पद्मपुराण के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं और इसी के साथ इस एकादशी को पांडव एकादशी के नाम से जानते हैं और यह एकादशी सभी एकादशीयों में से सबसे महत्वपूर्ण कही जाती है. ऐसे में कहा जाता है इसका व्रत करने वाले व्रती को बिना पानी पिये ही उपवास रखना होता है और ऐसे में महीने में दो एकादशी का पर्व पड़ता हैं.

जिनमे साल में कुल मिलाकर 24 एकादशी का पर्व मनाते हैं. इसी के साथ इन सभी में 24 एकादशी का फल, निर्जला एकादशी का व्रत करके पाया जा सकता हैं. कहा जाता है इस साल निर्जला एकादशी का व्रत 13 जून 2019 को रखा जाएगा. आइए जानते हैं निर्जला व्रत की कथा.
व्रत कथा – भीमसेन व्यास जी से कहते हैं कि सभी उनको एकादशी का व्रत करने को कहते हैं और मैं उनसे कहता हूँ कि मैं दान-दक्षिणा, पूजा-पाठ कर सकता हूँ परंतु भोजन के बिना नहीं रह सकता हूँ. भीमसेन की बात सुनकर व्यास जी बोले यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा मानते हो तो एकादशी के दिन अन्न ग्रहण मत किया करो, इस बात पर भीमसेन बोले कि हे पितामह मैं भोजन के बिना एक पल भी नहीं रह सकता हूँ.भीमसेन ने कहा कि हे पितामह कोई एक ऐसा व्रत बताइए जो साल में एक बार ही करना पड़े क्योंकि मेरे पेट मे वृक नाम की अग्नि हैं जो बिना भोजन के शांत नहीं होती हैं.
भीमसेन की बात सुनकर व्यास जी बोले की ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला हैं और तुम इस एकादशी का व्रत करो. इसके आगे उन्होने कहा कि इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल वर्जित है. ऐसे में यदि जो भी व्यक्ति इस व्रत को करता हैं उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं. ऐसे में भीमसेन ने व्यास जी आज्ञा लेकर इस व्रत को विधि-विधान पूर्वक किया, तभी से इसका नाम भीमसेनी एकादशी भी पड़ गया.
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