दुनियाभर में बीते कुछ सालों से फूड पैकेजिंग को लेकर बहस छिड़ी हुई है। कोरोना आपदा के पहले प्लास्टिक बैन को लेकर कई देशों के साथ कुछ कंपनियां भी आगे आईं, लेकिन हाइजीन के कारण प्लास्टिक का इस्तेमाल फिर से बढ़ा है। पर पूरी दुनिया में इस बात पर विमर्श जारी है कि फूड पैकेजिंग कैसे सुरक्षा और सेहत के मानकों पर खरी उतर सकती है? ओआरबी ने इसी के मद्देनजर दुनियाभर के शोध पत्रों, लेखों का सिलसिलेवार और गहन अध्ययन किया। उनमें से कुछ रिसर्च पत्रों के महत्वपूर्ण बिंदुओं को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। इन शोध पत्रों में कमोबेश सभी ने चिंता जाहिर की है कि पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाले रसायनों का विस्तृत विश्लेषण करने की आवश्यकता है, ताकि सेहत और पर्यावरण दोनों को सुरक्षित रखा जा सके।
फूडप्रिंट की मानें तो दुनियाभर में फूड पैकेजिंग चार तरह की होती है- प्लास्टिक पैकेजिंग, मेटल पैकेजिंग, पेपर/फाइबर पैकेजिंग और ग्लास पैकेजिंग। रॉ मैटीरियल से बनी पैकेजिंग सेहत के लिए खतरनाक होती है। मेटल केन जो कि एंटी कोरोसिव से बने होते हैं, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। पेपर/फाइबर पैकेजिंग जो द्रव को रख सकती है, वह सेहत के लिए बेहतर नहीं मानी जाती है।
कोरोना वायरस के कारण प्लास्टिक बैन की मुहिम पिछड़ी
एम्मा न्यूबर्गर अपने लेख में लिखती है कि कोरोना वायरस आपदा के पहले दुनियाभर में प्लास्टिक बैग को बैन करने को लेकर काफी प्रगति हुई थी। इसमें हम प्लास्टिक से पेपर उत्पादों की तरफ आगे बढ़ चले थे। पर कोरोना की वजह से उपजी स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां इस तरक्की की राह में रोड़ा बन गई हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्थिक नुकसान की भरपाई करने के लिए भी रेस्तरां मजबूरीवश बेहतर विकल्पों को छोड़ रहे हैं।
प्लास्टिक पैकेजिंग : हीरो या विलेन
फूड नेविगेटर डॉट कॉम के लेख में कहा गया है कि कोरोना आपदा के समय खाने को सुरक्षित रखने के लिए फूड पैकेजिंग का सहारा लिया जा रहा है। वहीं, दूसरी तरफ डिस्पोजेबल प्लास्टिक मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बैक्टीरिया का वाहक भी बनती जा रही है। ऐसे में बड़ा सवाल यह कि प्लास्टिक पैकेजिंग को हीरो माना जाए या विलेन। मौजूदा समय में सवाल यह उठ रहा है कि अगर आप केले को सुपरमार्केट से खरीदते हैं तो कैसे माना जाए कि यह बैग के अंदर सुरक्षित है या बैग के बाहर। इस बारे में एफडीए का कहना है कि अन्य वायरस की तरह कोरोना सतह या ऑब्जेक्ट पर जीवित रह सकता है। ब्रिटिश प्लास्टिक फेडरेशन के प्लास्टिक और फ्लेक्सिबल पैकेजिंग के निदेशक बैरी टर्नर कहते हैं कि प्लास्टिक की मांग में आपदा के दौरान तेजी से बढ़ोतरी आई है। टर्नर कहते हैं कि हाइजीन की वजह से प्लास्टिक स्टिरर की मांग बहुत बढ़ी है। इस दौर में सिंगल यूज प्लास्टिक हाइजीन के दृष्टिकोण से बेहतर है। वह कहते हैं कि लोग इसे हाइजीन की वजह से सुरक्षित मान रहे हैं। पर मार्च, 2020 माह में आए एक अध्ययन के अनुसार, वायरस किसी ठोस सतह जैसे कि प्लास्टिक या स्टेनलेस स्टील पर 72 घंटे और कार्डबोर्ड पर 24 घंटे जीवित रह सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के असिस्टेंट प्रोफेसर और अध्ययन के लेखक जेम्स लायड स्मिथ कहते हैं कि वायरस कई दिनों तक जीवित रह सकता है।
क्या है सिंगल यूज प्लास्टिक की दिक्कत?
फूडप्रिंट के अनुसार, सिंगल यूज प्लास्टिक- जैसे कप, लिड, स्ट्रा या पानी की बोतल या टमाटो वाला प्लास्टिक कंटेनर सिर्फ एक बार प्रयोग के लिए होता है। इसके रीसाइकिल का कोई प्लान नहीं है।
मेटल फूड पैकेजिंग की परेशानी
मेटल फूड पैकेजिंग को इसलिए इस्तेमाल किया जाता है कि इसे रीसाइकिल किया जा सकता है। अमेरिका में अधिकतर मेटल फूड पैकेजिंग एल्युमिनियम से बनती है। वहीं एल्युमिनियम के प्रोडक्शन में ग्रीन हाऊस गैस, सल्फर डाइऑक्साइड आदि का उत्सर्जन होता है, जो सेहत के लिए हानिकारक है।
फाइबर फूड पैकेजिंग
फूड प्रिंट के मुताबिक, ज्यादातर फाइबर फूड पैकेजिंग फिजिकल, यूवी और लाइट के बेहतर बैरियर होते हैं, पर लिक्विड के अच्छे बैरियर नहीं होते हैं। ऐसे में उनमें प्लास्टिक कोटिंग परफ्लूरोनेटेट केमिकल की होती है, जो स्वास्थ्य के लिए खराब होता है।
प्लास्टिक कूड़ा बढ़ रहा
यूनाइटेड नेशंस कांफ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (यूएनसीटीएडी) के अनुसार, कोरोना वायरस आपदा के बाद से प्लास्टिक के बढ़ते प्रयोग के कारण प्लास्टिक कूड़ा काफी बढ़ा है। उदाहरण के तौर पर सिंगापुर के आठ हफ्ते के लॉकडाउन के दौरान 1470 टन अतिरिक्त कूड़ा निकला था। ग्रैंड व्यू रिसर्च के अनुसार, डिस्पोजेबल मास्क की सेल से 2019 में जहां 800 मिलियन कूड़ा निकला था, जो 2020 में बढ़कर 166 बिलियन हो गया। यूएनसीटीएडी के मुताबिक, जितना प्लास्टिक प्रदूषण कम होगा, नौकरियां उतनी अधिक होगी। यूएनसीटीएडी ने ग्लास, सिरैमिक, नेचुरल फाइबर, पेपर, कार्डबोर्ड, नेचुरल रबड़ और एनीमल प्रोटीन के इस्तेमाल पर जोर दिया। फूंड प्रिंट के अनुसार, ज्यादा प्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल नहीं होता। वह छोटे टुकड़ों में टूट जाता है, जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। यह वातावरण में घुलकर प्रदूषण बढ़ाने का काम करता है। इसका असर मानव के स्वास्थ्य के साथ समुद्र में रहने वाले जानवरों पर भी पड़ रहा है।
ये विकल्प हो सकते हैं कारगर
सेफर मॉड के अनुसार, विनायल क्लोराइड, ट्राइबुटाइटलिन ऑक्साइड, एंटीमोनी ट्राइऑक्साइड, विनाइल एसीटेट आदि प्लास्टिक के इस्तेमाल पर विचार करना चाहिए। फाइबर और बायो आधारित प्लास्टिक पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक का विकल्प हो सकते हैं। डिग्रेडेबल प्लास्टिक, रिसाइकलिंग टेक्नोलॉजी, रियूजेबल पैकेजिंग तकनीक काफी काम में आ सकती है।
सेफर मॉड के मुताबिक, कोई मैटीरियरल एक या दो फंक्शन के लिए बैरियर का काम करता है। उदाहरण के तौर पर एक कार्डबोर्ड बॉक्स यूवी/लाइट और फिजिकल तौर पर बैरियर का काम करता है, पर वह नमी, तेल या गैस के लिए बैरियर का काम नहीं करता है। प्लास्टिक फिल्म (जैसे कि उच्च घनत्व का पॉलीथाइलीन) पानी या तेल के लिए बेहतर बैरियर का काम करती है, पर यह यूवी/प्रकाश के लिए बैरियर का काम नहीं करती है। बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का उपयोग भी बेहतर है। इसमें मैटीरियल वातावरण में बैक्टीरिया या अन्य लिविंग आर्गेनिज्म में टूट जाता है। वहीं रीयूजेबल पैकेजिंग का भी प्रयोग किया जा सकता है, हालांकि यह थोड़ी महंगी पड़ती है।
यह आए समाधान
– यूरोप के एक रेस्तरां मालिक ने सुझाव दिया कि क्यूआर कोड के द्वारा मैन्यू पढ़ने की सुविधा दी जाए। इससे डिस्पोजेबल मैन्यू से बचा जा सकेगा।
-एक रेस्तरां मालिक ने समाधान बताया कि रेस्तरां अपने कर्मचारियों के डिस्पोजेबल मास्क और ग्लब्स को टेरासाइकिल के द्वारा रिसाइकिल कर सकते हैं।