दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हमेशा हार नसीब हुई

दिल्ली में अब तक सात बार विधानसभा चुनाव हुए हैं। इनमें हार-जीत भले ही किसी की भी रही हो, लेकिन वोट का गणित हमेशा दिलचस्प रहा। 15 साल तक सत्ता संभालने वाली शीला दीक्षित सरकार हो या 2015 में सुनामी वोट पाने वाली केजरीवाल सरकार, भाजपा का वोट उतने ही बीच रहा।

1998 से लेकर 2015 तक पांच बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत 32 से 36 के बीच था, जबकि कांग्रेस का ग्राफ गिरा और आप का ऊपर गया। रोचक ये भी रहा कि दिल्ली में चार बार महज 4 से 13 फीसदी के मत प्रतिशत के अंतर से सरकारें भी बन गईं।

ऐसे में दिल्ली की सियासी पार्टियां इतने ही प्रतिशत के बीच पूरे चुनाव के आंकलन में जुटी हैं। भाजपा अपने पारंपरिक वोट से आगे बढ़ाना चाहती है तो आप अपने ग्राफ को संभालना। इनके बीच इतिहास में सबसे कम 9.7 फीसदी वोट पाने वाली कांग्रेस वापस मुख्य धारा में लौटना चाहती है।

दिल्ली नगर निगम और लोकसभा चुनाव में भले ही भाजपा ने कई बार जीत के परचम लहराए हो, लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी को अब तक सिर्फ एक बार ही 40 फीसदी से ज्यादा वोट मिला है। वर्ष 1993 में मदनलाल खुराना की सरकार में भाजपा को 42.82 फीसदी वोट मिले थे। इसके बाद भाजपा का वोट बैंक इस लक्ष्य के नजदीक भी नहीं पहुंच सका।

1993 के चुनावों को छोड़ दें तो 1998 से लेकर 2015 तक विधानसभा चुनाव में भाजपा का वोट बैंक लगभग स्थिर रहा। बीते 22 सालों में दिल्ली भाजपा का वोट बैंक 32 से 36 फीसदी के बीच ही रहा। 1998 में पार्टी को 34.02 फीसदी वोट मिले। 2003 में 35.22, 2008 में 36.34, 2013 में 33 और 2015 के चुनाव में 32.3 फीसदी वोट मिले थे।

2013 और 2015 के विधानसभा चुनाव परिणामों पर गौर करें तो कांग्रेस का वोट प्रतिशत काफी रफ्तार से नीचे गिरा, जबकि भाजपा ने 2013 के चुनाव में 3.4 फीसदी वोट का गोता खाने के बाद 2015 के चुनाव में अपने वोट बैंक को संभाला। 2013 की तुलना में 2015 के चुनाव में भाजपा को 0.8 फीसदी वोट का ही नुकसान हुआ था।

1993 से 2008 तक के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर थी, लेकिन 2013 में आप की एंट्री ने दोनों पार्टी को झटका दिया। कांग्रेस को 15.7 तो भाजपा को 3.4 फीसदी वोट का नुकसान उठाना पड़ा, जबकि पहली बार चुनाव लड़ने वाली आप को 29.5 फीसदी वोट मिले। 2015 के चुनाव में आप को 24.86 फीसदी वोट का और फायदा हुआ और उसका मत प्रतिशत 54.30 फीसदी पर पहुंचा, जबकि कांग्रेस को इस चुनाव में भी 14.9 फीसदी वोट का झटका लगा।

दिल्ली के आठवें विधानसभा चुनाव के लिए 8 फरवरी को मतदान होगा। ये कहना गलत नहीं कि तीनों ही पार्टियां आप, कांग्रेस और भाजपा के आगे चुनौतियां भी अलग-अलग हैं, जहां भाजपा को एक बार फिर अपना वोट प्रतिशत 40 फीसदी पार लेकर जाने की चुनौती है तो वहीं कांग्रेस के आगे अपने खोए जनसमर्थन को वापस पाने की। आप के लिए इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती बीते दो चुनावों में जुटाए समर्थन को बरकरार रखने की है।

नई दिल्ली। 1993 विधानसभा चुनाव के बाद के सभी विधानसभा चुनावों में भाजपा का वोट प्रतिशत तकरीबन एक सा रहा है। दिल्ली में मध्यम वर्ग, वैश्य व पंजाबी समुदाय के मतदाता भाजपा के कोर वोटर हैं, जबकि कांग्रेस की पैठ निम्र मध्यम वर्ग, निमभन वर्ग, मुस्लिम व पूर्वांचलियों के बीच मजबूत थी, लेकिन आप के आने के बाद कांग्रेसी वोटर पूरी तरह उसके पाले में आ गया। आज भाजपा की चुनौती यही है कि वह अपने कोर वोटर का विस्तार करे, जबकि आम आदमी पार्टी कांग्रेस से शिफ्ट हुए वोट बैंक को छिटकने न दे। इसके लिए कांग्रेस जोर आजमाइश कर रही है।

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