पढ़ाई की होड़ हो या नौकरी की दौड़, कामयाबी की हर कसौटी खरा यह गांव महानगरों को कहीं पीछे छोड़ चुका है। इसका ऐसा कोई घर नहीं, जिसमें उच्च अधिकारी, इंजीनियर, डॉक्टर न हों। उत्तर प्रदेश के हरदोई के तेरवा दहिगवां गांव की इस अपार सफलता के पीछे बड़ा योगदान है गांव में मौजूद एक छोटी सी लाइब्रेरी का। कहते हैं भारत गांवों में बसता है।

इस कहावत को यह गांव नए सिरे से गढ़ रहा है। गांव के आधा दर्जन युवक भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में हैं तो कई पीसीएस में। इंजीनियर, चिकित्सक, बैंक अधिकारियों की तो कतार लगी है। एक कुनबा ऐसा भी, जिसके सभी सदस्य प्रथम श्रेणी के अधिकारी। यही नहीं, आइएएस आशीष सिंह भी यहीं की माटी से निकले हैं, जिन्होंने मप्र के इंदौर शहर को स्वच्छता में नंबर एक बनाकर ख्याति बटोरी। देश ही नहीं, विदेश तक गांव की प्रतिभाएं चमक बिखेर रही हैं।
हरदोई जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर स्थित है तेरवा दहिगवां। आम गांवों की तरह ही है। बीती सदी के नौवें दशक तक यहां भी सबकुछ सामान्य था। बदलाव की बयार 1994 में बही, जब ग्रामीण परिवेश में पढ़े-लिखे शिरीष चंद्र वर्मा पीसीएस बने। यह शुरुआत थी।
इसके बाद तो गांव में अफसर बनने की होड़ लग गई। शिरीष अब आइएएस अधिकारी हैं और उप्र शासन में बड़े पद पर सेवारत हैं। 1996 में पीसीएस पदोन्नति के बाद आइएएस बने प्रदीप कुमार केंद्रीय सचिवालय में सचिव हैं। लोकप्रिय आइएएस आशीष सिंह के भाई अनुपम सिंह पीसीएस अधिकारी हैं।
गांव के कृष्ण कुमार सिंह इंजीनियर हैं। अरुण कुमार सिंह वाणिच्य कर अभिकरण के सदस्य हैं। वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी योगेंद्र कुमार कासगंज में एडीएम तो उनकी पत्नी ज्योत्सना सिंह आइआरएस अधिकारी हैं। आइएसएस (भारतीय सांख्यिकी सेवा) अश्वनी कुमार कनौजिया भारत सरकार के सांख्यिकी विभाग में डिप्टी डायरेक्टर हैं।
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