देशभर में मकर संक्रांति का पर्व अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। मकर संक्रांति का जहां वैज्ञानिक महत्व है वहीं इस पर्व को मनाने के पीछे धार्मिक मान्यताएं भी हैं। पौराणिक कथाएं भी इस पर्व के मनाने के पीछे एक कारण है। मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था। यही वजह है कि इस दिन ‘गंगा’ नदी में स्नान करने का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है। आइए जानते हैं मकर संक्रांति से जुड़ी ऐसी ही कुछ मान्यताओं और महत्व के बारे में।

यह पर्व भारतीय ज्योतिष के अनुसार पिता सूर्य और पुत्र शनि की मुलाकात के रूप में भी मनाया जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार गुरु की राशि धनु में विचरने वाले सूर्य ग्रह जब मकर यानी की शनिदेव राशि में प्रवेश करते हैं तो माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने खुद उनके घर जाते हैं। यही वजह है कि इस खास दिन को मकर संक्रांति के नाम से पहचाना जाता है।
दूसरी मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जा मिली थीं। कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस खास दिन तर्पण किया था।उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी।यही वजह है कि मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।
महाभारत के भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए, सूर्य के मकर राशि मे आने का इंतजार किया था।सूर्य के उत्तरायण के समय देह त्याग करने या मृत्यु को प्राप्त होने वाली आत्माएं कुछ काल के लिए ‘देवलोक’ में जाती हैं। जिससे आत्मा को ‘पुनर्जन्म’ के चक्र से छुटकारा मिल जाता है और इसे ‘मोक्ष’ प्राप्ति भी कहा जाता है। अतः इस पर्व को मनाने के पीछे यह मान्यता भी है।
कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा करते हुए सभी असुरों के सिर को मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता के अंत का दिन भी माना जाता है।
माता यशोदा ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत रखा था तब सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति का दिन था।माना जाता है कि उसी दिन से मकर संक्रांति के व्रत को रखने का प्रचलन भी शुरू हुआ।