इलेक्शन कमीशन के जरिए पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में नामांकन की तारीख बढ़ाए जाने के कुछ घंटों बाद ही तृणमूल कांग्रेस के कई उम्मीदवारों को निर्विरोध विजेता घोषित कर दिया गया. इसके बाद से ही विपक्ष राज्य की सत्तारूढ़ सरकार टीएमसी पर गड़बड़ी करने और दूसरे उम्मीदवारों को चुनाव नहीं लड़ने देने का आरोप लगा रही है. वहीं टीएमसी का कहना है कि विपक्ष के पास खुद कोई उम्मीदवार नहीं था, ऐसे में अपनी हार के लिए वो खुद ही जिम्मेदार हैं. आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल में एक, तीन और पांच मई को पंचायत चुनाव होने हैं. पहले नामांकन की आखिरी तारीख नौ अप्रैल थी. उम्मीदवारों को नामांकन फाइल नहीं करने देने की शिकायत मिलने के बाद इस तारीख को सोमवार को 10 अप्रैल तक बढ़ा दिया गया था.
निर्विरोध जीते टीएमसी उम्मीदवार
तृणमूल कांग्रेस ने बीरभूम जिला परिषद की 42 में से 41 सीटों पर जीत हासिल कर ली है. पंचायत चुनाव से पहले ही टीएमसी ने बीरभूम पंचायत समिति की भी 19 में से 14 सीटों को निर्विरोध जीत लिया है. इसी तरह मुर्शिदाबाद के किंडी में भी टीएमसी ने 30 में से 29 और भरतपुर-2 में सभी 21 पंचायत समितियों पर जीत हासिल कर ली है. बुर्वान में भी सत्ताधारी पार्टी के उम्मीदवार सभी 37 पंचायत समितियों की सीटों पर निर्विरोध विजेता घोषित कर दिए गए हैं.
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विपक्ष बोला- उम्मीदवारों को नामांकन भरने से रोका
टीएमसी की इस एकतरफा जीत से विपक्ष का खासा नाराज है. उन्होंने पार्टी पर चुनावों में धांधली का आरोप लगाने के साथ ही दूसरे पार्टी के उम्मीदवारों को चुनाव नहीं लड़ने देने की बात कही.
बीरभूम जिले के बीजेपी अध्यक्ष रामकृष्ण रॉय ने कहा कि ‘ये जीत बॉम्ब और बंदूक की संस्कृति को दर्शाती है. उन्होंने (टीएमसी ने) लोगों को चुनाव से पहले ही डरा कर रखा है और अब वे दावा कर रहे हैं कि विकास के आधार पर वो ये सीटें जीते हैं.’
सीपीएम विधायक सुजन चक्रवर्ती ने कहा कि ये जीत टीएमसी ने इन सीटों को जीता नहीं बल्कि गलत तरीके से कब्जा कर लिया है. उन्होंने कहा कि ‘विपक्ष के उम्मीदवारों को टीएमसी ने खड़े ही नहीं होने दिया. उन्हें नामांकन भरने से रोका गया. बिना चुनौती की इस जीत की कोई साख नहीं है.’
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टीएमसी ने आरोपों को बताया गलत
हालांकि, विपक्ष के आरोपों को टीएमसी ने गलत ठहराया है. बीरभूम जिले के टीएमसी अध्यक्ष अनुब्रटा मंडल ने कहा कि ‘हम इस बात से हैरान हैं कि विपक्ष को जिला परिषद के लिए कोई उम्मीदवार ही नहीं मिला. उन्हें किसी ने भी नामांकन भरने से नहीं रोका. उनके पास लोगों का सपोर्ट ही नहीं था, जिस वजह से वे इन जगहों पर उम्मीदवार नहीं ढूंढ पाए.’