प्रेग्नेंसी और मेनोपॉज महिलाओं में कैसे ये 3 हार्मोनल बदलाव बढ़ाते हैं जानें

महिलाओं का शरीर जीवनभर कई तरह के हार्मोनल बदलावों से गुजरता है- कभी उम्र के साथ आने वाले बदलाव, कभी प्रेग्नेंसी, तो कभी सेहत से जुड़ी किसी समस्या के कारण। इन बदलावों का असर सिर्फ मूड या एनर्जी पर ही नहीं होता, बल्कि शरीर के ब्लड शुगर को नियंत्रित करने की क्षमता पर भी गहरा प्रभाव डालता है।

इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स के एंडोक्राइनोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. सप्तर्षि भट्टाचार्य का कहना है कि यही कारण है कि कई बार महिलाओं में डायबिटीज से जुड़े लक्षण अनदेखे रह जाते हैं और समय पर पहचान मुश्किल हो जाती है। आइए, विस्तार से जानते हैं इस बारे में।

जब हार्मोनल असंतुलन बढ़ाता है इंसुलिन रेजिस्टेंस

PCOS यानी पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम केवल पीरियड्स या फर्टिलिटी से जुड़ी समस्या नहीं है। इससे शरीर में इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता कम हो सकती है, जिसे इंसुलिन रेजिस्टेंस कहते हैं। ऐसी स्थिति में शरीर को शुगर को एनर्जी में बदलने के लिए ज्यादा इंसुलिन की जरूरत पड़ती है।

धीरे-धीरे यह असंतुलन आगे चलकर डायबिटीज का खतरा बढ़ा सकता है। इसलिए PCOS को एक ऐसे संकेत के रूप में समझना जरूरी है जो महिला की लंबी अवधि की मेटाबॉलिक सेहत को प्रभावित कर सकता है।

जेस्टेशनल डायबिटीज

प्रेग्नेंसी में शरीर में होने वाले बदलाव सामान्य दिनों की तुलना में अलग तरह की जरूरतें पैदा करते हैं। इस दौरान इंसुलिन की मांग बढ़ जाती है। अगर शरीर इस अतिरिक्त मांग को पूरा नहीं कर पाता, तो जेस्टेशनल डायबिटीज विकसित हो सकती है।

समय रहते इसका पता चल जाए तो मां और बच्चे दोनों को सुरक्षित रखा जा सकता है, लेकिन अनदेखा करने पर यह खतरनाक साबित हो सकता है। यही वजह है कि गर्भावस्था के दौरान नियमित जांच और सही जानकारी बेहद जरूरी है।

एस्ट्रोजन का कम होना

मेनोपॉज की अवस्था में एस्ट्रोजन का स्तर धीरे-धीरे कम होने लगता है। यह हार्मोन शरीर को इंसुलिन के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है। जब इसका स्तर गिरता है, तो:

वजन तेजी से बढ़ सकता है

शुगर लेवल अचानक ऊपर-नीचे हो सकता है

शरीर की ऊर्जा और मेटाबॉलिज्म धीमे पड़ सकते हैं

यह सब मिलकर ब्लड ग्लूकोज नियंत्रण को कठिन बना देता है और डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है।

क्यों आज भी है जागरूकता की कमी?

हालांकि इन सभी हार्मोनल चरणों और डायबिटीज के बीच संबंध अच्छी तरह से समझे जा चुके हैं, फिर भी महिलाओं में मेटाबॉलिक हेल्थ को उतनी प्राथमिकता नहीं मिली है जितनी मिलनी चाहिए।

इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे:

महिलाओं के स्वास्थ्य पर शोध अपेक्षाकृत कम हुआ है।

हार्मोनल बदलावों को अक्सर ‘सामान्य’ मानकर नजरअंदाज कर दिया जाता है।

डायबिटीज को अधिकतर एक समान बीमारी मानकर चलाया जाता है, जबकि महिलाओं में इसके लक्षण और कारण अलग हो सकते हैं।

इस वजह से जेंडर्ड अवेयरनेस यानी महिलाओं के लिए अलग तरह की स्वास्थ्य समझ अब भी सीमित है।

समय पर पहचान है जरूरी

डॉक्टर का मानना है कि महिलाओं को अपने बदलते हार्मोन और उनमें छिपे संकेतों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। अगर PCOS, गेस्टेशनल डायबिटीज या मेनोपॉज जैसे स्टेज को समय पर समझ लिया जाए तो डायबिटीज के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

महिलाओं के जीवन के अलग-अलग चरणों में होने वाले हार्मोनल परिवर्तन ब्लड शुगर को गहराई से प्रभावित करते हैं। इसलिए यह समझना बेहद जरूरी है कि डायबिटीज हर किसी के लिए एक जैसी बीमारी नहीं होती।

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