ऐसे में जब पाकिस्तान फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FTF) की ग्रे लिस्ट से निकलने के लिए हाथ-पैर मार रहा है, तब यूरोप के एक शोधकर्ता ने उसकी कलई खोलकर रख दी है। पाकिस्तान अभी भी जिहादी तत्वों को भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है।
पाकिस्तान प्रतिबंधित आतंकी संगठनों के खिलाफ अभी भी संतोषजनक कार्रवाई नहीं कर रहा है। अगर प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार आतंकी संगठनों के खिलाफ कुछ करना भी चाहे तो सेना के उच्च पदों और खुफिया संगठन आइएसआइ उसके प्रयासों को कमजोर कर देते हैं।
जिहादी तत्व इतने प्रभावशाली हैं कि उनके खिलाफ प्रभावी कार्रवाई पाकिस्तानी नेतृत्व के लिए खतरा बन सकती है। जिहादी चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरीडोर समेत कई बड़ी परियोजनाओं पर हमला कर सरकार के सामने मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।
हाल के वर्षो में आतंकी संगठनों ने अपना प्रभाव बढ़ाते हुए पाकिस्तानी राजनीति की मुख्यधारा में शामिल होने की कोशिश की। लश्कर-ए-तैयबा ने अपना नाम बदलकर पार्टी बनाई और चुनाव में उम्मीदवार भी खड़े किए। लेकिन जनता ने उन्हें खारिज कर दिया।
आतंकी संगठनों का यह मंसूबा वास्तव में खतरनाक है। आने वाले दशकों में अगर वे सफल हो गए तो देश की बागडोर जिहादी तत्वों के हाथों में जाने का अंदेशा है। वे देश में कट्टरपंथी इस्लामी तौर-तरीके लागू कर सकते हैं। पाकिस्तान में धार्मिक अराजकता पैदा हो सकती है। तब जिहादी लोकतंत्र और सहमति के आधार पर राजनीतिक व्यवस्था को पूरी तरह खत्म कर अराजक स्थिति पैदा कर सकते हैं।