डीएमके नेता करुणानिधि अपनी पब्लिक छवि और स्टाइल को लेकर बेहद संजीदा रहते थे. इस कारण ही अपने पसंदीदा काला चश्मा और पीली शाल को एक तरह से उन्होंने फैशन स्टेटमेंट बना दिया था. सार्वजनिक समारोहों में जाने से पहले वह अपनी पीली शाल की ओढ़नी को नहीं भूलते थे. इसी कारण पीली शाल उनकी पहचान बन गई. तमिलनाडु के कई नेताओं ने इस मामले में उनकी नकल की है.
हालांकि यह भी सही है कि जब 1957 में पहली बार करुणानिधि विधानसभा पहुंचे तो उस वक्त वह काले चश्मे को नहीं पहनते थे लेकिन 1960 में उन्होंने इसको पहनना शुरू किया. दरअसल एक एक्सीडेंट में उनकी बाईं आंख खराब हो गई. इस कारण पहले मजबूरी में उन्होंने काले चश्मे को पहनना शुरू किया लेकिन बाद में उनको वह इतना पसंद आया कि लगभग आधी सदी तक उसको धारण किया.
यह भी एक महज संयोग है कि करुणानिधि के धुर विरोधी अन्नाद्रमुक नेता एमजी रामचंद्रन भी काला चश्मा पहनते थे. उनके बारे में कहा जाता है कि एमजीआर की मृत्यु के बाद उनके उनके साथ ही उनके काले चश्मे को भी सुपुर्दे खाक कर दिया गया था.
जब करुणानिधि ने बदला अपना चश्मा
आधी सदी से भी ज्यादा वक्त तक काला चश्मा धारण करने के बाद 2017 में अपना काला चश्मा उन्होंने बदला. नए चश्मे का फ्रेम पहले वाले से हल्का था. जब इसे बदला गया तो मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उनका चश्मा चेन्नई के विजया ऑप्टिक्स ने जर्मनी से इम्पोर्ट किया था. विजय ऑप्टिक्स को करुणानिधि के पसंद का चश्मा खोजने के लिए जर्मनी में 40 दिन तक खोज करनी पड़ी. तब जाकर ये चश्मा मिला.
समाचार पत्र दि हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार विजया ऑप्टिक्स ने बताया कि करुणानिधि का पुराना चश्मा भारी और असुविधाजनक था. इसके बावजूद उन्हें अपना ये चश्मा बहुत पसंद था और वो इसे बदलना नहीं चाहते थे. डॉक्टरों की सलाह के बाद ही उन्होंने चश्मा बदलने के लिए अपनी सहमति दी.