जब भी सांस की नलियां किसी भी तरह की ऐलर्जी के संपर्क में आती हैं तो उन में सूजन हो जाती है, जिस से वे सिकुड़ कर चिपचिपा पदार्थ बनाती हैं. उस से सांस की नलियां बाधित होती हैं और सांस लेने में तकलीफ होती है. इस के साथसाथ खांसी भी होती है. अस्थमा से पीडि़त लोगों या उन्हें मैनेज करने वालों के लिए यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि रोगी को किन कारणों से अस्थमा की समस्या तेज होती है. इस से न सिर्फ अस्थमा को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी. वरन अस्थमा अटैक में भी कमी आएगी. पर्यावरणीय कारकों भोजन और सांस लेते समय किसी चीज से ऐलर्जी होने का पता चलने पर रोगी गंभीर अस्थमा अटैक को रोक सकता है. अस्थमा रोगियों को निम्नलिखित ट्रिगर के बारे में जानना महत्त्वपूर्ण है:
धूम्रपान: यह सांस की नलियों को अवरुद्ध कर के फेफड़ों को स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त कर सकता है. जब तंबाकूयुक्त धूम्रपान को सांस द्वारा अंदर किया जाता है तो यह अस्थमा अटैक का ट्रिगर हो सकता है. इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए अस्थमा रोगियों को न सिर्फ धूम्रपान छोड़ना होगा, बल्कि ऐसे स्थानों पर भी जाने से परहेज करना होगा जहां धूम्रपान हो रहा हो या धुंआ हो. अगर घर में कोई सदस्य धूम्रपान करता है तो उसे इसे छोड़ने को कहें.
पराग: ये पेड़, खास तरह की घास या अन्य पर्यावरणीय कारकों से पैदा होने वाले बहुत छोटे कण होते हैं. पराग के इन कणों को खासतौर से वसंत के मौसम में एअर कंडीशनर के इस्तेमाल से रोका जा सकता है. वसंत ऋतु के दौरान हवा में पराग की मात्रा काफी होती है. दोपहर में जब पराग का स्तर ज्यादा होता है तब बाहर निकलते समय नाक और मुंह पर मास्क लगा लें. सोने से पहले बालों को धोएं. अगर दिन में आप पराग के संपर्क में आए हैं तो रात में बाल धोना फायदेमंद रहेगा.
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