पबजी इफेक्‍ट्स- कहीं भारी न पड़ जाए गेम की लत, डिजिटल डिटॉक्स की जरूरत

सरकार द्वारा ऑनलाइन गेमिंग एप पबजी पर प्रतिबंध लगा देने के बाद उन किशोरों-युवाओं में बेचैनी बढ़ने लगी है, जो इस गेम की गिरफ्त में थे। पबजी को लेकर युवाओं में जबरदस्त क्रेज रहा है, लेकिन बैन के बाद इसका असर कुछ युवाओं के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर भी देखा जा रहा है। हाल ही में पबजी न खेल पाने की वजह से 21 वर्षीय छात्र ने कथित रूप से खुदकुशी कर ली, तो एक किशोर ने इसके लिए अपने दादाजी के पेंशन खाते से करीब ढाई लाख रुपये उड़ा लिए। इतना ही नहीं, इसकी गिरफ्त में आए तमाम किशोरों-युवाओं के परेशान परिजन काउंसलरों से भी संपर्क कर रहे हैं। अगर पबजी और इस जैसे गेम्‍स का प्रभाव मानसिक रूप से परेशान करने लगा है और गैजेट छोड़ना भी नहीं चाहते, तो रिलीफ देने वाले कुछ टेक टूल्स की मदद ले सकते हैं। इससे गेम की लत और इसके दुष्‍प्रभाव से बाहर निकलने में मदद मिल सकती है…

रात हो या दिन पबजी पर दिन-रात मार-धाड़ जैसे शोर से जो अभिभावक परेशान हो गए थे, उन्हें अब थोड़ी राहत जरूरी मिली होगी। सरकार ने हाल ही में 118 चीनी एप्स के साथ पबजी मोबाइल एप पर भी प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन इसके बाद अब कई बच्चे गेम नहीं खेल पाने की वजह से गुस्सैल और चिड़चिड़े होते जा रहे हैं, क्योंकि उन्होंने इस गेम को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया था। पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में 21 वर्षीय आइटीआइ के छात्र ने सिर्फ इसलिए खुदकुशी कर ली, क्योंकि वह पबजी गेम नहीं खेल पा रहा था। बताया जाता है कि गेम न खेल पाने की वजह से वह मायूस था। जम्मू के एक फिटनेस ट्रेनर को पबजी की वजह से हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा, क्योंकि गेम की वजह से उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया था। हालांकि यह कोई पहली घटना नहीं है। इस गेम की वजह से पहले भी कई युवाओं ने आत्महत्या कर थी, तो कइयों ने पैरेंट्स का लाखों रुपये इस गेम पर बर्बाद कर दिया। यह बड़ी खराब लत वाला गेम रहा है। भारत में इस गेम की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इसे यहां 17.5 करोड़ से अधिक बार डाउनलोड किया गया था।

डिजिटल डिटॉक्स की जरूरत

फोर्टिस अस्‍पताल, नोएडा के वरिष्‍ठ मनोचिकित्‍सक डॉ. मनु तिवारी कहते हैं, ‘गेमिंग की लत से छुटकारा पाने के लिए डिजिटल डिटॉक्स की जरूरत है। इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पर बढ़ते स्क्रीन टाइम की वजह से बच्चों और बड़ों के बीच आपसी बातचीत कम होती जा रही है, जिससे उनमें भावनात्मक जुड़ाव भी कम हो जाता है।’ अगर खुद डिजिटल डिटॉक्स के तरीके के नहीं आजमा सकते हैं, तो फिर क्वालिटी टाइम- माई डिजिटल डाइट एप को ट्राई कर सकते हैं। इसकी मदद से यह जानने में आसानी होगी कि किसी एप पर आपका कितना ज्यादा समय बीतता है।

इस संबंध में यह रियल टाइम रिपोर्ट देता है। इससे गेमिंग एक्टिविटी को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। इसमें टाइम रिस्ट्रिक्शंस के लिए अलर्ट, टेक ए ब्रेक, शेड्यूल ब्रेक जैसे फीचर्स दिए गए हैं। आप चाहें, तो स्मार्टफोन के स्क्रीन को कंट्रोल करने के लिए म्यूट स्क्रीन टाइम ट्रैकर एप की मदद भी ले सकते हैं। इससे आपको स्मार्टफोन पर बिताए जाने वाले समय को नियंत्रित करने में सहूलियत होगी। डिजिटल डिटॉक्स के लिहाज से मोमेंट एप भी उपयोगी हो सकता है। यह फोन पर बिताए जाने वाले समय को ऑटौमैटिकली ट्रैक करता है। अगर आप तय समय से ज्यादा देर फोन का इस्तेमाल करते हैं, तो यह आपको अलर्ट देने लगता है। इन एप्स की मदद से अपनी स्क्रीन टाइम को कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है।

पैरेंट्स रखें डिवाइस पर नजर

पबजी बैन होने से पैरेंट्स खुश हैं, लेकिन उन्हें यह भी डर है कि कहीं बच्चे दूसरे ऑनलाइन गेम्स पर न शिफ्ट हो जाएं। ऐसी स्थिति में बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखने के लिए पैरेंटल कंट्रोल सॉफ्टवेयर एक अच्छा विकल्‍प हो सकता है। क्यूसटोडियो पैरेंटल कंट्रोल टूल है। इसे मैक, एंड्रॉयड, आइओएस, किंडल डिवाइस के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी मदद से बच्चों की हर ऑनलाइन एक्टिविटीज पर नजर रखी जा सकती है। इसमें सोशल एक्टिविटीज मॉनीटरिंग, इंटरनेट टाइम सेट, गेम व एप्स कंट्रोल, मैसेज व कॉल्स ट्रैकिंग जैसे फीचर्स मिलते हैं। आपके लिए पैरेंटल कंट्रोल-स्क्रीन टाइम ऐंड लोकेशन ट्रैकर एप भी उपयोगी हो सकता है। इसमें वेब फिल्टरिंग, लोकेशन ट्रैकिंग, सोशल मीडिया मॉनिटरिंग, यूट्यूब वीडियो वॉच टाइम आदि जैसे फीचर्स दिए गए हैं। इसका इस्तेमाल खास तरह के एप्स-गेम्स, साइट को ब्लॉक करने के लिए किया जा सकता है। अगर घर में डिवाइसेज को वाई-फाई पर चला रहे हैं, तो ओपनडीएनएस फैमिली शील्ड का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसे पीसी और स्मार्टफोन दोनों पर रन किया जा सकता है। यह नेटवर्क राउटर के साथ भी कार्य करता है। ऐसे में इसके जरिए आने वाले सभी ट्रैफिक को फिल्टर किया जा सकता है। बच्चे किस साइट या गेम को एक्सेस कर रहे हैं, पैरेंट्स उस पर नजर रख सकते हैं। यह फ्री पैरेंटल कंट्रोल टूल है। इसके अलावा, पैरेंटल कंट्रोल के तौर पर गूगल फैमिली लिंक और माइक्रोसॉफ्ट फैमिली सेफ्टी एप भी उपयोगी हो सकता है।

परेशानियों को कम करेंगे ये मेडिटेशन एप

पबजी गेम के अचानक बैन होने से हो सकता है कि कई युवा इसकी वजह से मानसिक रूप से परेशान हों। अगर आप चाहें, तो इस मानसिक परेशानी को कुछ हद तक कंट्रोल कर सकते हैं। मानसिक तौर पर रिलैक्स रहने के लिए व्हाइट नॉयज लाइट की मदद ले सकते हैं। इसमें आपको एनवॉयर्नमेंट से जुड़ी 40 से अधिक तरह की सुविधा मिलती है। इससे न सिर्फ रिलैक्स महसूस करेंगे, बल्कि अच्छी नींद भी आएगी। इसके साथ स्ट्रेस को कम करने, फोकस बढ़ाने आदि जैसे फीचर्स भी दिए गए हैं। ओमवाना भी उपयोगी एप्लिकेशन है। यह मेडिटेशन से जुड़ा एप है, जिसमें प्रोडक्टिविटी और फोकस को बढ़ाने के साथ एंग्जाइटी, स्ट्रेस को कम करने से जुड़े बहुत सारे टूल्स दिए गए हैं। इसमें 3 से 60 मिनट्स के मेडिटेशन गाइड मिलते हैं। इसके अलावा, बुद्धिफाई का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। इसमें 200 से अधिक मेडिटेशन गाइड दिए गए हैं। इससे स्ट्रेस लेवल को कम करने के साथ अच्छी नींद में मदद मिल सकती है। स्टाप ब्रीद ऐंड थिंक एप भी आपके लिए उपयोगी हो सकता है। यह ब्रीदिंग तकनीक के जरिए तनाव को कम करने में मददगार हो सकता है। इसे हेल्थ हेलिंग, सेल्फ मोटिवेशन, स्ट्रेस, डिप्रेशन आदि को ध्यान में रख कर डेवलप किया गया है।

आजमाएं पॉजिटिव माइंड गेम्स

पबजी बैटल रॉयल गेम है। हो सकता है पबजी की जगह एलिवेट ब्रेन ट्रेनिंग गेम्स शुरुआत में आपको पसंद न आए। लेकिन यह गेम एप आपके लिए कई तरह से फायदेमंद हो सकता है। यह मेमोरी पावर को इंप्रूव करने के साथ आपकी स्पीकिंग स्किल, प्रॉसेसिंग स्पीड, मैथ्स स्किल, क्रिटिकल कॉग्निटिव स्किल आदि को बेहतर करने में मदद कर सकता है। इसमें 35 से अधिक अलग-अलग तरह के गेम्स मिलेंगे। माइंड गेम के लिए आप लूमोसिटी को भी ट्राई कर सकते हैं। इसमें मेमोरी पावर को इंप्रूव करने से जुड़े अलग-अलग तरह के एक्सरसाइज मिल जाएंगे। इसे न्यूरोसाइंटिस्ट द्वारा डेवलप किया गया है। अगर आप चाहें, तो पजल गेम्स भी खेल सकते हैं। बहुत सारे लोगों को पजल गेम भी खूब पसंद आता है। क्रॉसवर्ड पजल फ्री लोकप्रिय गेम एप है। इसमें आपको लेटर्स को अप-डाउन या फिर लेफ्ट-राइट के जरिए एक सीक्वेंस में करना होता है। अगर पजल को सॉल्व करने के दौरान फंस जाते हैं, तो आपको हिंट्स भी मिलते हैं। इसे ऑफलाइन मोड में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। पजल के लिए आप कोडीक्रॉस-क्रॉसवर्ड को भी ट्राई कर सकते हैं। इसमें सौ से अधिक लेवल्स हैं। हर बार आपको नया थीम और चैलेंज मिलेगा। अगर आप गेम के दौरान कहीं फंस जाते हैं, तो पावर-अप का इस्तेमाल कर सकते हैं।

गेम को न बनाएं लत

नई दिल्‍ली के एम्‍स के मनोचिकित्‍सा विभाग के पूर्व अध्‍यक्ष डॉक्‍टर सुधीर खंडेलवाल कहते हैं गेम खेलते खेलते कब यह लत में बदल जाए, यह कहना कठिन है। सबसे पहला संकेत तो यही है कि आप सुबह उठते ही सबसे पहले मोबाइल या अपना आइपैड तलाशते हैं। ठीक वैसे ही जैसे किसी ड्रग की लत या सिगरेट की लत वालों के साथ होती है।

ऑनलाइन गेम की लत एक मनोविकार यानी मानसिक सेहत से जुड़ा विषय है। गेमिंग की लत वाले युवा भूख-प्यास भूल जाते हैं या अधिक खाने लगते हैं। मोटापा बढ़ने की समस्या होने लगती है। वह खुद में रहने की बजाय गेम की काल्पनिक दुनिया में विचरण करता रहता है। गेम्स खेलना या पसंद करना बुरा नहीं लेकिन आप इसे कितना समय देते हैं, यह किस प्रकार हमारे दिमाग और शरीर पर असर डाल रहा है, इसे समय पर नहीं समझते तो यकीनन जिंदगी में बड़े उलटफेर के लिए भी आपको तैयार रहना होगा।

 

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