दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा की तैयारियां की जा रही है। इन दिनों पूरे देश में एनआरसी, सीएबी और सीएए को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहा है ऐसे में ये माना जा रहा है कि पीएम मोदी की ये जनसभा कई मायनों में महत्वपूर्ण होगी। दिल्ली में ये अकेला ऐसा बड़ा मैदान है जहां पर हर पार्टी के बड़े नेता की रैली होती है। इस रामलीला मैदान का इतिहास काफी पुराना है। ये कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा है। कई आंदोलनों का गवाह भी रहा है। इस रामलीला मैदान में दशहरे के मौके पर रामलीला का मंचन होता है उसके बाद रावण दहन होता है।
10 एकड़ में फैला रामलीला मैदान
दिल्ली का ये रामलीला मैदान अजमेरी गेट और तुर्कमान गेट के बीच 10 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इस रामलीला मैदान में एक लाख लोग एक साथ खड़े हो सकते हैं पर पुलिस के मुताबिक यहां सिर्फ 25 से 30 हजार लोगों की क्षमता है। कहा जाता है कि इस मैदान को अंग्रेजों ने 1883 में ब्रिटिश सैनिकों के शिविर के लिए तैयार करवाया था। समय के साथ-साथ पुरानी दिल्ली के कई संगठनों ने इस मैदान में रामलीलाओं का आयोजन करना शुरु कर दिया, जिसके चलते इसकी पहचान रामलीला मैदान के रूप में हो गई। दिल्ली के अलावा आसपास के शहरों में भी इसे रामलीला मैदान के तौर पर पहचाना जाता है। हर बड़े नेता की चुनावी रैली या जनसभा का आयोजन यहीं पर होता है। हाल ही में कुछ बड़े आंदोलनों की जन्मस्थली भी यही रामलीला मैदान रहा है।
पाकिस्तान से युद्ध की जीत का मना था जश्न
इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान से युद्ध की जीत का जश्न इसी मैदान पर मनाया था। ये रामलीला मैदान देश के इतिहास के बदलने का गवाह रहा है। आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल और दूसरे नेताओं के लिए विरोध जताने का ये सबसे पसंदीदा मैदान बना था। इसी मैदान पर मोहम्मद अली जिन्ना से जवाहर लाल नेहरू तक और बाबा राम देव से लेकर अन्ना हजारे तक सारे लोग इसी मैदान से क्रांति की शुरुआत करते रहे हैं।
1945 में हुई थी रैली, जिन्ना को मिली थी मौलाना की उपाधि
बताया जाता है कि यही वो मैदान है जहां 1945 में हुई एक रैली में भीड़ ने जिन्ना को मौलाना की उपाधि दे दी थी। लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना ने मौलाना की इस उपाधि पर भीड़ से नाराजगी जताई और कहा कि वो राजनीतिक नेता है न कि धार्मिक मौलाना। इसके अलावा इस मैदान का इस्तेमाल सरकारी रैलियों और सत्ता के खिलाफ आवाज बुलंद करने जैसी दोनों ही परिस्थितियों में किया गया।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने किया था सत्याग्रह
दिसंबर 1952 में रामलीला मैदान में जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को लेकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सत्याग्रह किया था। इससे सरकार हिल गई थी। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1956 और 1957 में मैदान में विशाल जनसभाएं की। जयप्रकाश नारायण ने इसी मैदान से कांग्रेस सरकार के खिलाफ हुंकार भरी थी।
इसके अलावा इसी रामलीला मैदान में कई अन्य चीजें भी हुईं जो इतिहास में दर्ज है।
– 26 जनवरी, 1963 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की उपस्थिति में लता मंगेश्कर ने एक कार्यक्रम पेश किया।
– 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसी मैदान पर एक विशाल जनसभा में जय जवान, जय किसान का नारा एक बार फिर दोहराया था।
– 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के निर्माण और पाकिस्तान से युद्ध जीतने का जश्न मनाने के लिए इसी मैदान में एक बड़ी रैली की थी और जहां उन्हें जनता का भारी समर्थन मिला था।
– ओजस्वी कवि रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध पंक्तिंया ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है नारा’ यहीं गूंजा था।
– 28 जनवरी, 1961 को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने रामलीला मैदान में ही एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया था।