अक्सर आपने देखा होगा कि लोग जब कही जा रहे होते हैं यदि बीच मार्ग में कोई नदी, जलाशय आ जाता है या फिर किसी धार्मिक स्थल पर भी कोई पवित्र जलाशय मिल जाता है तो लोग सिक्का निकालकर उसमें फेंक देते हैं| कभी आपने सोचा है कि आखिर लोग ऐसा क्यों करते हैं? क्या पाने में सिक्के फेंकने के पीछे कोई धार्मिक कारण है? क्या विज्ञान ऐसा करने की इजाजत देता है?
प्राचीन समय से चली आ रही इस मान्यता के पीछे कई सारे कारण छिपे हैं जिसमें से एक है लोगों का एक विश्वास। बहुत से लोग मानते हैं कि पानी में सिक्का फेंकने से जीवन में चल रहा नकारात्मक प्रभाव दूर होता है। ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में खुशहाली आती है।
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कुछ बुजुर्गों का मानना है की नदी पर भूत-प्रेत का साया मंडराता है उस साय को प्रसन्न करने के लिए नदी में सिक्के डाले जाते हैं। अब पीतल, तांबा या चांदी के सिक्कों का चलन बंद होने से लोग स्टील के सिक्के नदी को भेंट करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र और लाल किताब के अनुसार तांबे का सिक्का पानी में डालने से सूर्य देव अनुकुल होते हैं और पितरों की कृपा प्राप्त होती है। बदलते दौर में तांबे के सिक्कों का प्रचलन समाप्त होने से स्टेनलेस स्टील के सिक्कों को उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अब लोग पानी में फेंकते हैं।
कुछ लोगों की मान्यता है कि नदी में सिक्के अर्पित करने से उनके जीवन में आ रही बाधा और परेशानियों से नकारत्मकता का अंत होगा और सकारात्मकता का संचार होगा। धन की देवी लक्ष्मी प्रसन्न होकर अपनी कृपा बनाएं रखेंगी।
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वैज्ञानिक कारण की बात करे तो विभिन्न धातुओं के मिश्रण से पानी की शुद्धता हमेशा बरक़रार रहती है।यही कारण है कि आज भी कई दुर्लभ धातुओं के भस्मों से गम्भीर बीमारी का उपचार किया जाता है। साथ ही तांबे को सूर्य का धातु माना जाता है और यह हमारे शरीर के लिए भी आवश्यक तत्व है। इसके साथ ही मानव जीवन के लिए जड़ी-बुटी या धातुओं की आवश्यकता बहुत जरूरी है।