किसी भी धर्म में शादी को एक मजबूत सामाजिक बंधन बताया गया है. हिंदू धर्म के मुताबिक तो शादी सात जन्मों का बंधन माना जाता है. हर परिवार चाहता है कि उसके घर में आने वाली दुल्हन सर्वगुण संपन्न हो.
हर सासू मां की चाहत होती है कि उनकी बहू न सिर्फ खूबसूरत बल्कि अन्य सभी कार्यों में दक्ष हो. कई दूल्हों की भी चाहत होती है कि उन्हें ऐसी पत्नी मिले जो घर की जिम्मेदारियां उठा सकें.
लड़कियों को दुल्हन के रूप में कौशल, दक्ष और प्रशिक्षित बनाने के लिए हैदराबाद में एक इंस्टीट्यूट खोला गया है. इसका नाम ‘फैमिली इंस्टीट्यूट’ रखा गया है. यहां से लड़कियों को ‘दुल्हन कोर्स’ सिखाया जा रहा है. इस प्रशिक्षण केंद्र में एक ‘सफल विवाहित जीवन जीने की कला’ को सिखाया जा रहा है.
प्रशक्षिण केंद्र में विवाह से पहले घर प्रबंधन के अलावा कई तरह के कोर्स लॉन्च किए गए हैं. अन्य कोर्सों में ‘विवाह के बाद घर को चलाने’ का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसके अलावा ‘सर्वश्रेष्ठ मां’ बनने की भी ट्रेनिंग दी जा रही है.
इस दौर में भी इस तरह के कोर्स के शुरू करने पर लोगों ने अपनी नाराजगी भी जताई है. सोशल मीडिया पर अनेक लोगों ने इस कोर्स का विरोध किया है और सवाल उठाया है कि आखिर परिवार को चलाने और अच्छी दुल्हन बनने का बोझ सिर्फ लड़कियों पर क्यों है. क्या कभी अच्छा दूल्हा बनने का भी कोर्स शुरू किया जाएगा. हालांकि, इस कोर्स को चलाने वाले ने इसका बचाव किया है. उनका कहना है कि दुल्हन कोर्स नाम रखना दरअसल, लोगों को लुभाने के लिए है.
इंस्टीट्यूट में कराए जा रहे हैं कई तरह के कोर्स
दुल्हन कोर्स के तहत इंस्टीट्यूट खाना बनाना, सिलाई कढ़ाई करने के साथ-साथ ब्यूटी टिप्स और वित्तीय प्रबंधन की भी ट्रेनिंग दे रहा है. इंस्टीट्यूट का दावा है कि वह एक बार फिर से परिवारिक सिद्धांतों को खोजने में मदद कर रहा है.
कोर्स शुरू करने वाले टीचर इलियास शमी ने अंग्रेजी वेवसाइट ‘इनयूथ’ को बताया, ”भारत में कई तरह के कोर्स हैं. जिनमें कैसे इंजीनियर बने. कैसे डॉक्टर बने. यहां कोई भी ऐसा कोर्स नहीं है कि कैसे शादी के बाद अपनी जिंदगी खुशनुमा माहौल में बिताएं.”
2 साल से चल रहा है यह इंस्टीट्यूट
इलियास पिछले दो साल से इस कोर्स को चला रहे हैं. इस कोर्स के लिए वह हर महीने 5 हजार रूपये चार्ज करते हैं. अंग्रेजी वेबपोर्टल को उन्होंने बताया कि उनका इस्टीट्यूट सभी के लिए खुला हुआ है.
इलियास ने बताया कि यहां नामांकन के लिए न उम्र की सीमा है न धर्म का बंधन और न किसी शैक्षणिक योग्यता की रुकावट. उन्होंने कहा कि हमारे यहां ज्यादातर मुस्लिम लड़कियां प्रशिक्षण के लिए आती हैं. हमलोग मिलकर उन्हें प्रशिक्षण देते हैं.