New Delhi : दिल्ली हाईकोर्ट ने पेड़ों के काटे जाने पर फिर चिंता जताई। अदालत ने कहा कि अगर पेड़ मतदाता होते तो शायद नहीं काटे जाते।
न्यायमूर्ति बीडी अहमद व न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने सरकार को सुझाव दिया कि नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) से यह ऑडिट कराना चाहिए कि दिल्ली में कितने पेड़ काटे गए और उनसे मिली लकड़ी का क्या किया गया और कितने पैसे मिले।
राजधानी में बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि असोला अभयारण्य में मेट्रो रेल परियोजना, अतिक्रमण व अवैध निर्माण के चलते बड़ी संख्या में पेड़ काटे गए।
अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार असोला-भाटी अभयारण्य में अतिक्रमण की पहचान करने व उसे हटाने के प्रति गंभीर नहीं है, जबकि इस बारे में 2015 में ही दिशा-निर्देश दिए गए थे।
सरकार ने जितने लोगों की पहचान कर ली है, उन्हें वहां से हटाया जाए। न्यायमित्र ने कहा कि सरकार की नाकामी के चलते वन क्षेत्र गायब हो गया है।
वहीं दिल्ली सरकार के स्टैंडिंग काउंसल राहुल मेहरा ने सभी तथ्यों को बेबुनियाद बताया। मामले की अगली सुनवाई अब 9 मार्च को होगी।