पटियाला से कांग्रेस उम्मीदवार डा. धर्मवीर गांधी का कहना है कि अफीम की खेती पर रोक लगने से पंजाब में स्मैक, हीरोइन और सिंथेटिक ड्रग्स की बिक्री बढ़ी है। इससे पंजाब में नशा माफिया भी पनपा है। उनका कहना है कि सिंथेटिक नशे बेहद खतरनाक हैं। यही वजह है कि आए दिन नशे से पंजाब में मौतें हो रही हैं। उनका कहना है कि अगर इस पर रोक लगानी है तो पंजाब में रिवायती नशे अफीम की खेती को अनुमति देनी ही पड़ेगी।
पंजाब में नशा बड़ा मुद्दा रहा है। हर चुनाव में सूबे से नशे को खत्म करने के सियासी दल वादे दावे करते रहे हैं। विरोधियों को घेरने के लिए नशे का मुद्दा हथियार के रूप में इस्तेमाल होता रहा है। लेकिन इस चुनाव में नशे का विरोध करने वाले कुछ नेता पंजाब में अफीम की खेती को कानूनी मान्यता देने की वकालत करते हुए इसे मुद्दा बना रहे हैं।
घर के पीछे 35 पौधे लगाने की मिले अनुमति
डा. गांधी का कहना है कि गांवों में पुलिस या फिर सरपंच की निगरानी में लोगों को अपने घरों के पीछे कच्ची जगह में पांच से 35 पौधे अफीम या भुक्की लगाने की अनुमति दी जाए। लेकिन अगर कोई 36वां पौधा लगा देता है, तो फिर उसे सजा मिलने का भी प्रावधान हो। डा. गांधी का दावा है कि अगर ऐसा हो गया तो ड्रग्स माफिया खुद खत्म हो जाएगा। उन्होंने इसके लिए एनडीपीएस संशोधन बिल लाने की मांग की है।
उधर, संगरूर से कांग्रेस के उम्मीदवार सुखपाल सिंह खैरा ने भी डा. धर्मवीर गांधी की बात का समर्थन किया है। खैरा का कहना है कि सिंथेटिक व केमिकल नशे पंजाब की जवानी को खत्म कर रहे हैं। गौर हो कि 2018 में डा. गांधी ने यह मांग उठाई थी, जिसके समर्थन में बाद में नवजोत सिंह सिद्धू भी आ गए थे। सिद्धू की पत्नी डा. नवजोत कौर सिद्धू भी पंजाब में अफीम की खेती की हिमायत कर चुकी हैं।
नशे की ओवरडोज से तीन वर्ष में 266 की मौत
पंजाब में नशे की ओवरडोज के कारण बीते तीन वर्षों में 266 लोगों की मौत हो चुकी है। ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन ने एक अप्रैल 2020 से लेकर 31 मार्च 2023 तक नशे की ओवरडोज से मरने वालों के फील्ड से आंकड़े जुटाए हैं। इसके मुताबिक साल 2020-21 के दौरान 36. साल 2021-22 में 71 और 2022-23 में 159 लोगों की मौत हुई। सबसे अधिक 38 मौतें जिला बठिंडा में हुईं, वहीं तरनतारन में 30. फिरोजपुर में 19 और अमृतसर देहाती में 17 मौतें रिपोर्ट की गईं।
धान की जगह अफीम की खेती अच्छा विकल्पः बराड़
पंजाबी यूनिवर्सिटी से राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ असिस्टेंट प्रोफेसर गुरप्रीत बराड़ के मुताबिक, सिंथेटिक ड्रग्स की तुलना में अफीम, भुक्की व भांग जैसे रिवायती नशे बेहतर हैं। अफीम की खेती की अनुमति न होने के चलते इसकी अवैध बिक्री होने लगी और यह महंगी होती चली गई। इसकी जगह अब दूसरे नशे आ गए हैं, जो काफी जानलेवा हैं। सरकार को चाहिए कि कानून में संशोधन करके अफीम की खेती को कानूनी मान्यता दी जाए। साथ ही किसानों को धान के फसली चक्र से निकालने के लिए भी अफीम की खेती एक अच्छे विकल्प के तौर पर अपनाई जा सकती है। लेकिन यह पूरी तरह से सरकार की निगरानी में होना चाहिए। उनका कहना है कि दवाओं के निर्माण में अफीम की काफी मांग रहती है। किसान अफीम को अच्छे दामों पर ओपन मार्केट में भी बेच सकते हैं। बराड़ ने कहा कि इससे पंजाब में भू-जल के गिरते स्तर में सुधार लाने में भी मदद मिलेगी।
भाकियू डकौंदा सहमत नहीं
भारतीय किसान यूनियन एकता (डकौंदा) के प्रदेश महासचिव जगमोहन सिंह इससे सहमत नहीं है कि लोगों को अपने घरों के पीछे अफीम की खेती करने की इजाजत मिले। उनका कहना है कि इससे अफीम की अवैध बिक्री बढ़ेगी। जो नशे की लत के शिकार हैं, उनके सरकार की तरफ से लाइसेंस बनाएं। इनके आधार पर सरकार से मंजूरशुदा आउटलेट्स पर उस व्यक्ति को जरूरत के मुताबिक मात्रा में अफीम उपलब्ध कराई जाए।