नहाय खाय के साथ शुरू होगा महापर्व छठ

लोक आस्था का महापर्व छठ शुक्रवार से नहाय खाय के साथ शुरू हो रहा है। पूर्वांचल और खास तौर पर बिहार में छठ पूजा के पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व पर छठी मइया की पूजा के साथ भगवान भास्कर की उपासना की जाती है। महिलाएं बच्चों के स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु के लिए 36 घंटे तक कठिन उपवास करती हैं। बरेली में भी पूर्वांचल के लोग छठ पर्व का धूमधाम से मनाते हैं। इसे लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं। 

ज्योतिर्विद सौरभ शंखधर ने बताया कि सूर्य उपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्यतः बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। पार्वती का छठा रूप, भगवान सूर्य की बहन छठी मैया को पर्व की देवी के रूप में पूजा जाता है। यह चंद्र के छठे दिन, काली पूजा के छह दिन बाद मनाया जाता है। त्योहार का अनुष्ठान कठोर होता है। इसमें स्नान, उपवास और पीने के पानी (वृत्ता) से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, और प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) और अर्ध्य देना शामिल है। 

प्रकृति का छठे अंश होने के कारण इस देवी का नाम षष्ठी रखा गया। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार षष्ठी देवी बालकों की रक्षा व आयु प्रदान करती हैं। स्कन्द पुराण में इन्हें ही देवी कात्यायनी कहा गया है। षष्ठी तिथि शिशुओं के संरक्षण व संवर्धन की देवी हैं। इनकी विशेष पूजा षष्ठी तिथि को की जाती है। इस सार चार दिवसीय छठ पूजा का पर्व 17 नवंबर से शुरू हो रहा है, जिसका समापन 20 नवंबर को होगा।

नहाय-खाय तिथि
छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय के साथ 17 नवंबर से होगी। इस दिन सूर्योदय 06:45 बजे और सूर्यास्त शाम 05:27 बजे होगा। व्रती महिलाएं नदी में स्नान के बाद नए वस्त्र धारण कर भोजन ग्रहण करेंगी। इस दिन व्रती के भोजन ग्रहण करने के बाद ही घर के बाकी सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।

खरना
खरना छठ पूजा का दूसरा दिन होता है। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:46 बजे और सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा। खरना के दिन व्रती एक समय मीठा भोजन करते हैं। इस दिन गुड़ से बनी चावल की खीर खाई जाती है।

संध्या अर्घ्य का समय
छठ पूजा का संध्या अर्घ्य, तीसरे दिन सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा। इस दिन डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। 

उगते सूर्य को अर्घ्य
20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। सूर्योदय सुबह 06:47 बजे होगा। इसके बाद ही 36 घंटे का व्रत समाप्त होता है। अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद का सेवन करके व्रत का पारण करती हैं।

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