कौन हैं माता ब्रह्मचारिणी
मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप को भी पर्वतराज हिमालय की पुत्री ही माना जाता है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप का आचरण करने वाली। शंकर जी को पति रूप में पाने की आकांक्षा से इन्होंने जो घोर तप किया उसी के कारण ये देवी ब्रह्मचारिणी कहलार्इं। मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमण्डल शोभायमान है। एेसी धारणा है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से ज्ञान और वैराग्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में भी उनकी पूजा महत्व बताया गया है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा कठिन क्षणों में भक्तों को संबल प्रदान करती है।
ब्रह्मचारिणी की पूजा
देवी ब्रह्मचारिणी को चम्पा के पुष्प अत्यंत प्रिय हैं इसलिए उनके पूजन में ये फूल ही अर्पित करें और फल मिष्ठान का भोग लगाएं। कपूर से आरती करें आैर इस मंत्र का जाप करें ‘दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥’ नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा के दौरान उनकी कथा सुनने से कष्टों से मुक्ति मिलती है आैर धैर्य धारण करने का बल प्राप्त होता है। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्ति होती है
ब्रह्मचारिणी की कथा
ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व
शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मचारिणी की पूजा से उत्तम बुद्घि, विवेक आैर शीलता की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही अध्ययन, कार्यक्षेत्र आैर व्यापार में सफलता मिलती है। मां ब्रह्मचारिणी की साधना करने वालों को विभिन्न रोगों से भी मुक्ति मिलती है जिनमें त्वचा, मस्तिष्क, आंत, श्वांस नली, गला, वाणी आैर नासिका से संबंधित रोग सम्मिलित हैं।