वैज्ञानिकों ने एक ऐसा नन्हा रोबोट तैयार किया है, जो आंत के अंदर जाकर तस्वीरें लेने में सक्षम है। इसकीमदद से बिना चीरफाड़ के कैंसर की जांच संभव होगी। सोनोपिल नाम के इस कैप्सूल रोबोट का व्यास 21 मिलीमीटर और लंबाई 39 मिलीमीटर है। वैज्ञानिक आकार को और छोटा करने का प्रयास कर रहे हैं। सोनोपिल नाम कैप्सूल रोबोट का होगा इस्तेमाल
इसमें एक छोटा अल्ट्रासाउंड उपकरण, एलईडी लाइट, कैमरा और चुंबक होता है। व्यक्ति के शरीर में पहुंचाने के बाद बाहर से ही चुंबक की मदद से इस कैप्सूल रोबोट की जगह निर्धारित की जाती है। इसे आराम से पूरी आंत में घुमाते हुए तस्वीरें ली जा सकती हैं। इनकी मदद से बहुत शुरुआती दौर में ही कैंसर के लक्षण पहचाने जा सकते हैं। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के वैज्ञानिकों का कहना है कि किसी भी तरह की बीमारी के बढ़ने से पहले ही इस रोबोट के जरिये बीमारी का पता लगाया जा सकता है। वैसे तो कैंसर का नाम सुनते ही लोग डर जाते हैं और सोचते हैं। लेकिन कैंसर का पता जल्द लगने पर इसका इलाज संभव है। आंत के कैंसर को कोलोरेक्टल कैंसर भी कहते हैं
कोलोरेक्टल कैंसर जिसे आमतौर पर बड़ी आंत का कैंसर भी कहते हैं। ये कैंसर बड़ी आंत(कोलन) में या फिर रेक्टम में होता है। कोलोरेक्टल (कोलो से मतलब है बड़ी आंत और रेक्टल का मतलब है मलाशय रेक्टम से है) को पेट का कैंसर या बड़ी आंत का कैंसर भी कहते हैं। ये कैंसर 50 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों में होता है। जल्द ही इसके लक्षणों को पहचान कर इसका इलाज होजाए तो मरीज कि जान बचाई जा सकती है। इससे दुनिया भर में प्रतिवर्ष 655,000 मौतें होती हैं। संयुक्त राज्य में कैंसर का यह चौथा सबसे सामान्य प्रकार है और पश्चिमी दुनिया में कैंसर से होने वाली मौतों का तीसरा प्रमुख कारण है।
जानिए क्या हैं लक्षण-
- कमजोरी
- थकान
- सांस लेनी में तकलीफ
- आंतो में परेशानी
- दस्त/कब्ज की समस्या
- मल में लाल या गहरा रक्त आना
- वजन का कम होना
- पेट दर्द
- ऐंठन या सूजन जैसे लक्षण होते हैं
जानिए क्या है मुख्य कारण-
- ज्यादा रेड मीट
- धूम्रपान
- खानपान में फल और सब्जियों को न शामिल करना
- फाइबर युक्त आहार न लेना इस कैंसर के कारण हैं
वैसे इस कैंसर के कई कारण हैं लेकिन आज की अनियमित जीवनशैली और खाने की आदतें इसके होने की मुख्य वजहें हैं। इस कैंसर का ट्यूमर चार चरणों से होकर गुजरता है, जिसमें ये बाउल की अंदरूनी लाइनिंग में शरू होता है। इलाज न होने पर ये कोलन के मसल वाल से होते हुए लिम्फ नोडस तकचला जाता है और आखिरी स्टेज में ये रक्त में मिलकर दूसरे अंगों में जैसे फेफड़ों, लीवर में फ़ैल जाता है और इस स्टेज को मेटास्टेटक कोलोरेक्टल कैंसर (एमसीआरसी) कहते हैं।