शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन यानी 30 सितंबर दिन सोमवार को मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है। मां दुर्गा का यह स्वरूप उस कन्या का है, जो देवों के देव महादेव को अपने पति के तौर पर प्राप्त करने के लिए कठोर तप करती है।

कठोर तप के कारण ही इस माता का नाम ब्रह्मचारिणी है। मां ब्रह्मचारिणी की विधि विधान से पूजा करने पर सदैव विजय प्राप्त होती है।
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
मां ब्रह्मचारिणी सरल स्वभाव वाली और दुष्टों को मार्ग दिखाने वाली हैं। इनके दाहिने हाथ में जप की माला व बाएं हाथ में कमंडल है। साधक यदि भगवती के इस स्वरूप की आराधना करता है तो उसमें तप करने की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य में वृद्धि होती है। जीवन के कठिन से कठिन संघर्ष में वह विचलित नहीं होता है।
पूजा मंत्र
1- ब्रह्मचारयितुम शीलम यस्या सा ब्रह्मचारिणी ।
सच्चीदानन्द सुशीला च विश्वरूपा नमोस्तुते ।।
2- ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
मां ब्रह्मचारिणी की कथा
पूर्वजन्म में हिमालय के घर जन्मी मां ब्रह्मचारिणी ने नारदजी के सलाह से भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था। इनके कठोर तप के कारण ही इनका नाम ब्रह्मचारिणी या तपश्चारिणी पड़ा। हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाए और सौ वर्ष तक जमीन पर रहकर शाक पर जीवनयापन किया।
नवरात्रि के दूसरे दिन सोमवार को माता दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की विधि विधान से पूजा अर्चना करें। माता को अक्षत्, सिंदूर, धूप, गंध, पुष्प आदि अर्पित करें। इसके बाद माता के मंत्र का उच्चारण करें। फिर अंत में कपूर या गाय के घी से दीपक जलाकर उनकी आरती उतारें और शंखनाद के साथ घंटी बजाएं।
Live Halchal Latest News, Updated News, Hindi News Portal