किसी भी हिंसा के दौरान दोषियों की सटीक पहचान करने में पुलिस को खासी मशक्कत का सामना करना पड़ता था, लेकिन तकनीकी ने पुलिस का काम आसान कर दिया है। अब हजारों की भीड़ के बीच भी किसी दंगाई की बिल्कुल सटीक पहचान कर पाना सम्भव हो गया है।
यह संभव हुआ है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक पर आधारित फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी के प्रयोग के जरिए, जिससे दिल्ली पुलिस की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम दंगों के आरोपियों की पहचान कर रही है।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक दंगाइयों की सटीक पहचान के लिए पुलिस ने वोटर आईडी कार्ड की भी मदद ली है। इसके अलावा पुलिस के पास उपलब्ध अपराधियों के डाटा बैंक से भी संभावित आरोपियों की पहचान की जा रही है।
दिल्ली पुलिस के साइबर सेल से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक फेशियल रिकग्निशन तकनीक के सहारे विशेष वीडियो फुटेज की जांच की जाती है। इसमें पूरे वीडियो के बीच दूर खड़े व्यक्ति के भी हिंसात्मक गतिविधि में लिप्त पाए जाने पर उसकी सटीक जानकारी मिल जाती है।
पुरानी तकनीक में अभी तक चेहरों की सटीक पहचान नहीं हो पाती थी, फोटो जूम करने की स्थिति में उसके खराब होने की आशंका रहती थी। इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक में विशेष सॉफ्टवेयर के जरिए व्यक्ति की सटीक फोटो मिल जाती है। इस फोटो का वोटर आईडी जैसे प्रामाणिक स्रोत से पुष्टि कर ली जाती है।
तकनीकी की बड़ी खासियत यह भी है कि इसमें चेहरे के बाहरी बनावट में परिवर्तन के बाद भी तकनीक व्यक्ति की सटीक पहचान करने में सक्षम होती है। इससे किसी निर्दोष के फंसने की गुंजाइश खत्म हो जाती है। लेकिन इस तरह मिली जानकारी को भी दोषरहित करने के लिए अन्य साक्ष्यों का उपयोग किया जाता है।
तकनीक की भी अपनी सीमाएं होती हैं। कई देशों ने एयरपोर्ट पर अपराधी या भगोड़े लोगों की पहचान के लिए इसी तकनीकी का सहारा लिया था, लेकिन कई जगहों पर यह तकनीक भी आरोपियों की सटीक पहचान करने में गलती करती पाई गई।
इस तरह की घटनाएं सामने आने के बाद देशों ने इस तकनीक का एयरपोर्ट पर इस्तेमाल करना बंद कर दिया था। यही कारण है कि आरोपियों की पहचान फूल प्रूफ करने के लिए पुलिस अन्य प्रमाणित स्रोतों का भी पूरा इस्तेमाल कर रही है।