दोपहर का वक्त था. नोएडा की फिल्म सिटी में एक नौजवान और साथ में एक बुजुर्ग. दोनों के हाथ में एक-एक प्ले कार्ड है. जिसपर अंग्रेजी में लिखा है, ‘We want justice, I saved 12 CRPF men, received peanuts’ पूछने पर पता चला कि युवक का नाम मोहम्मद रफीक खुशू है. वही रफीक खुशू जिन्होंने पिछले साल आतंकी हमले में 12 सीआरपीएफ जवानों को बचाकर सरकार की तारीफें पाई थीं लेकिन उसके बाद सरकार उन्हें भूल गई. अब वे अपने पिता के साथ राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दरवाजे पर दस्तक देने के बाद मीडिया का दरवाजा खटखटाने आए हैं. उन्हें उम्मीद है कि मीडिया ने उनकी बात सुन ली तो न्याय मिल जाएगा.
मामला क्या है?
7 अप्रैल 2017 को सीआरपीएफ के जवान उपचुनाव करवाने जा रहे थे. वो चुनाव डयूटी में लगी जिस गाड़ी में सवार थे उसपर दोपहर तीन बजे के आसपास आतंकियों ने हमला कर दिया. हमले में कई जवान घायल हो गए. इस गाड़ी को 25 वर्षीय मोहम्मद रफीक खुशू चला रहे थे. हमले में वो भी घायल हुए. उन्हें गोलियां लगी थीं. उनकी गाड़ी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई थी. रफीक खुशू का दावा है कि खुद को गोली लगने के बाद भी वो गाड़ी चलाते रहे और गाड़ी को पास की पुलिस पोस्ट तक ले गए. वो कहते हैं, ‘मैंने उस दिन खुद की जान तो बचाई ही थी. साथ ही सीआरपीएफ के जवानों की जान भी बचाई थी. मुझे खुद पर गर्व है क्योंकि मैंने जवानों को बचाया लेकिन सरकार मुझे भूल गई.’
वायदा कर भूल गई सरकार
रफीक उस घटना के बारे में जो बता रहे थे, उनके पास मौजूद सरकारी कागजों का पुलिंदा उसकी पुष्टि कर रहा था. रफीक कहते हैं, ’महबूबा सरकार ने तब कहा था कि आपने बहुत अच्छा काम किया है. हम आपको नौकरी देंगे. इनाम देंगे लेकिन आज तक कुछ नहीं मिला. मैं अपने परिवार में अकेला कमाने वाला हूं. उस दिन दो गोलियां मेरी जांघ में लगी थीं. सीधा चल नहीं सकता. गाड़ी चला नहीं सकता. आए दिन मेरे घर पर पत्थरबाजी हो जाती है. मुझे वहां लोग मुखबिर बताते हैं. समझ नहीं आता कि जिएं तो कैसे जिएं?’