महाभारत के भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए, सूर्य के मकर राशि मे आने का इंतजार किया था।सूर्य के उत्तरायण के समय देह त्याग करने या मृत्यु को प्राप्त होने वाली आत्माएं कुछ काल के लिए ‘देवलोक’ में जाती हैं। जिससे आत्मा को ‘पुनर्जन्म’ के चक्र से छुटकारा मिल जाता है और इसे ‘मोक्ष’ प्राप्ति भी कहा जाता है। अतः इस पर्व को मनाने के पीछे यह मान्यता भी है।
कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा करते हुए सभी असुरों के सिर को मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता के अंत का दिन भी माना जाता है।
माता यशोदा ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत रखा था तब सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति का दिन था।माना जाता है कि उसी दिन से मकर संक्रांति के व्रत को रखने का प्रचलन भी शुरू हुआ।