इस वर्ष देश में मौसम का मिजाज सामान्य नहीं रहा है। मई को आमतौर पर झुलसाने वाली गर्मी के लिए जाना जाता है लेकिन इस बार न तो गर्मी अपने चरम पर पहुंची और न ही गत दिसंबर में ठंड ने असर दिखाया। मौसम और महीनों का मेल नहीं खा रहा।
गर्मी के मौसम में न उतनी गर्मी पड़ रही तो बारिश का भी कोई महीना नहीं रह गया। वहीं सर्दी की अवधि महीनों के हिसाब बाकी मौसम की तुलना में कम ही रह गई है।
जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकेत
इस साल में अभी तक के महीनों की बात करें तो भारतीय मौसम विभाग (आइएमडी) द्वारा जारी की गई हीटवेव चेतावनियां भी अपेक्षित रूप से सटीक साबित नहीं हो सकीं। बेमौसम बारिश से भी लोगों को दो चार होना पड़ा। दक्षिण भारत के कई हिस्सों में बीते कुछ दिनों से लगातार बारिश हो रही है और मानसून इस बार तय समय से पहले दस्तक देने की ओर अग्रसर है जबकि प्री-मानसून बारिश भी गरज-चमक और तेज हवाओं के साथ बेतरतीब ढंग से हो रही है। मई में बार-बार पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) सक्रिय हो रहे हैं जो सामान्य मौसम चक्र से हटकर हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ये सभी घटनाएं जलवायु परिवर्तन के गंभीर और स्पष्ट संकेत हैं। अगर इसके कारकों को पहचानकर लगाम नहीं लगाई गई तो स्थिति और भी भयावह हो सकती है या फिर नियंत्रण से बाहर जा सकती है।
औसत तापमान सामान्य से तीन से पांच डिग्री सेल्सियस कम
IMD के महानिदेशक डा. मृत्युंजय महापात्रा का कहना है कि इस बार मौसम का असामान्य मिजाज सीधे तौर पर वैश्विक जलवायु परिवर्तन का परिणाम है। पश्चिमी विक्षोभ की लगातार सक्रियता ने प्री-मानसून वर्षा को अनियंत्रित कर दिया है जिससे तापमान में असामान्य गिरावट देखी गई है। उत्तर भारत के राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में औसत तापमान सामान्य से तीन से पांच डिग्री सेल्सियस कम रिकार्ड किया गया है।
मौसम विज्ञानियों के अनुसार, अभी तक 2025 बीते वर्षों की तुलना में कहीं अधिक ठंडा रहा है। अप्रैल और मई में इस बार रिकार्ड तोड़ने वाली गर्मी नहीं देखी गई जबकि पिछले वर्ष अप्रैल से ही तापमान ने चरम छू लिया था। इस बार मई की सिर्फ पहली तारीख को ही हीटवेव जैसी स्थिति बनी। अधिकांश दिन सामान्य ही रहे। 16 वर्षों में यह पहली बार है जब मानसून इतनी जल्दी दस्तक देने जा रहा है। मौसम के इस असंतुलन का असर कृषि और मानव स्वास्थ्य दोनों पर पड़ सकता है। बेमौसम बारिश और तापमान में अचानक बदलाव से फसलों की उत्पादकता प्रभावित हो सकती है। लू और उमस से जनस्वास्थ्य को भी खतरा है। मरीजों की संख्या भी पिछले साल से ज्यादा बढ़ी है।
क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ?
विशेषज्ञों का कहना है कि अब समय आ गया है, जब जलवायु परिवर्तन को केवल पर्यावरणीय मुद्दा मानने के बजाय इसे विकास नीति का अभिन्न अंग बनाया जाए। जल संरक्षण, हरित ऊर्जा की ओर तेजी से बदलाव और कार्बन उत्सर्जन में ठोस कटौती की नीतियों को प्राथमिकता देना अनिवार्य हो गया है।
इस कारण पश्चिमी विक्षोभ ग्लोबल वार्मिंग के चलते पृथ्वी की सतह का तापमान बढ़ा है जिससे ऊपरी वायुमंडल में बहने वाली जेट स्ट्रीम की गति और सघनता में भी परिवर्तन आया है।
यह जेट स्ट्रीम लगभग नौ से 13 किलोमीटर की ऊंचाई पर पश्चिम से पूर्व की ओर बहने वाली तेज और संकरी वायुधारा होती है जो भारत में हिमालय पर्वत के ऊपर से गुजरती है। इसके कारण पश्चिमी विक्षोभ की गतिविधियां अधिक सक्रिय हो गई हैं, जिससे एक ही हफ्तों में दो-दो बार विक्षोभ देखे गए। इसका प्रभाव यह हुआ कि उत्तर भारत के मैदानी इलाकों का तापमान पूरी गर्मी में औसत से नीचे बना रहा।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह प्रवृत्ति जारी रही तो आने वाले वर्षों में मौसम और अधिक अनियमित, अप्रत्याशित और चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
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