पूरे देश मे इन दिनों नवरात्र की धूम है, लेकिन उत्तराखंड में इस पर्व को बेहद धार्मिक आस्था के साथ मनाया जाता है पिथौरागढ़ जिले की बात करें तो यहां दुर्गा को भगवती के रूप में पूजा जाता है, और यहां कई खास मान्यता वाले देवी के स्वरूपों के अलग अलग मंदिर है जहां भक्त बड़ी संख्या में आते हैं..
पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है माँ उल्का देवी का भव्य मंदिर जिसे सोर की भगवती के नाम से भी जाना जाता है. जिसकी इस क्षेत्र में काफी मान्यता है. नवरात्रि के शुरू होने के साथ ही यहां दूर दराज से लोग मां के दर्शन करने पहुँचते हैं. पिथौरागढ़ के ग्राम सेरा क्षेत्र में ऊंची पहाड़ी पर स्थित उल्का देवी मंदिर से पिथौरागढ़ जिले का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है जहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त के नजारा मन को प्रफुल्लित कर देने वाला है. उल्का देवी मंदिर की शक्तियों के बारे में कहा जाता है कि उल्का माता पिथौरागढ़ जिले की गंभीर बीमारियों और प्राकृतिक आपदाओं को रोकने का काम करती हैं।
पिथौरागढ़ मुख्य शहर से 3 किमी की दूरी पर है मां भगवती का वरदानी देवी मंदिर. यह मंदिर भगवती के शीतला स्वरूप को समर्पित है. चंडाक जाने वाली सड़क पर मुख्य सड़क से लगभग 75 मीटर नीचे की ओर मां भगवती का यह सुंदर मंदिर स्थित है. माना जाता है कि इस क्षेत्र में शेर मैय्या की रखवाली करते हैं और इस इलाके में वास्तव में सबसे ज्यादा गुलदार देखें जाते हैं. वरदानी देवी को वर देने वाली देवी के रूप में यहां के लोग पूजते हैं।
पिथौरागढ़ जिले के उत्तर दिशा में स्थापित है माँ चंडिका मंदिर, इसे मां दुर्गा का ही रूप माना जाता है. मार्कण्डेय पुराण के दुर्गा माहात्म्य में इसके कृत्यों एवं स्वरूप का विशद रूप से वर्णन किया गया है. चंडिका घाट मंदिर पिथौरागढ़ से 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहां सुवालेख से अपने वाहनों से भी लोग अब मंदिर तक पहुंच सकते हैं.चंडिका देवी को न्याय की देवी माना जाता है. अपने साथ हुए अन्याय के लिए इंसाफ मांगने लोग चंडिका देवी के दरबार मे पहुंचते हैं. यह मां चंडिका का मूल स्थान माना जाता है।
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से 7 किलोमीटर दूर कुसौली गांव में कामख्या देवी मंदिर स्थित है. यह स्थान सुंदर चोटियों से घिरा हुआ है, जिसके कारण कुसौली ग्राम में स्थित मां कामख्या देवी के इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली है. यह केंद्र आध्यात्मिक शांति के साथ साथ प्रकृति से भी जोड़ता है. मंदिर में मकर संक्रांति जमाष्टमी शिवरात्रि, नवरात्रि को विशेष पूजा अर्चना की जाती है. इस स्थान से पिथौरागढ़ का जो दृश्य दिखता है, वह बहुत ही अद्भुत है. अपने नैसर्गिक सौन्दर्य से आज यह बाहर से आने वाले पर्यटकों के साथ-साथ स्थानीय लोगो को भी खूब लुभा रहा है. माता कामख्या का दरबार सिर्फ धार्मिक महत्ता का ही नहीं, पर्यटक के क्षेत्र में भी प्रमुख है।
माता का गुरना मंदिर टनकपुर-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर पिथौरागढ़ नगर से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.इस मंदिर का वास्तविक नाम पाषाण देवी है परंतु गुरना गांव के समीप होने से यह गुरना माता मंदिर के नाम से विख्यात है. मां गुरना की इतनी मान्यता है कि मनोकामना पूर्ण होने पर भक्तगण हर रोज भंडारा, पूजा-पाठ कराने यहां आते रहते हैं. इसे वैष्णो देवी के रूप में मान्यता दी जाती हैं. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार रात को यहां पर अधिकांश मां का वाहन बाघ दिखाई देता है और जिसे यह दिखता है उस पर माता की कृपा बनें रहती है. मुख्य राजमार्ग पर होने से हजारों यात्री माँ के दर्शन कर धन्य हो जाते है. प्रत्येक गाड़ी यहां पर रुककर माँ के आशीर्वाद के रूप में धूप अगरबत्ती अपने वाहन के आगे लगाकर अपनी यात्रा की शुरुआत करते हैं. भक्तगणों द्वारा आने जाने पर मन्दिर की घंटिया बजायी जाती है जिसे सफल यात्रा होने का शुभ संकेत माना जाता है।