्स के अनुसार, अगले साल भी इसमें इस साल के मुकाबले मामूली बढ़त होगी.
क्या कहा एजेंसी ने
गौरतलब है कि इसके पहले पिछले साल नवंबर महीने में फिच समूह की इस रेटिंग एजेंसी ने भारत के जीडीपी में इस वित्त वर्ष यानी 2019-20 में जीडीपी में 5.6 फीसदी की बढ़त होने का अनुमान लगाया था. एजेंसी का कहना है कि पहले उसे लगता था कि अगले वित्त वर्ष में कुछ सुधार होगा, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था कम खपत और कम निवेश मांग के दौर में फंसती दिख रही है.
इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के इकोनॉमिस्ट सुनील सिन्हा ने कहा, ‘हमें उम्मीद थी कि वित्त वर्ष 2021 में कुछ सुधार होगा, लेकिन जोखिम बना हुआ है जिसकी वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था कम खपत और कमजोर मांग के चक्र में फंसती दिख रही है.’
सिन्हा ने कहा, ‘घरेलू मांग चक्र को दोबारा जगाने और अर्थव्यवस्था को ऊंची वृद्धि के दौर में लौटाने के लिए सरकार की ओर से मजबूत पॉलिसी पर जोर दिए जाने की जरूरत है. लेकिन वैश्विक ट्रेंड दबाव में हैं, पूरी दुनिया में निर्यात प्रभावित हुआ है इससे भारत के निर्यात पर भी बुरा असर पड़ा है. ये सब कारण भी भारतीय जीडीपी को नीचे लाने के लिए जिम्मेदार हैं.’
और गिरेगा रुपया
दुनिया भर में जिस तरह की आर्थिक परिस्थितियां हैं उनमें रूपया और नीचे गिर सकता है. एजेंसी ने अपनी रिसर्च में हाईलाइट किया कि सरकार ने अर्थव्यवस्था को उठाने के लिए कई कदमों का एलान किया लेकिन उनसे मध्यम तौर पर भी मदद मिलेगी.
लक्ष्य से ज्यादा होगा वित्तीय घाटा
अब जब सकी नज़रें आने वाले बजट पर है, रेटिंग एजेंसी ने अनुमान लगाया है कि टैक्स और गैर टैक्स राजस्व में गिरावट से वित्तीय घाटा वित्त वर्ष 2020 में 3.6% (बजट में 3.3%) तक आ सकता है. ये स्थिति तब है जब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने सरप्लस ट्रांसफर किया है.
सरकार का टैक्स राजस्व संग्रह साल दर साल घटता जा रहा है, इससे सरकार के पास खर्च बढ़ाने की बहुत कम गुंजाइश रह जाती है.
सिन्हा ने उन जोखिमों का ज़िक्र किया जिनसे आने वाले महीनों में देश को जूझना पड़ सकता है.
जोखिम नंबर 1- मंहगाई
खाद्य सामानों की मंहगाई फिर सिर उठा सकती है. इससे लोगों की बचत में कटौती होगी.
जोखिम नंबर 2- बैंकिंग सेक्टर में बढता NPA
ऐसे समय में जब बैंकिंग सेक्टर को अहम सांगठनिक बदलावों के साथ गैर निष्पादित संपत्तियों (NPA) यानि खराब लोन की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, आने वाले साल में भी अर्थव्यवस्था को मुश्किल दौर से गुजरना पड़ेगा.
जोखिम नंबर 3- निजी कॉरपोरेट निवेश का टोटा
सिर्फ सरकार अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करे, ये विचार अब भारत के लिए पर्याप्त नहीं होगा. इस वक्त जरूरत निजी कॉरपोरेट्स की ओर से निवेश शुरू किए जाने की है जिससे अर्थव्यवस्था को पुश दिया जा सके. सरकार अपनी नीतियों से निश्चित करे कि कॉरपोरेट जितनी जल्दी हो सकें निवेश करना शुरू करें.