टेक्नोलॉजी क्षेत्र में कई ऐसी तकनीकें पेश की गई हैं जो भविष्य की तस्वीर बदलने में सक्षम है। सोशल रोबोट्स से लेकर सुरक्षित न्यूक्लियर रिएक्टर्स तक कई तकनीकें आने वाले समय में पेश की जा सकती हैं जो भविष्य में यूजर्स के बेहद काम आएंगी।
World Economic Forum (WEF) की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ बेहतर इनोवेशन्स ग्लोबल सोशल और आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित कर सकती हैं। WEF के चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर जेरेमी जरगन्स ने कहा, “जलवायु परिवर्तन से आय असमानता तक जैसी समस्याओं का हल ढूंढने में टेक्नोलॉजी अहम भूमिका निभाती है।” WEF ने वर्ष 2019 में टॉप 10 उभरती तकनीकों की जानकारी दी है।
1. Bioplastics: दुनिया में 15 फीसद से भी कम प्लास्टिक को रिसाइकल किया जाता है। बाकी को ऐसे ही छोड़ दिया जाता है। इसके लिए वैज्ञानिक बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का समाधान लेकर आए हैं। इसमें किसी तरह का कोई मैटेरियल इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसे पौधों के खराब हिस्से के सेल्यूलॉस या लिगनिन से बनाया जाता है।
2. Social robots: वर्तमान में रोबोट्स को आवाज, चेहरा, भावनाओं को पहचानने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर हम सोशल रोबोट्स यानी अस्सिटेंट्स की बात करें तो इन्हें हम अपनी रोजाना की जिंदगी में इस्तेमाल करने लगे हैं। इनके जरिए बच्चे को पढ़ाना, बुजुर्गों का ख्याल रखना समेत कई अन्य काम बेहद आसान हो गए हैं।
3. Metalenses: किसी भी मोबाइल फोन, कंप्यूटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज में इस्तेमाल किए जाने वाले लेंसेज को बनाना किसी नॉर्मल ग्लास कटिंग और ग्लास कर्विंग तकनीकों के तकनीक की क्षमताओं से काफी ज्यादा है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि ये छोटे, पतले, फ्लैट लेंसेज किसी भी मौजूदा ग्लास लेंसेज को रिप्लेस कर सकते हैं। फिजिक्स इतनी एडवांस हो गई है कि अब किसी भी लेंस का विकल्प बनाना या उसे छोटा आकार देने आसान हो गया है। इन्हें ही Metalenses कहा जाता है।
4. Disordered proteins: इस तरह के प्रोटीन्स कैंसर समेत अन्य बिमारियों का कारण बन सकते हैं। पारंपरिक प्रोटीन्स के विपरीत, इनमें रिजिड स्ट्रक्चर (कठोर संरचना) की कमी होती है। इससे आकार बदलने लगता है और बिमारी का इलाज करना बेहद मुश्किल हो जाता है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने इसके इलाज के लिए लंएक तरीका खाज निकाला है। यह किसी भी रोगी के लिए बिमारी को ठीक करने में बेहद काम आ सकते हैं।
5. Smarter fertilizers: हाल ही में फर्टिलाइजर्स में कुछ सुधार किए गए हैं। इसके तहत फर्टिलाइजर्स धीरे-धीरे जरूरत पड़ने पर पोषक तत्वों को रिलीज करते हैं। हालांकि, इनमें अभी भी अमोनिया, यूरिया और पोटाश शामिल हैं जो वातावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। नए फर्टिलाइजर्स में पहले के मुकाबले ज्यादा इकोफ्रेंडली नाइट्रोजन का और माइक्रोऑर्गेनिज्म का इस्तेमाल किया गया है जो पौधों के लिए बेहद है।
6. Collaborative telepresence: ऑगमेंट रिएलिटी और वर्चुअल रिएलिटी के बारे में तो हम सभी ने सुना ही है। लेकिन अगर इन्हें मिला दिया जाए तो। जरा सोचिए कि आप किसी वीडियो कॉन्फ्रेंस रूम में बैठे हैं और आप न सिर्फ एक दूसरे को देख पा रहे हैं बल्कि हाथ भी मिला पा रहे हैं। ऑगमेंट रिएलिटी, वर्चुअल रिएलिटी, 5G नेटवर्क्स और एडवांस सेंसर्स के मिक्चर की मदद से आप एक-दूसरे से बात भी कर पाएंगे और हाथ भी मिला पाएंगे। यही नहीं, इस तकनीक के जरिए डॉक्टर्स अपने रोगियों के साथ रिमोटली काम कर पाएंगे।
7. Advanced food tracking and packaging: हर वर्ष करीब 600 मिलियन लोग खराब या दूषित खाना खाते हैं। ऐसे में यह बेहद जरूरी हो गया है कि इसे सोर्स का पता लगाया जाए। जिस काम में पहले हफ्तों लगते थे अब वो चंद मिनटों में किया जा सकता है। स्पलाई चेक के जरिए किसी भी खाद्य पदार्थ की प्रगति को मॉनिटर किया जाना आसान हो गया है। वहीं, पैकेजिंग में दिए गए सेंसर इस बात का संकेत देते हैं कि खाना कब खराब होने वाला है।
8. Safer nuclear reactors: वैसे तो न्यूक्लियर पावर कार्बन डायऑक्साइड नहीं बनाती है। लेकिन उसके साथ आने वाले रिएक्टर्स सेफ्टी रिस्क के साथ आते हैं जो फ्यूल रॉड को ओवरहीट कर सकते हैं और इगर इन्हें पानी के साथ मिक्स किया जाए तो ये हाइड्रोजन बनाते हैं और फट सकते हैं। लेकिन नए फ्यूल सिस्टम जो उभरकर आ रहे हैं उनमें कम हीट बनती है। अगर ज्यादा बनती भी हैं तो न के बराबर हाइड्रोजन उत्पन्न होती है। ऐसे में यह नई कंफीगरेशन फ्यूल रॉड्स को रिप्लेस कर सकती हैं।
9. DNA data storage: हमारे डाटा स्टोरेज सिस्टम काफी ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं। ये ज्यादा मात्रा में डाटा भी स्टोर नहीं रख सकते हैं। ऐसे में DNA आधारित डाटा स्टोरेज को बनाया जा रहा है। यह कम्प्यूटर हार्ड-ड्राइव का लो-एनर्जी विकल्प है। इनकी क्षमता काफी ज्यादा होती है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इसमें दुनिया का एक वर्ष का सारा डाटा केवल एक वर्ग मीटर वाले DNA क्यूब में स्टोर किया जा सकता है।
10. Utility-scale storage of renewable energy: बिना सूरज और हवा के एनर्जी स्टोर कर पाना मुश्किल होता है। लिथियम-आयन बैटरीज आने वाले दशक मे स्टोरेज टेक्नोलॉजीज से आगे बढ़ जाएंगी। इस तरह की बैटरीज में 8 घंटे तक की एनर्जी स्टोर की जा सकती है। यह इतनी होती है जिससे हाई डिमांड को पूरा किया जा सकता है।