आजकल की “झांसे की रानीयो” का काला सत्य” :==>>
जी हाँ |
आपने सही ही पढ़ा है “झाँसी नहीं बल्कि झांसे की रानी “। ये रानी और कोई नहीं बल्कि आज कल की औरतें या लडकियाँ हैं।
आज कल प्रतिदिन कहीं न कहीं ये समाचार सुनने को या पढ़ने को मिलता है की “दो साल तक लड़के ने शादी का झांसा देकर लड़की का रेप किया” ।
कितना हास्यप्रद है ये। और उस से भी बड़ी बात ये की मीडिया इस तरह की खबर दिखाकर अपनी मूर्खता का जबरदस्त प्रदर्शन करता है ।।
सवाल ये है क्या उस पुरुष ने उस महिला को 2 साल तक बिस्तर से बाँध कर रखा था ?? अगर महिला 2 साल तक अपनी मर्ज़ी से सम्बन्ध बना रही थी फिर वो रेप कैसे हो सकता है???? क्या भारत के स्वघोषित विद्वान मीडिया में इतना दिमाग नहीं है???
आज यही समाज का कड़वा सच है। पहले लडकियाँ रिलेशन में रहती है फिर कोईं अनबन हो जाने पर रेप केस ठोंक देती है और कहती है की शादी का झांसा देकर रेप किया |
क्या इन पढ़ीलिखी लड़कियों में बुद्धि नहीं होती कि ये झांसे में आ जाती हैं (या ऐसा कहें की अधिक बुद्धिमानी दिखाते हुए ऐसे कृत्या करती है) ??
चाणक्य कहते है की–मुर्ख पुरुष ही स्त्री पर विश्वास करते हैं।
आज कल अदालतों में इस तरह के मामलों की भरमार है। लगभग 80% मामले इसी तरह के होते है। और इनका परिणाम ये होता है की जो 20% मामले सच्चे होते है उनमें पीड़ित लड़कियों को इंसाफ नहीं मिलता। झूठे रेप केस के कारण सच्चे रेप केस में भी इन्साफ करना मुश्किल होता जा रहा है ।
और अगर कोई लड़का किसी लड़की से विवाह का वादा करे तब क्या वो लड़की उस लड़के के बिस्तर में लेट जाएगी ??? क्या वो लड़की गँवार है या उस लड़की में इतने संस्कार नहीं है की विवाह पूर्व इस तरह के कार्य पाप माने जाते है।
ऐसे बहुत से कारण होते है जब लड़का उस लड़की से विवाह नहीं कर पाता फिर जब 2 साल से सब कुछ लड़की की इच्छा से हो रहा था तो फिर ये बलात्कार कैसे हो गया??? और दो साल तक लड़की बेहोश थी क्या??
बिलकुल नहीं | तब लड़की बेहोश नहीं थी,, बल्कि लड़के के पैसे और लड़के के साथ सेक्स,, इन दोनों का ही आनंद ले रही थी। यही सच है। इस तरह की “झांसे की रानियों” से सभी पुरुष मित्र सावधान रहें।
भारतीय कानून चरित्रहीन औरतों का संरक्षक है। ये भारत की अधिकतर औरतों का गन्दा सच है जिसको अक्सर ढंकने की कोशिश की जाती है।
कुछ दिनों पहले एक अभिनेत्री ने एक एक अत्यंत धनी व्यक्ति पर छेड़छाड़ का केस लगाया था। सभी जानते हैं कि मॅाडल और अभिनेत्री बनने के रास्ते में कदम-कदम पर अनगिनत बेडरूमों से होकर गुजरना पड़ता है। ज्यादातर मामलों में पहले ये औरते अमीर लोगों के साथ पैसे के लालच में बिना शादी के दिन गुजारती हैं, फिर जब जी भर जाता है तो छेड़छाड़ का झूठा केस लगा देती है।
पिछले कुछ सालों में हमने कई नेताओं एवं उच्च पदों पर बैठे हुए कई महत्वपूर्ण पदाधिकारियों का सम्मान और कैरियर तबाह होते देखा। जो इसी तरह के रेप के आरोपों का शिकार हो गये।
महिलाओं के द्वारा की जा रही इस ज्यादती का विरोध करने का साहस ना तो मीडिया में है, और ना ही किसी राजनीतिक दल में। केवल एक दल “शिवसेना” ने वो दम दिखाया था जब वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी “सुनील पारसकर” को एक मॅाडल ने रेप के आरोप में बुरी तरह फँसाया । जिससे पुलिस बल में सालों तक अपनी सेवाएं देने वाले पारसकर रातों-रात खलनायक बन गये। तब शिवेसना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में डीआईजी का बचाव करते हुए कहा गया था कि पुरुषों पर रेप का आरोप लगाना आजकल फैशन बन गया है ।
पार्टी ने कहा था की “रसूखदार समाज में प्रचार के लिए पुरुषों पर छेड़छाड़ और बलात्कार के आरोप बढ़ रहे हैं। यह लगभग फैशन बन गया है। निजी दुश्मनी भुनाने के लिए ऐसे आरोप आजकल हथियार बन गए हैं।”
पुरूषों पर अत्याचार करने एवं ब्लैकमेंलिंग का महिलाओं के पास दूसरा सबसे बड़ा हथियार है धारा 498-ए । सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनेक बार इस बात पर चिन्ता प्रकट की जा चुकी है कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498-ए का जमकर दुरुपयोग हो रहा है। जिसका सबसे बड़ा सबूत ये है कि इस धारा के तहत तर्ज किये जाने वाले मुकदमों में सजा पाने वालों की संख्या मात्र 2% है । यही नहीं, इस धारा के तहत मुकदमा दर्ज करवाने के बाद समझौता करने का भी कोई प्रावधान नहीं है । ऐसे में मौजूदा कानूनी व्यवस्था के तहत एक बार मुकदमा अर्थात् एफआईआर दर्ज करवाने के बाद वर पक्ष को मुकदमे का सामना करने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं बचता है । जिसकी शुरुआत होती है, वर पक्ष के लोगों के पुलिस के हत्थे चढने से और वरपक्ष के जिस किसी सदस्य का भी, वधू पक्ष की ओर से धारा 498ए के तहत एफआईआर में नाम लिखवा दिया जाता है, उन सबको बिना ये देखे कि उन्होंने कोई अपराध किया भी है या नहीं उनकी गिरफ्तारी करना पुलिस अपना परम कर्त्तव्य समझती है और पूरी मुस्तैदी दिखाती है । वैसे आजकल की कुछ लड़कियों को पता होता है की सभी कानून अपने पक्ष में है । इसीलिए ये लडकियाँ और इनका परिवार पहले से ही तैयारी करते हैं किसी मुर्गे को फंसाने की | जैसे ही कोई लड़का शादी करता है वैसे ही वो पूरी तरह से दलदल में फंस जाता है।
उसे पति पर सास-ससुर पर देवर पर देवरानी पर जेठानी पर ननद पर यहाँ तक की पडोसी पर भी दहेज़ का केस करने का कानून में अधिकार हे !!! और वो झूठा सच्चा जैसा भी केस कर सकती है।
महिला कानूनों को कमाई का धंधा बना लिया गया है। कल की फ़िक्र अब ज्यादातर शातिर महिलाओं को नहीं रही। इंजीनियर बनना है तो स्वयं मेहनत करने की क्या जरूरत ? किसी इंजीनियर को फंसा लो। डॅाक्टर बनने के लिए स्वयं मेहनत करने की क्या जरूरत? किसी डॅाक्टर को फंसा लो। सैलरी तो अपने हाथ ही आएगी। फिर बाद में छोड़ने का मन करे तो दहेज प्रताड़ना के आरोप में फंसा दो या फिर मुकदमें का डर दिखाकर पैसे ऐंठो। आज शहरों के लगभग हर आधुनिक कालोनियों में ऐसे केस देखने को मिल जाएँगे।
परिवार टूट रहे है ! हर दूसरा घर बर्बाद हो रहा है तलाक़ दर 22% हो गई है। वो दिन दूर नहीं जब भारत अमेरिका के 40% तलाक़ दर को पार कर जायेगा।
क्या आपको पता है कि –
1) अगर दो नाबालिक लड़के-लडकियाँ सहमति से सेक्स करते है और अगर वो पकड़े जाते हैं तो लड़के पर रेप करने का मामला दर्ज होता है, लड़के की ज़िन्दगी बर्बाद हो जाती है। एक बात समझ नहीं आई की लड़की के ऊपर लड़के का रेप करने का मामला दर्ज क्यों नहीं होता??
2) अगर आप विवाहित पुरुष है और अगर आपकी पत्नी आपसे चोरी चुपके किसी की रखैल बनकर रहती है और किसी और के बच्चे की माँ बन जाती है तो भारतीय कानून के अनुसार वो बच्चा डीएनए टेस्ट होने तक यानी सालों तक आपका ही माना जाएगा और उस बच्चे का भरण पोषण आपको ही करना पड़ेगा। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो आपको जेल में ठूँस दिया जाएगा। लेकिन कुल मिलाकर आपकी बदचलन पत्नी को कोई सजा नहीं होगी।
3) अगर आपकी पत्नी चरित्रहीन है तो आप उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर सकते। सिर्फ तलाक ले सकते है। भारतीय कानून के अनुसार सिर्फ चरित्रहीन पुरुष को ही सजा दी जा सकती है ,चरित्रहीन औरत को नहीं । हालांकि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आफताब आलम ने इस कानून की भर्त्सना करते हुए इसे पुरुष विरोधी बताया था।
4)अगर कोई महिला आपका यौन शोषण करे तो आपको कोई न्याय नहीं मिलेगा क्योंकि भारतीय कानून में ऐसी औरतों के लिए कोई प्रावधान ही नहीं है।
5)हमारे देश में हर साल कई महिलाएं नाबालिग लड़कों के साथ सेक्स करती हैं लेकिन उन महिलाओं पर कोई रेप केस दर्ज नहीं होता, क्योंकि भारतीय कानून व्यवस्था के अनुसार महिला रेप कर ही नहीं सकती। जबकि इंग्लैंड में 64000 ऐसी महिलाओं को नाबालिक लड़कों का रेप करने के आरोप में जेल में डाला जा चुका है।
6)अगर आपकी पत्नी आप को मानसिक त्रास देती है या शारीरिक हमला करती है तो उसको घरेलू हिंसा का दोषी नहीं माना जाएगा। लेकिन आपको माना जाएगा।
7)अगर शादी के बाद आप अपनी पत्नी से पैसा मांगते है तो उसको दहेज़ माना जाएगा जबकि अगर वो आपसे पैसा मांगे तो उसको दहेज़ नहीं माना जा सकता।
महिलाओं के ऊपर देश का बिकाऊ मीडिया खूब सर्वे करता है, केंद्र सरकार खूब सर्वे करती है जिसमें महिला अत्याचार इत्यादि का जिक्र रहता है लेकिन पुरुषों के ऊपर आज तक कोई सर्वे नहीं किया गया। बल्कि प्रत्येक मामले में पुरूषों को ही दोषी ठहरा दिया जाता है।
कहने को भारत में माँ जगदम्बा की पूजा होती है लेकिन यहाँ देवी जैसी औरतों का अकाल सा दिखाई पड़ता है,, और यही सत्य है । सन 2012 में भारत के केवल एक राज्य बंगाल में 19 हजार से अधिक पुरुषो ने आत्महत्या की । ये पुरुष पत्नी पीड़ित थे। जबकि सिर्फ 5 हज़ार महिलाओं ने ही शादी के बाद आत्महत्या की।
NCRB-2013 (national crime record beuro) के अनुसार भारत में हर साल 65000 विवाहित पुरुष आत्महत्या करते हैं। देश में आये दिन पुरुषों के ऊपर रेप के दहेज़ के झूठे आरोप लगते हैं।
देश में अभी कुछ दिन पहले जब अश्लीलता का विरोध हुआ तो कई राज्यों के युवाओं ने मीडिया के सामने जमकर एक दूसरे को चुम्बन लिए और एक जगह तो अर्धनग्न होकर Slut walk किया । इस कार्य में लड़कियों ने खूब बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। उनका उत्साह देखते ही बनता था। इस तरह देश की कुछ लडकियाँ ये भी साबित कर रही हैं की वो कितनी बेशर्म भी हो सकती हैं । कुछ दशकों पहले हमारे समाज में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
और ये सब हो रहा है झूठी आजादी के नाम पर। प्रख्यात लेखक मुंशी प्रेमचंद ने कहा था “जो बलवान होते हैं वो अकड़कर नहीं चलते क्योकि उन्हें मालूम है कि वो बलवान हैं अतः वो अपनी मजबूती का दिखावा नहीं करते” । ठीक उसी तरह पुरूषों को मालूम है कि वो स्वाधीन है, इसीलिए वो अपनी स्वाधीनता का दिखावा नहीं करते। इसके विपरीत लडकियां ये मानती है कि वो आज भी पराधीन है, इसीलिए वो अपनी स्वाधीनता का दिखावा करती हैं।” और इसके लिए उन्हें जो पहला रास्ता सूझता है वो है छोटे कपड़े । मैं सत्य कहूं मुझे कभी भी ये समझ में नहीं आया की लडकियां ऐसा क्यूँ सोचती है |
यदि उन्हें स्वयं को पुरूषों के बराबर ही दिखाना है तो मेहनत करे, पढ़ लिखकर कुछ बने और अपने माता-पिता नाम रौशन करे। और रही बात स्त्री-पुरूष समानता की तो आज भी ये केवल एक फिल्मी संवाद ही माना जाएगा। जिसका वास्तविकता से अधिक लेना-देना नहीं है। कुछ उदाहरण देखिये –
1)रास्ते में कोई लड़की अगर गाड़ी से गिर जाये तो सबसे पहले लड़के ही उसकी मदद करते है,लेकिन अगर कोई लड़का गिर जाये तो कोई भी लड़की उसकी मदद नहीं करती।
2) लडकियों को लड़के रास्ते में लिफ्ट दे देते हैं मगर लडकियाँ लडको को कभी लिफ्ट नहीं देतीं।
3)पुरुष महिलाओं के हक के लिए हमेशा लड़ाई करते दिखाई देते हैं लेकिन महिलाओं को पुरुषों के हक के लिए कभी लड़ते नहीं देखा।
4)पति अपनी पत्नी को तलाक के बाद भरण पोषण देता है,क्यों न पत्नी भी दिया करे।
हमारे देश के लोग अमेरिकी महिलाओं को ज्यादा तेज-तर्रार, खुले विचारों वाली और स्मार्ट समझते है। आधुनिक लड़कियाँ तो मानों उनको आदर्श ही बना लेती हैं। परन्तु आपको ये जानकार आश्चर्य होगा की हमारी आबादी अमेरिका से लगभग तीन गुना ज्यादा है लेकिन हमारी तुलना में अमेरिका में तीन गुना ज्यादा बलात्कार होते है |ज़रा सोचिये,,,क्या कारण है की अमेरिका में भारत के मुकाबले तीन गुना ज्यादा रेप होते है ।।
डॉ राजीव दीक्षित ने इसका कारण “काम वासना के उत्पादन को बताया था” जो लड़कियाँ सड़कों पर अधनंगी घूम कर आसानी से कर सकतीं हैं।
अगर अश्लीलता काम वासना और हवस को जन्म नहीं देती तो प्राचीन काल में ऋषि मुनियों की तपस्या भंग करने के लिए महिलाओं, अप्सराओं को ही क्यों भेजा जाता था ?? सिर्फ इसीलिए कि तपस्वी होने के बावजूद अधनंगी महिला को देखकर उनके भीतर का सोया जानवर जागे ।
13 अप्रैल 2015 को जारी दुनिया भर में ऑन लाइन पोर्न सामग्री पर नजर रखने वाली संस्था पोर्न हब के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 में सबसे ज्यादा इंटरनेट पॉर्न देखने वालों की संख्या के मामले में भारतीय चौथे स्थान पर थे।
इस आंकड़े में चौकाने वाली बात यह है कि भारत में कुल पोर्न देखने वाले लोगों की संख्या का 25 प्रतिशत महिलाओं का है, जो मोबाईल फोन पर पोर्न देखती हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह आंकड़ा विश्व के औसत आंकड़े से लगभग दो प्रतिशत ज्यादा है जो कि भारत जैसे देश के संदर्भ में और भी आश्चर्यचकित करने वाला है जहाँ आमतौर पर यहाँ महिलाओं एवम पुरुषों को ऐसे विषयों के बारे में बात तक करने की सामाजिक मान्यता नहीं है वहां महिलाओं द्वारा पोर्न सामग्री का इस्तेमाल यह साबित करता है कि भारत में अनुसूया, सीता और मीरा जैसी संस्कारी एवं संयमी महिलाओं की कल्पना करना मूर्खता से कम नहीं है ।
बेटी बचाओ, बेटी बचाओ चिल्लाने वाले जरा बताएं कि बेटी मार कौन रहा है ? जब बेटी स्वयं महिला की कोख में रहती है तो बिना उस महिला की रजामंदी और जानकारी के लिंग परीक्षण और भ्रूण हत्या होती कैसे है ? क्या इतने कानूनों के होने पर भी महिला इसका विरोध नहीं कर सकती ? क्या इसके लिए महिलाएं भी जिम्मेदार नहीं ?
अनादि काल से पुरुषों को ये सिखाया गया की नारी का सम्मान करो। स्त्री पर हाथ मत उठाओ। जो स्त्री पर हाथ उठाता है वो मर्द नहीं होता। वो माँ है बहन है बेटी है इत्यादि , फिर इसी समाज में एक और सोच ने जन्म लिया, वो ये की अगर कोई मर्द स्त्री के हाथों पिट जाए तब वो मर्द कहलाने योग्य नहीं।
आज के कुंठित नारीवादी समाज की कुछ पुरुष विरोधी मानसिकता है कि कोई भी स्त्री किसी पुरुष पर झूठा रेप केस नहीं लगाती, कोई भी स्त्री अपने सास ससुर का अपमान नहीं करती, कोई भी स्त्री अपने पति पर झूठे आरोप नहीं लगाती, कोई भी स्त्री घर बर्बाद नहीं करती, स्त्री तो माँ होती है दयालु होती है…आदि, आदि ।
चाणक्य ने कहा है की “स्त्री अगर कुटिलता का परिचय दे आश्चर्य मत कीजिये क्योंकि वो उसका स्वाभाविक गुण है” ।
इस देश में हर साल थोक के भाव झूठे रेप के मामले आते है और कई नौजवान लड़के तो इन मामलों से बचने के लिए आत्महत्या तक कर लेते हैं । सुप्रीम कोर्ट ने खुद माना की दहेज़ केस की अधिकतर शिकायतें झूठी होती हैं फिर कैसे मान ले की कोई स्त्री अपना घर बर्बाद नहीं करती ?
स्त्री माँ नहीं होती बल्कि माँ बनती है । स्त्री माँ होती और उसके अन्दर इतनी ही ममता होती तो सौतेली माँ की क्रूरता के किस्से हम न सुनते । सास द्वारा बहुओं को जलाने के किस्से हम न सुनते । आज कल रोज ही ये सुनने में आता है की महिला ने प्रेमी के साथ मिलकर अपनी औलाद की हत्या की या प्रेमी के साथ मिलकर अपनी ही बेटी का रेप करवाया । परिवार से पति को भड़काकर भाईयों, बुजुर्गों को देवर को भगाने वाली बहुएं और सौतेली माँ बनकर मानवता का गला घोटने वाली स्त्री को क्या “माँ” का दर्ज़ा दिया जा सकता है ??
सच तो यह है कि माँ केवल सगी माँ ही बन पाती है। जंगल में जब एक शेरनी मर जाती है तब दूसरी शेरनी उसके बच्चे को पालती है लेकिन यही गुण इन औरतों में क्यों नहीं देखा जाता ?? सौतेली माँओं के किस्से रोज सुनने में क्यों आते हैं?
इतना सब होने के बाद भी महिला देवी ही है। अब हमें इस मानसिकता से बाहर निकलना चाहिए। अब समय आ गया है की कुंठित मानसिकता से हम बाहर निकले तभी पूरे समाज को इन्साफ मिल पाएगा । अगर कोई स्त्री आपका अपमान करे तो उसको भी सबक ज़रूर सिखायें। हम देवी की पूजा करते है राक्षसियों की नहीं ।
भारत में पुरुषों को बलात्कारी, हत्यारा, दहेजलोभी इत्यादि न जाने क्या क्या कहकर संबोधित किया जाता है। ये कैसा समाज है कि अगर कोई स्त्री किसी पुरुष को या कोई पुरुष किसी स्त्री को थप्पड़ मारे तो दोनों ही मामलो में पुरुष ही दोषी समझा जाता है ? ये सोच हमारे देश में आरम्भ से ही चली आ रही है ।
शायद इसी विचार के वशीभूत होकर ताड़का वध करने के पहले श्रीराम के हाथ भी रुक गए थे। उन्होंने महर्षि विश्वामित्र से पूंछा–गुरुदेव क्या स्त्री वध उचित है ??
ऋषि बोले–हे राम, स्त्री का सम्मान तभी तक उचित है जब तक उसके भीतर नारीत्व जीवित है। ये राक्षसी है और इसने कई मनुष्यों को जिंदा खा लिया। राम ये स्त्री है ही नहीं इसकी काया ही स्त्री की है आत्मा नहीं। इसीलिए हे रघुकुलभूषण इसका वध करो” ।
इस तरह अनादि काल से हम देखते है की समाज स्त्री प्रधानता नाम के कैंसर से ग्रसित है।
1. सूर्पनखा के कारण ही पूरी रामायण हुयी लेकिन पुतला रावण का ही फूंका जाता है।
२. द्रौपदी ने यदि कौरवों के अन्धे पिता का उपहास न किया होता तो महाभारत युद्ध भी नहीं होता। परन्तु दोष केवल कौरवों को दिया जाता है।
जो पुरुष देश की सीमा में अपना खून बहाता है ताकि देश सुरक्षित रहे । जो पुरुष खेतों में पसीना बहाता है ताकि लोग दो वक्त की रोटी खा सके। अपने परिवार को पालने के लिए पुरुष लोगों की गंदगी भी साफ़ करता है | लेकिन उसके बाद भी पुरुष बलात्कारी है हत्यारा है । और औरत तो आज अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपनी औलाद को ही मार देती है फिर भी वो देवी है ???
यहाँ ये बात गाँठ बाँध लें आपलोग की जो पुरुष अमर्यादित है, वह भी पुरुष की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता एवम कठोर से कठोर से दंड दिए जाएँ उसे | किन्तु यही बातें महिलाओं पे भी लागू होनी चाहिए | क्यूंकि आप विश्वास करें या ना करें,, वास्तविकता बोहत ही डरावनी है आज कल की लड़कियों/महिलाओं की |