हिंदी पंचांग के अनुसार सावन मास चल रहा है। इस मास में पड़ने वाले सभी पर्व का बहुत महत्व है। एकादशी प्रत्येक मास में दो बार आती है। एकादशी के दिन हम अपने पितरों को जल अर्पण करते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। सावन शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी के व्रत से संतान प्राप्ति का फल मिलता है। इस दिन कथा सुनने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइये जानते हैं पुत्रदा एकादशी पौराणिक कथा क्या है।
पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा
भद्रावतीपुरी नामक नगर में सुकेतुमान नामक राजा राज करता था। संतान न होने की वजह से वैभवशाली राजा सुकेतुमान और रानी बहुत दुखी रहते थे। राजा और रानी को चिंता थी कि उनकी मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार कौन करेगा? तथा उनके पितरों को श्राद्ध कौन देगा और उनकी आत्मा को शांति कैसे मिलेगी? बीतते समय के साथ एक दिन राजा जंगल की तरफ शिकार के लिए गए। वहां अचानक से उन्हें बहुत तेज की प्यास लगी।
पानी का एक तलाब देखकर राजा उसके समीप पहुंचे। जहां पर तालाब के समीप ही उन्हें आश्रम दिखाई दिया। पानी पीकर राजा ऋषियों से मिलने आश्रम में चले गए। ऋषि-मुनियों उस समय पूजा-पाठ कर रहे थे। राजा ने उत्सुकतावश ऋषियों से पूजा-पाठ के उस विशेष विधि को जानना चाहा। ऋषियों ने राजा को बताया कि आज पुत्रदा एकादशी है। इस दिन जो भी व्यक्ति व्रत और पूजा-पाठ करता है उसे संतान की प्राप्ति होती है।
राजा ने मन ही मन पुत्रदा एकादशी व्रत रखने का प्रण किया। वापस लौटकर उन्होंने रानी के साथ मिलकर पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। पूरे विधि-विधान से विष्णु के बाल गोपाल स्वरूप की पूजा-पाठ किया। राजा सुकेतुमान ने द्वादशी को पारण किया। पुत्रदा एकादशी व्रत के प्रभाव से कुछ महीनों बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।