आदि देव श्री शिव जी। जो कि सदैव साधना रत कहे गए हैं। श्रद्धालुओं द्वारा शिव का पूजन शिवलिंग स्वरूप और ज्योर्तिलिंग स्वरूप में किया जाता है। शिव का लिंग स्वरूप पूजन पुण्यफलदायी माना गया है। इस दौरान यह कहा गया है कि भगवान शिव का शिवलिंग बड़ी ही सरलता से निर्मित किया जा सकता है। यूं तो सप्ताधान, बालू रेत, मिट्टी, समुद्र से मिलने वाले लिंगाकार पत्थर और विभिन्न शिलाओं के शिवलिंग पूजन योग्य माने गए हैं लेकिन स्फटिक और पारे के शिवलिंग का पूजन भी बहुत ही पवित्र माना जाता है।
दरअसल पारद एक प्रकार की ऐसी धातु है जो कि द्रव्य स्वरूप में पाई जाती है। इसकी ठोस स्वरूप में संरचना करना बेहद कठिन होता है लेकिन भगवान शिव का पारद का शिवलिंग बनाकर उसका पूजन बेहद पुण्यदायी होता है। पारद का शिवलिंग श्रद्धालुओं की धन, ऐश्वर्य, सुख – समृद्धि, योग सिद्धि के साथ मोक्ष भी प्रदान करता है। भगवान शिव इसमें साक्षात् विराजमान रहते हैं। इस तरह के शिवलिंग में शुक्र ग्रह का प्रभाव माना गया है और भगवान शिव के पारद से निर्मित इस शिवलिंग को पारदेश्वर कहा जाता है।
पारे में चंचलता के गुण होते हैं ठीक उसी तरह से मानव का मन भी चंचल होता है। ऐसे में पारे को स्थिर कर शिवलिंग निर्मित किया जाता है और दूसरी ओर स्थिर मन में ही सिद्धि होती है। ऐसे में पारद शिवलिंग की आराधना, दर्शन और पूजन से अकाल मृत्यु, असाध्य रोग, ग्रह दोष दूर होता है और भाग्योदय होता है दूसरी ओर मानसिक सुख – शांति के साथ संपन्नता भी मिलती है। पारद में शिव – शक्ति, लक्ष्मी और कुबेर का वास भी माना जाता है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में पारद का यह शिवलिंग रामघाट स्थित श्री नारदानंद आश्रम में प्रतिष्ठापित है। जिसके दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं।