गांव पूरी तरह ट्रैफिक के शोर से आजाद है। खच्चर और घोड़े गांव की गलियों और पगडंडियों पर नजर आ जाएंगे। इस गांव में भले ही शहरों जैसी सुविधाएं नहीं हैं, लेकिन एक तसल्लीबख्श जिंदगी गुजारने वाली तमाम सहूलते हैं। यहां पोस्ट ऑफिस है, कैफे हैं, दो चर्च हैं, लॉज हैं, प्राइमरी स्कूल हैं, किराने की दुकानें हैं। यहां के लोग आज भी हवासुपाई भाषा बोलते हैं, सेम की फली और मकई की खेती करते हैं। रोजगार के लिए लच्छेदार टोकरियां बुनते हैं और शहरों में बेचते हैं। टोकरियां बनाना यहां का पारंपरिक व्यवसाय है।
गांव से शहर को जोड़ने का काम खच्चर गाड़ियों से होता है। गांववालों की जरूरत का सामान इन खच्चर गाड़ियों पर लाद कर यहां लाया जाता है। कई सदियों से लोग इस अजीबो-गरीब गांव को देखने आते रहे हैं। बीसवीं सदी तक इस गांव के लोगों ने बाहरी लोगों के आने पर रोक लगा रखी थी, लेकिन आमदनी बढ़ाने के लिए उन्होंने करीब सौ साल पहले अपने गांव के दरवाजे बाहरी दुनिया के लिए खोल दिए।
हर साल गांव में करीब बीस हजार लोग यहां की कुदरती खूबसूरती और यहां की जिंदगी देखने के लिए आते हैं, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए सभी सैलानियों को हवासुपाई की ट्राइबल काउंसिल की इजाजत लेनी पड़ती है। फरवरी महीने से नवंबर तक सैलानी यहां के लोगों के साथ उनके घरों में रह सकते हैं। चांदनी रात में झरनों से गिरते पानी की आवाज के साथ गांव की खूबसूरती का मजा ले सकते हैं।
हवासुपाई गांव के लोगों की जिंदगी आसान बनाने वाले खच्चरों के लिए बीते कई दशकों से आवाज उठ रही है। सैलानियों की बढ़ती तादाद के साथ इन खच्चरों पर दबाव बढ़ने लगा है। इनसे जरूरत से ज्यादा काम लिया जा रहा है। साईस घोड़े और खच्चरों को सेहत को नजरअंदाज कर बिना खाना-पानी के आठ मील दूर तक चलाते रहते हैं। हालांकि ऐसा हर कोई नहीं करता। इसीलिए हवासुपाई ट्राइबल काउंसिल ने ऐसे साईसों की टीम बना दी है, जो कारोबार में इस्तेमाल होने वाले सभी जानवरों की देखभाल करते हैं। ये एक से दस नंबर के पैमाने पर जानवरों को सेहत का सर्टिफिकेट देते हैं।
एरिजोना यूं ही सूखा राज्य है। यहां की ग्रैंड कैनियन में बारिश बहुत कम होती है। सालाना बारिश नौ इंच से भी कम रिकॉर्ड की जाती है है, लेकिन यहां के तीस हजार साल पुराने पानी के चश्मी कभी पानी की किल्लत नहीं होने देते। वैज्ञानिक पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि इस रेगिस्तानी इलाके में फिरोजी पानी के झरने इतने सालों से कैसे रवां हैं। पानी में ये फिरोजी रंग आता कहां से है। दरअसल यहां की चट्टानों और जमीन में चूना पत्थर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। पत्थर पर पानी गिरने के साथ जब हवा मिलती है तो एक तरह की रसायनिक प्रतिक्रिया होती है और कैल्शियम कार्बोनेट बनने लगता है। सूरज की रोशनी पड़ने पर यही पानी फिरोजी रंग का नजर आता है।