बागपत जेल में माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद प्रदेश सरकार ने प्रदेश की जेलों की दशा सुधारने की ठानी है. प्रदेश सरकार द्वारा गठित जेल सुधार कमेटी जेलों की वर्तमान हालात और वहां बरते जा रहे सुरक्षा मानकों का गंभीरता से अध्ययन कर रही है. बताया जा रहा है कि कमेटी जल्द अपनी सिफारिशें प्रदेश सरकार को सौंपेगी. जिसमें जेलों की क्षमता बढ़ाने से लेकर सुरक्षा के मानकों का कड़ाई से पालन कराने की तमाम सिफारिशें होंगी. जिसके बाद प्रदेश की जेलों में अप्रत्याशित बदलाव देखने को मिलेंगे. आइए बताते हैं जेलों की उन समस्याओं के बारे में जिन पर जेल सुधार कमेटी गौर कर रही है.
क्षमता से डेढ़ गुना बंदी
यूपी की 71 जेलों की क्षमता 65 हजार के करीब है. पर, अगर असल बंदियों की संख्या पर गौर करें तो पता चलता है कि इन जेलों में बंदियों को ठूंस-ठूंस कर भरा गया है. वर्तमान में प्रदेश की इन 71 जेलों में एक लाख से ज्यादा बंदी कैद हैं. क्षमता के मुकाबले सबसे ज्यादा चार हजार बंदी डासना जेल में बंद हैं. इसी तरह लखनऊ जेल में क्षमता से 3200 बंदी, नैनी व झांसी जेलों में तीन हजार के करीब अधिक बंदी कैद हैं. क्षमता से अधिक बंदियों के होने की वजह से जेल में आए दिन बंदियों के बीच मारपीट व जेलकर्मियों से संघर्ष की घटनाएं सामने आ रही हैं. इन समस्याओं को देखते हुए कमेटी जेलों की क्षमताओं को बढ़ाने व नई जेलों के निर्माण की सिफारिश कर सकती है.
आधे जेलकर्मियों के भरोसे जेलों की सुरक्षा
प्रदेश में नौ हजार के करीब मुख्य बंदीरक्षक-बंदीरक्षकों के पद स्वीकृत हैं. अगर इसे बंदियों के आंकड़े के हिसाब से देखें एक मुख्य बंदीरक्षक व बंदीरक्षक पर 10 बंदियों की निगरानी व सुरक्षा का जिम्मा है. हालांकि, असल हालात इससे भी खराब हैं. वर्तमान में जेलों में कुल 4350 मुख्य बंदीरक्षक व बंदीरक्षकों के पद खाली चल रहे हैं. इतना ही नहीं, एक जेल में नियमानुसार आठ डिप्टी जेलर होने चाहिए, लेकिन वर्तमान में एक जेल में औसतन महज पांच डिप्टी जेलर ही तैनात हैं. वहीं, प्रदेश की छह जेल बिना जेल सुपरीटेंडेंट के ही चल रही हैं. इन हालात को देखते हुए कमेटी जेल में खाली पड़े पदों पर जल्द भर्ती की अनुशंसा कर सकती है.