नवरात्रि 2018: आप जानते हैं चतुर्थ नवदुर्गे कुष्मांडा के मंदिर का विचित्र रहस्य

रोगों को दूर करने की क्षमता 

वैसे तो ये माना ही जाता है कि देवी कुष्मांडा का पूजन करने से अनेक रोग दूर होते हैैं, जिनमें नेत्र रोग भी शामिल हैं, पर उत्तर प्रदेश के कानपुर के निकट घाटमपुर कस्बे में स्थित माता कुष्मांडा के मंदिर के जल से वास्तव में नेत्र विकार दूर होने की मान्यता है। पंडित दीपक पांडे का भी कहना है कि मंदिर में रहस्यमयी रूप से रिस रहे जल को यदि आंखों पर लगाया जाए तो अनेक रोग दूर हो सकते हैं। इस मंदिर में ये चमत्कारी जल माता की पिंड रूपी मूर्ति से लगातार रिसता रहता है। हर वर्ष नवरात्रि की चतुर्थी तिथि पर हजारों भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं आैर अपनी मनोकामना पूरी होने पर उनको चुनर, ध्वजा, नारियल और घंटे के अलावा भीगे चने भी चढ़ाते हैं।

इकलौता मंदिर 

बताते हैं कि घाटमपुर स्थित ये मां कूष्मांडा का मंदिर इकलौता है। इतिहासकारों की माने तो मराठा शैली में बने मंदिर में स्थापित मूर्तियां संभवत: दूसरी से दसवीं शताब्दी के मध्य की हैं। कहा जाता है कि एक ग्वाले ने सपने में देवी के दर्शन कर उनके इस स्थान पर मौजूद होने की बात बतार्इ थी। जिसके बाद मंदिर का निर्माण 1890 में चंदनराम भुर्जी नाम के एक व्यवसायी ने करवाया था। इतिहासकारों के अनुसार वास्तव में पहली बार १३८० में स्थानीय राजा घाटमपुर दर्शन ने इसकी नींव रखी थी। देवी की मूर्ति खोजने वाले ग्वाले के नाम पर इस मंदिर को कुड़हा देवी मंदिर भी कहा जाता है। 

संसार की निर्माता 

पौराणिक कथाआें के अनसार ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण ही इन देवी को कूष्मांडा कहा जाता है। इसी कारण यह सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति मानी जाती हैं। बलियों में इन्हें कुम्हड़े की बलि सर्वाधिक प्रिय है। कहते हैं कि इस मंदिर में माता पिंडी के रूप में विराजित हैं। इनका आदि आैर अंत नहीं मिलता इसी कारण ये लेटी मुद्रा में प्रतीत होती है। एेसी भी मान्यता है कि किसी अज्ञात स्रोत से माता कुष्मांडा के इस मंदिर में लगातार जल आता रहता है आैर कभी समाप्त नहीं होता। इसी जल को आखों पर लगाने से कर्इ प्रकार के नेत्र रोगों से छुटकारा मिल जाता है। सितंबर 1988 से मंदिर में मां की एक अखंड ज्योति भी निरंतर प्रज्ज्वलित हो रही है।

पुस्तकों में भी की चर्चा 

कर्इ पुस्तकों में मंदिर निर्माण आैर महत्व का जिक्र किया गया है। भदरस गांव के एक कवि उम्मेदराय खरे ने सन 1783 में फारसी में ऐश आफ्जा नाम की पांडुलिपि लिखी थी, जिसमें माता कुष्मांडा और भदरस की माता भद्रकाली का वर्णन किया है। इसी तरह कानपुर के इतिहासकार लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और नारायण प्रसाद अरोड़ा ने भी कुष्मांडा देवी मंदिर का उल्लेख किया है।

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