जब बात इंसानियत की आती है तो सभी एक हो जाते हैं. सभी धर्म मनुष्य को एक-दूसरे से अलग नहीं करते बल्कि उन्हें एक साथ मिलकर रहने की सीख देते हैं. धर्मिक सहिष्णुता और सार्वभौम स्वीकृति की ऐसी कई मिसालें आज भी देखने को मिलती है, जब ‘राम-रहीम’ में कोई फर्क नहीं रहता, रोजेदार सिर्फ मुसलमान नहीं होते, बल्कि हिन्दू भी होते हैं. इस तरह ये लोग सद्भावना की नजीर पेश करते हैं.

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