तुलसीदास कृत ‘श्रीरामचरितमानस’ की अपने ढंग से व्याख्यायित करने की एक बड़ी परंपरा रही है

 गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘श्रीरामचरितमानस’ की संतों, रामकथा-वाचकों और बौद्धिकों में अपने ढंग से व्याख्यायित करने की एक बड़ी परंपरा रही है। साहित्यानुरागियों की परंपरा भी उतनी ही समृद्ध रही है, जिनके ग्रंथों ने मानस को एक बड़े समन्वयवादी आदर्श काव्य की संज्ञा दी है। अंग्रेजी की दुनिया में भारतीय संस्कृति, सनातन परंपरा और प्राच्य-विद्या पर कमेंट्री लिखने की रवायत रही है। इसमें के. एम. मुंशी, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, पं. क्षेत्रेशचंद्र चट्टोपाध्याय, विलियम हॉली आदि की लिखी टीकाएं व समालोचनाएं संदर्भ-ग्रंथ की तरह प्रयुक्त होती रही हैं। इसी परंपरा में पूर्व प्रशासनिक अधिकारी और राजनयिक पवन के. वर्मा की किताब ‘द ग्रेटेस्ट ओड टू लॉर्ड राम- तुलसीदास रामचरितमानस-सेलेक्शंस एंड कमेंटरीज’ देखी जानी चाहिए। पहले भी शंकराचार्य पर पठनीय किताब लिख चुके वर्मा इस बार वैष्णव-परंपरा की अनन्यता पर विचार कर रहे हैं। भूमिका में वे स्वीकारते हैं- ‘इस किताब के माध्यम से मेरा गंभीर प्रयास तुलसीदास द्वारा मानस में लिखे गए कुछ उन महत्वपूर्ण अंशों का प्रस्तुतीकरण है, जो राम को व्यापक पाठक समुदाय के बीच और भी अधिक पठनीय ढंग से स्थापित करते हैं।

’लेखक ढेरों उद्धरणों से, जो उन्होंने दुनियाभर के विद्वानों के लेखन से जुटाए हैं, इतिहास में तुलसीदास को एक बड़े क्रांतिधर्मा विचारक के तौर पर देखने का जतन भी करते हैं। इसी कामना के साथ, मानस से अंश-पाठ भी चुने गए हैं, जो रामकथा का एक समावेशी मानवीय स्वरूप दर्शाते हैं। इस वैचारिक पुस्तक में पवन के. वर्मा ने कुछ दिलचस्प अवधारणाएं रची हैं। जैसे, भक्ति साहित्य अपने दौर में उस शास्त्रीयता से दूर हो चुका था, जिसकी भाषा संस्कृत थी। भक्ति के इस आंदोलन ने सामान्यजन को उनकी अपनी भाषाओं में आगे बढ़कर गले लगाया। उन्होंने इसी तर्क के तहत भक्ति-आंदोलन के प्रमुख कवियों की मातृभाषा पर विचार किया है। विद्यापति, जो मिथिला (बिहार) के निवासी थे, ने अधिकतर लेखन मैथिली में किया। सूरदास बृजभाषा में रचनाएं करते थे और उनके समकालीन गोविंददास ने ‘बृजबुली’ (बृजी) में साहित्य रचा, जो स्थानीय ढंग से बांग्ला भाषा के शब्द और मैथिली के मिले-जुले असर से बनी थी। इसी तरह यह तथ्य कि तुलसीदास ने मानस की पांडुलिपि की एक प्रति अपने मित्र टोडरमल के पास सुरक्षित रखवाई थी, जो मुगल बादशाह अकबर के दरबार में वित्त का काम देखते थे। तुलसीदास को एक चिंतक के तौर पर देखने का उनका प्रयास संतुलित ढंग से सामने आता है, जिसमें उनकी लोकव्याप्ति वाली छवि को आदर्श माना गया है।

मानस से जिन चौपाइयों को चुनकर लेखक ने टिप्पणियां की हैं, वह समाज विज्ञान के धरातल से इस ग्रंथ के अंतस को पढ़ने का एक तरीका हो सकता है। जाहिर है ऐसा करने में मानस की समावेशी छवि से अलग, उसके बौद्धिक आदान-प्रदान का भी क्षेत्र खुलता है, जिसमें रामकथा के विभिन्न पात्र अपनी नैसर्गिक मनोदशाओं में उपस्थित हैं। छोटी टिप्पणियों में मानस का आध्यात्मिक आशय निकालने में पवन के. वर्मा ने बड़े मनोयोग से चौपाइयों को विश्लेषित किया है। इन अंशों पर जब वे टिप्पणी करते हैं, तो मानस की एक आधुनिक व्याख्या संभव होती जान पड़ती है, जो कई दफा पारंपरिक अर्थों में उस राह निकलना नहीं चाहती, जहां जाकर कुछ अतिरिक्त पाया जा सकता है। इस संदर्भ में ‘राम-लक्ष्मण संवाद’, ‘हनुमान की व्याख्या’, ‘रामराज्य’, ‘शिव-सती संवाद’, ‘रावण-मंदोदरी संवाद’ जैसे अध्याय तार्किकता और भावना के बीच सहज ढंग से रमण करते हैं। ‘मंदोदरी-रावण संवाद’ टिप्पणी में लेखक ने दार्शनिक ढंग र्से ंहदू पौराणिकता को समझाया है। र्‘ंहदू पौराणिक कथाएं विरोधाभास में खुलती हैं। यहां निश्चयात्मक रूप से कोई भी काला या सफेद पक्ष नहीं है। एक बड़े परिप्रेक्ष्य में यहां सब धूसर (ग्रे) है, जिसमें न कोई पूरी तरह बुरा है और न ही अपनी संपूर्णता में अच्छा है।’ इस एक कथन के सहारे श्रीरामचरितमानस के समकालीन भाष्य को पढ़ना सार्थक लगने लगता है। आप सिर्फ एक ऐतिहासिक, पौराणिक ग्रंथ को ही समझ नहीं रहे होते, बल्कि मिथकीय संदर्भों की उस गंभीर यात्रा में स्वयं को शामिल पाते हैं, जिसे विविध स्तरों पर खोलकर पढ़ा जा सकता है।

किताब रामकथा के अधिकतर पात्रों को नई रोशनी में देखने का प्रयास करती है। सभी के लिए मानस में कुछ अंतर्निहित संदेश मौजूद हैं, जिन्हें खोलना प्रचलित ढर्रे की समालोचना को उसके आत्यंतिक सत्य के साथ ‘डिकोड’ करना भी है। जैसे, संदर्भों को उचित दिशा में पढ़ने की कोशिश, दो पात्रों के बीच संवादों के मध्य फैले वृहत्तर आशय को उभारने का जतन और तुलसीदास के दौर को उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक अवधारणा के तहत मानस के प्रसंगों को विश्लेषित करने की चाह। यह सब साधते हुए पवन के. वर्मा ने रामकथा का ऐसा नवनीत निकालने का प्रयास किया है, जिसे तर्कपूर्ण ढंग से पढ़ना ज्यादा असरकारी होगा। यह किताब रामकथा-अध्ययन के कैटलॉग में विचारोत्तेजक इजाफा होने के साथ ही परंपरा का रोचक पुनर्पाठ भी है।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com