जानें महिलाएं क्यों जाती हैं बार-बार बाथरूम, इसे रोकने के क्या हैं उपाय

बहुत सी महिलाओं को बार-बार बाथरूम जाना पड़ता है। अधिकतर मामलों में लोग इसे हल्के में ही लेते हैं। ज्यादा ध्यान नहीं देते। पर हम आपको बता दें कि इस समस्या से निपटने के कई तरीके हैं। जिन्हें अपनाकर आप इस समस्या का समाधान कर सकते हैं।

तो आइए आज हम आपको बताते हैं इस समस्या और इसके समाधान के बारे में।

यूरिनरी इंकॉन्टीनेंस

इस स्थिति को ‘मूत्र असंयम” के नाम से भी जाना जाता है। यह समस्या ब्लैडर (एक अंग जो मूत्र को संचित करके रखता है) के अनियंत्रित होने की वजह से होती है। इसका अर्थ हुआ यह स्थिति ‘ओवरएक्टिव ब्लैडर’ की समस्या की वजह से होती है। ब्लैडर के ओवरएक्टिव होने की वजह से कभी-कभी खांसने, छींकने, हंसने, सामान उठाने, सीढ़ियाँ चढ़ने जैसी स्थितियों में भी यूरिन निकल जाती है।

महिलाओं में ज्यादा पाई जाती है यह समस्या

 

दी नेशनल एसोसिएशन फॉर कॉन्टिनेंस’ के मुताबिक पुरुषों के मुकाबले दोगुनी महिलाएं ‘ब्लैडर इंकॉन्टीनेंस’ की समस्या से ग्रसित होती हैं। साथ ही 20 से 45 वर्ष आयु सीमा वाली महिलाओं में यह समस्या अन्य महिलाओं की तुलना में 40% अधिक होती है।

इस तरह के होते हैं ‘ओवरएक्टिव ब्लैडर’

‘ओवरएक्टिव ब्लैडर’ के कई प्रकार होते हैं। पेल्विक ऊतक और मांसपेशियों के कमजोर होने से ‘तनाव असंयम‘ की स्थिति बनती है। मूत्राशय पूरी तरह खाली नहीं हो पाने की स्थिति ‘ओवरफ्लो असंयम‘ के नाम से जानी जाती है। इस स्थिति में  मूत्राशय पूरा भरने के बाद मूत्र लीक होने की समस्या से दो चार होना पड़ता है। एक और स्थिति है जिसमें व्यक्ति वॉशरूम पहुँचने तक भी अपने मूत्र पर नियंत्रण नहीं रख पाता। इस स्थिति को  ‘तीव्र असंयम‘ कहा जाता है।

समस्या के कारण

महिलाओ में ब्लैडर गर्भावस्था और प्रसव के बाद भी ओवरएक्टिव हो जाता है। चूँकि इस दौरान तनाव के साथ श्रोणि क्षेत्र की मांसपेशियों पर अधिक दबाव पड़ता है, जो मूत्र असंयम की समस्‍या को जन्म देती है। इसके अलावा स्‍केलेरोसिस, अर्थराइटिस, डिमेंशिया, मूत्राशय की पथरी और मूत्राशय संक्रमण जैसे रोग भी इसका कारण हो सकते हैं। गौरतलब है कि कुछ दवाईयां भी यह समस्या उत्पन्न कर सकती हैं।

समस्या का उपचार

यह समस्या कई मुश्किलें पैदा करती हैं। पर अच्छी बात यह है कि इसके उपचार भी उपलब्ध हैं। ओवरएक्टिव ब्लैडर होने की स्थिति में विशेषज्ञ ‘कीगल व्‍यायाम’ और ‘पेल्विक फ्लोर व्‍यायाम’ आदि करने की सलाह देते हैं। साथ ही जीवनशैली में कुछ बदलाव लाकर भी इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

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