कई सीटों पर आमने-सामने वही चेहरे हैं, लेकिन दल बदले हुए हैं। टिकट न मिलने, दूसरी पार्टी में जीत की संभावना अधिक दिखने आदि वजहों से नेता पार्टी बदल रहे हैं। हालांकि, अब ऐसे नेताओं के लिए बुरी खबर है, क्योंकि समय के साथ इनके जीतने की संभावना कम होती जा रही है।
सुनाम ऊधम सिंह वाला। नेताओं का दल बदलना नई बात नहीं है, लेकिन पंजाब में पहली बार इतनी संख्या में नेताओं का दल बदल देखने को मिल रहा है। कई सीटों पर आमने-सामने वही चेहरे हैं, लेकिन दल बदले हुए हैं।
टिकट न मिलने, दूसरी पार्टी में जीत की संभावना अधिक दिखने आदि वजहों से नेता पार्टी बदल रहे हैं। हालांकि, अब ऐसे नेताओं के लिए बुरी खबर है, क्योंकि समय के साथ इनके जीतने की संभावना कम होती जा रही है। अब तक के आंकड़े इसे प्रमाणित करते हैं। चुनाव आते ही हर बार की तरह इस बार भी नेताओं में दल बदलने की होड़ लगी है। बीते कई दिनों से रोजाना कोई न कोई नेता अपनी पार्टी छोड़कर दूसरे दल का दामन थाम रहा है। भाजपा, आप, कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल के साथ ही अन्य दलों में आया राम गया राम की हलचल निरंतर जारी है। पंजाब में आधी से ज्यादा सीटों पर दल बदल का मुद्दा छाया हुआ है और सोशल मीडिया पर लोग ऐसे नेताओं के खिलाफ खूब भड़ास निकाल रहे हैं।
भाजपा के पाले में कांग्रेस के दो वर्तमान सांसद परनीत कौर, रवनीत सिंह बिट्टू और आप के सांसद सुशील कुमार रिंकू आ गए हैं। तीनों को भाजपा ने चुनाव मैदान में उतार दिया है। शिरोमणि अकाली दल के दिग्गज नेता सिकंदर सिंह मलूका की पुत्रवधू परमपाल कौर सिद्धू बठिंडा से भाजपा प्रत्याशी हैं, जबकि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के वर्तमान विधायक राज कुमार चब्बेवाल और पूर्व विधायक गुरप्रीत सिंह जीपी को अपना उम्मीदवार बनाया है। इसके अलावा आप ने अकाली दल के पवन टीनू को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस के पूर्व विधायक व मुख्यमंत्री भगवंत मान के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ने वाले दलबीर सिंह गोल्डी, आप में शामिल हो गए हैं।
कांग्रेस भी पीछे नहीं है। आप के सांसद रहे डॉ. धर्मवीर गांधी पटियाला से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। शिरोमणि अकाली दल ने कांग्रेस के मोहिंदर सिंह केपी को उम्मीदवार बना दिया है।
मतदाता भी सजग, दलबदलुओं पर कम हो रहा भरोसा
दलबदलुओं को लेकर मतदाता भी सजग हो गए हैं। वफादारी बदलने वाले नेताओें के प्रति मतदाताओं ने अपना नजरिया बदल लिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 2004 तक दलबदलुओं की कामयाबी की दर 25 फीसदी से ज्यादा रही, जबकि 2009 के बाद यह दर गिरकर 15 फीसदी रह गई। एक निजी विश्वविद्यालय की खोज के आंकड़ों के मुताबिक 2009 के लोकसभा चुनाव में उतरने वाले 205 दलबदलुओं में से केवल 35 ही चुनाव जीत पाए थे, जबकि 2014 के चुनाव में 264 दलबदलुओं में से 38 को ही जीत नसीब हुई थी।
2019 के लोकसभा चुनाव में देश में 213 दलबदलुओं में से केवल 30 ही कामयाब हो सके थे। दलबदलू नेताओं की जीत का औसत लगातार घटता जा रहा है। 2004 लोकसभा चुनाव से दल बदलने वाले नेताओं के जीतने का ट्रेंड लगातार घटता जा रहा है। 2019 में यह घटकर अपने सबसे न्यूनतम औसत पर पंहुच गया।
एक-दूसरे को घेर रहीं पार्टियां
पंजाब में दलबदल पहली बार बड़ा मुद्दा बन गया है। सियासी दल, दल-बदल को सामने रखकर विरोधियों पर निशाने साध रहे हैं। मुख्यमंत्री भगवंत मान पहले ही दलबदलुओं को तितली नाम दे चुके हैं। अन्य दलों के नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने के बाद से मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली है। कांग्रेस के विधायक व प्रत्याशी सुखपाल सिंह खैरा तो तितलियों का हवाला देकर मुख्यमंत्री को घेर रहे हैं।
दलबीर गोल्डी के आप में जाने के बाद खैरा ज्यादा आक्रामक मुद्रा में आ गए हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजा वड़िंग से लेकर प्रताप सिंह बाजवा, तितलियों को लेकर भाजपा व आप पर जबरदस्त हमला बोल रहे हैं। जालंधर, होशियारपुर, फतेहगढ साहिब, पटियाला, संगरूर, बठिंडा, लुधियाना में दलबदल बड़ा मुद्दा बन रहा है।