अखंड सुहाग की कामना से प्रतिवर्ष सुहागिन महिलाओं द्वारा ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं देवी सावित्री के त्याग, पति प्रेम एवं पति व्रत धर्म का स्मरण करती हैं। यह व्रत स्त्रियों के लिए सौभाग्यवर्धक, पापहारक, दुःख प्रणाशक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है। इस व्रत में वट वृक्ष का बहुत महत्त्व होता है। इस पेड़ में बहुत सारी शाखाएं नीचे की तरफ लटकी हुई होती हैं, जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है।
वट में होता है इन देवताओं का वास- वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु एवं डालियों में त्रिनेत्रधारी शिव का निवास होता है। इसलिए इस वृक्ष की पूजा से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं। अग्नि पुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है, अतः संतान प्राप्ति के लिए इच्छुक महिलाएं भी इस व्रत को करती हैं। अपनी विशेषताओं और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्वर माना गया है।
जानें किस तरह जीवन से जुड़ा है वट वृक्ष- वट वृक्ष की छांव में ही देवी सावित्री ने अपने पति को पुनः जीवित किया था। इसी मान्यता के आधार पर स्त्रियां अखंड सुहाग की प्राप्ति के लिए इस दिन वरगद के वृक्षों की पूजा करती हैं। देखा जाए तो इस पर्व के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी मिलता है। वृक्ष होंगे तो पर्यावरण बचा रहेगा और तभी जीवन संभव है।
सत्यवान- सावित्री संग यमराज की पूजा का है विधान- वट सावित्री व्रत के दिन बांस की टोकरी में सप्तधान्य के ऊपर ब्रह्मा और ब्रह्मसावित्री तथा दूसरी टोकरी में सत्यवान एवं सावित्री की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित कर बरगद के नीचे बैठकर पूजा करने का विधान है। साथ ही इस दिन यमराज का भी पूजन किया जाता है। लाल वस्त्र, सिन्दूर, पुष्प, अक्षत, रोली, मोली, भीगे चने, फल और मिठाई लेकर पूजन करें। कच्चे दूध और जल से वृक्ष की जड़ों को सींचकर वृक्ष के तने में सात बार कच्चा सूत या मोली लपेटकर यथाशक्ति परिक्रमा करें। पूजा के उपरान्त भक्तिपूर्वक सत्यवान-सावित्री की कथा का श्रवण और वाचन करना चाहिए। ऐसा करने से परिवार पर आने वाली अदृश्य बाधाएं दूर होती हैं, घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।