केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद हरसिमरत कौर बादल का पहला बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने सरकार को आड़े हाथों लिया। हरसिमरत ने कहा कि सरकार को बिल बनाने से पहले किसानों और आढ़तियों से विचार विमर्श कर लेना चाहिए था, इसमें राजनीति वाली कौन-सी बात हो गई? सिर्फ पंजाब में ही कृषि विधेयक का विरोध नहीं हो रहा।

हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र के किसान भी इसके विरोध में सड़कों पर हैं। दक्षिण भारत में विरोध की लहर है। जिस विधेयक से किसान खुश ही नहीं, उसे पास करने का क्या फायदा। ये तो जबरन थोपने वाली बात हो गई है।
वरिष्ठ अकाली नेता हरसिमरत कौर बादल ने रवीवार को यह कहते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया कि वह और उनकी पार्टी किसी भी किसान विरोधी फैसले में सहयोगी नहीं बन सकते। उन्होंने कहा कि मेरा फैसला शिरोमणि अकाली दल की उस पवित्र सोच, विरासत और समर्पण की भावना का प्रतीक है, जिसके अनुसार अकाली दल किसानों के हित की लड़ाई में किसी भी हद तक जाने से पीछे नहीं हटा है और न हटेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे अपने चार पेज के इस्तीफे में हरसिमरत बादल ने कहा कि उन्हें इस बात पर बेहद गर्व है कि आज वह अकाली दल के गौरवमयी विरासत को आगे बढ़ाने में अपना रोल निभा रही हैं। उन्होंने कहा कि मुझे इस बात पर गर्व है कि हमारे किसान हमेशा ही सबसे ज्यादा उम्मीद शिरोमणि अकाली दल पर करते आए हैं और पार्टी उनकी उम्मीदों एवं विश्वास पर खरी उतरी है।
जो मर्जी हो जाए, हम पार्टी की इस विरासत और किसानों के इस भरोसे को कोई ठेस नहीं पहुंचने देंगे। उनका फैसला केंद्र द्वारा किसानों को विश्वास में लेने और उनकी शंकाओं को दूर किए बिना बिल लाने के फैसले और शिअद द्वारा इस किसान विरोधी बिल का विरोध करने के परिणामस्वरूप उठाया गया कदम है। उन्होंने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि वह उनके इस्तीफे को स्वीकार कर लें।
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