बिहार के गहलौर में पहाड़ को काटकर सड़क बनाने वाले दशरथ मांझी के बारे में तो आपने जरूर सुना होगा। कुछ इसी तर्ज पर प्रतापपुर गांव में द्वारिका सोनकर ने छह बीघे कंकरीले टीले को काटकर साढ़े तीन बीघा समतल खेत तैयार कर दिया। वह अनवरत 40 साल से टीले की खोदाई कर रहे हैं। समतल किए गए खेत में अब गेहूं की फसल लहलहा रही है।
65 वर्ष की उम्र में अब भी टीले पर चला रहे फावड़ा
ऊंचा कंकरीला टीला, जिस पर फावड़ा पड़ते ही दूर तक आवाज सुनी जा सकती है। ऐसी आवाजें हर सुबह गूंजती हैं। ऐसा करीब 40 साल से होता चला आ रहा है। फावड़ा चलाने वाले बिंदकी तहसील के गांव प्रतापपुर के द्वारिका सोनकर हैं। उम्र भले ही 65 वर्ष हो गई हो, लेकिन सुबह कम से कम दो घंटे टीले की खोदाई किए बिना उनका मन नहीं मानता।
कक्षा पांच के बाद छूट गई थी पढ़ाई
वह बताते हैं, बचपन में मां गुजर गई। सौतेली मां की उपेक्षा से 1965 में कक्षा पांच पास करने के बाद पढ़ाई छूट गई। मजदूरी करने के लिए 10 किलोमीटर पैदल चलकर ङ्क्षबदकी आना पड़ता था। 20 वर्ष की उम्र में पिता ने शादी कर दी। इसी के साथ रोटी की जद्दोजहद तेज हो गई। पिता ने ङ्क्षरद नदी किनारे छह बीघे का कंकरीला टीला सौंप दिया। अब करते भी तो क्या, उठा लिया फावड़ा। खेत बनाने के लिए टीले को तोडऩा शुरू किया। छह बीघे टीले को तोड़कर करीब साढ़े तीन बीघा समतल खेत बना चुके हैं। इसमें धान, गेहूं के अलावा उर्द-मूंग की भी फसल होती। बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है, जबकि एक बेटा-बेटी साथ रहते हैं। गांव के लोग भी उनके हौसले की सलाम करते हैं।
राजगीरी कर चलाया परिवार
द्वारिका ने परिवार का पालन पोषण करने के लिए राजगीर का काम सीखा। सुबह टीले पर फावड़ा चलाने के साथ ही राजगीरी की। हालांकि अब उनका बेटा राजगीरी का काम कर रहा है।
गांव वालों को करके दिखाया
द्वारिका बताते हैं कि जह टीले पर खोदाई शुरू की तो ग्रामीणों ने कहना शुरू किया कि बिना सरकारी मदद के कुछ नहीं हो पाएगा। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। कहते हैं, मेहनत और लगन से कोई भी काम असंभव नहीं है।